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गुरुवार, 23 सितंबर 2010
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कहते हैं सपने वो जो खुली आंखों से देखे जाए...! बस हमने भी जागती आंखों से कुछ
सपने देखे और चल पडे उन्हें पूरा करने के लिए। हम जानते हैं कि समय के थपेडे हर
कदम पर हमारा इम्तिहान लेंगे, लेकिन यकीन रखिए कि मुश्किलों के दौर हमें थककर
बैठने या लौटने के लिए मजबूर नहीं कर सकेंगे। खुद की लघुता का अहसास है हमें,
लेकिन हम उन क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं, घटनाओं-दुघर्टनाओं की गूंज बनेंगे, जो समय
के दरवाजे पर अनसुनी-अनदेखी रह जाती है। हमारा मकसद कोई क्रांति लाना नहीं और
ना ही हमें किसी साम्राज्य से कोई गिला है, मगर नैतिक-अनैतिक के घटते फासले को
थामने की कोशिश करना हमारा हक भी है और कर्तव्य भी।
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2 टिप्पणियाँ:
ना ही हमें किसी साम्राज्य से कोई गिला है
ना ही हमसे आजतक कुछ हिला है
कैसी तुकबन्दी लगी भड़ासियों???
जय जय भड़ास
शानदार रही गुरुदेव,
सालों बाद जुगलबंदी निकाली आपने.
जय जय भड़ास
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