मामा से शादी करते हैं,उसके बेटे से शादी करते हैं और फिर भी हिंदू ही हैं
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
मेरे घर में एक काम वाली बाई आती है जो कि राजपूत बंजारी है। यही बाई हमारे डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी के घर भी झाड़ू-पोछे के लिये जाया करती है। एक दिन उसके साथ एक और महिला आयी जिसके संग एक छोटी बच्ची थी तो मेरी पत्नी ने पूछा कि बाई ये कौन है तो उसने कहा कि मेरी बहन है। बतिआते हुए काम करने की आदत में उसने बताया कि इसकी शादी मामा से हुई है। पहले तो हमें कुछ समझ में ही न आया जब मेरी पत्नी ने भी स्त्रियोचित तरीके से उससे पंचायत करना शुरू करा तो उसने बताया कि इसकी नानी इसकी सगी सास है यानि कि हमारी माँ के सगे छोटे भाई यानि हमारे मामा से इसकी शादी हुई है। ये सब सुन कर दिमाग घूमने लगा क्योंकि हम इस संबंध की कल्पना तक नहीं कर सकते थे। कुछ लोगों से ऐसे रिवाजों के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि मेरे आंध्रप्रदेश के एक मित्र के.यशवंत की पत्नी उसकी सगी छोटी मौसी है और महाराष्ट्र में तो मामा के लड़के से शादी सामान्य रिवाज है। ये सारे के सारे लोग हिंदू हैं। अब मुझे कोई ये समझाए कि क्या ये शादियाँ कानूनन जायज़ हैं हिंदू विवाह कानून के नियमानुसार? लोग सिर्फ़ मुस्लिमों को ही बोला करते हैं कि वे लोग रिश्तेदारी में ही शादियाँ करते हैं लेकिन इन हिंदुओं का क्या करा जाए???
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
अब यह रिवाज महाराष्ट्र में तो सांकेतिक है । इसको कोई नही पालता । जनेऊ के समय मामा कहते हैं कि तुम काशी मत जाओ हम तुम्हें अपनी कन्या देंगे ।
ये बातें पहले से मालूम हैं सिर्फ इसलिए ही मुस्लिम लोगों का इस मुद्दे पर कभी भी विरोध नहीं किया. वैसे इसके अनुवांशिक दुष्परिणाम तो होते ही हैं. देखना ये है कि ये मान्यताएं वास्तव में वैदिक रूप से मान्य हैं कि नहीं. हो सकता है कि कुछ कबीला गत रीतिरिवाज अभी तक हिन्दू समाज के कुछ हिस्सों में प्रचलित हों जो असल में वैदिक या सनातन धर्म का हिस्सा ना हों. चलिए अच्छी भड़ास निकली है आपने.
शायद ही हिंदूवादी और हिंदुत्व का ढोल पीटने वाले इस पर बोलेन, रजुआ और बलुआ के संबंधो को स्पष्ट करें ;-)
जय जय भड़ास
इस्लाम धर्म में भी सगे मामा, मौसी अथवा सगी बुआ जैसे प्रत्यक्ष खून के रिश्ते में शादी की इजाज़त नहीं होती है. अलबत्ता मामा, मौसी अथवा बुआ के बच्चों की आपस में शादी की इजाज़त होती है, क्योंकि यहाँ दूसरा खून शामिल हो जाता है.
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