मै ...
बुधवार, 24 नवंबर 2010
मै ...
बड़ा अजीब शब्द है ये मैं
कोई भी नही अछूता इससे
हर कोई बस कहता मै
धरा से गगन ,जल से पवन
बस गूंजता मै
हर जगह मै ,हर पहर मै
मानव की प्रथम कथन मैं
हर युग ,हर काल में आया मैं
विष्णु ने कहा मै
शिव ने कहा मै
कुरुक्षेत्र में कृष्ण ने भी कहा
यत्र-तत्र -सर्वत्र बस मै ही मै
इस मैं में छुपा है राज बड़ा
कभी स्वार्थ ,अहंकार कभी
कभी हूंकार ,अधिकार कभी
अर्जुन ने कहा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मैं
रावन ने कहा सर्वशक्तिमान मैं
इस मैं ने कितनो को उठाया
गिराया कितनो को
कह नही सकता मैं
बिल्ली की म्याऊ में मैं
बकरी की में-में में भी मैं
इस मैं के द्वंद्व जल में फंसा मैं
बता मेरे दोस्त इससे निकलू कैसे मैं --
. पंकज भूषण पाठक"प्रियम "
1 टिप्पणियाँ:
'main' kahin ahankar hai....
"jab 'main' tha tab hari nahi
ab hari hain 'main' nahi"..kabirdas
lekin jab Ishwar kahta hai ya paramanand prapt sant kahta hai'aham brahmasmi'to ishwariy satta ke sab kuchh hone ka hi bhan hota hai.
achchhi rachna!
एक टिप्पणी भेजें