एक पसंदीदा गजल ...
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
एक पसंदीदा गजल ...
खूबसूरत से इरादों की बात करता है
वो पतझडों में गुलाबों की बात करता है
एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है
उछाल करके कुछ मासूम से सवालों को
वो पत्थरों से जबाबों की बात करता है
वो चाहता है अंगूठे बचे रहें सबके
वो कापियों की किताबों की बात करता है
एक चिंगारी छिपाए है अपने सीने में
वो बार -बार मशालों की बात करता है .
रचना -डॉ वशिष्ठ अनूप .प्रस्तुति धीरेन्द्र प्रताप सिंह देहरादून
4 टिप्पणियाँ:
जजों ने माना कि 22 दिसम्बर 1949 की रात को बाबरी मसजिद में राम की मूर्ति कोई रख गया। कौन रख गया ,कैसे रख गया ,इसका ब्यौरा एफआईआर में उपलब्ध है और जज भी मानते हैं बाबरी मसजिद में उपरोक्त तारीख को ये मूर्तियां रखी गयीं । सवाल यह है कि ये मूर्तियां वैध रूप में जब नहीं रखी गयीं तो फिर इन्हें हटाने का निर्णय माननीय जजों ने क्यों नहीं लिया ? जजों ने सैंकड़ों साल पुरानी बाबरी मसजिद को गैर-इस्लामिक मान लिया, लेकिन चोरी से मसजिद में जाकर राम की मूर्ति को रखे जाने को गैर हिन्दू धार्मिक हरकत नहीं माना। राम मंदिर को अवैध नहीं माना ? यह जजों की खुली हिन्दुत्ववादी पक्षधरता है।
यह फेसला हिन्दुत्ववादी पक्षधरता की मिसाल है
बहुत पसंद आई ..आपकी ये गजल
एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है ।
बहुत ही सुन्दर पंक्तिया अनुपम प्रस्तुति ।
धीरू भाई,
इस सुन्दर और जोशीले गजल की प्रस्तुति के लिए बधाई.
जारी रहिये.
जय जय भड़ास
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