यह सितारों भरी रात फ़िर हो न हो

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

यह सितारों भरी रात फ़िर हो हो
आज है जो वही बात फ़िर हो हो
एक पल और ठहरो तुम्हे देख लूँ
कौन जाने मुलाकात फ़िर हो हो

हो गया जो अकस्मात फ़िर हो हो
हाथ में फूल सा हाथ फ़िर हो हो
तुम रुको इन क्षणों की खुशी चूम लूँ
क्या पता इस तरह साथ फ़िर हो हो

तुम रहो चांदनी का महल भी रहे
प्यार की यह नशीली गजल भी रहे
हाय,कोई भरोसा नहीं इस तरह
आज है जो वही बात कल भी रहे

चांदनी मिल गयी तो गगन भी मिले
प्यार जिससे मिला वह नयन भी मिले
और जिससे मिली खुशबुओं की लहर
यह जरूरी नहीं वह सुमन भी मिले

जब कभी हो मुलाकात मन से मिलें
रोशनी में धुले आचरण से मिले
दो क्षणों का मिलन भी बहुत है अगर
लोग उन्मुक्त अन्तः करण से मिले ||
(रचना-
अवधी एवं हिन्दी के कालजयी
लोक कवि स्व .पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी,
जौनपुर ) प्रस्तुति --धीरेन्द्र प्रताप सिंह

1 टिप्पणियाँ:

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

धीरू भाई,
इस सुन्दर और जोशीले कविता की प्रस्तुति के लिए बधाई.
जारी रहिये.
जय जय भड़ास

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