माता जी की मृत्यु के बाद सिर्फ़ भड़ास-भड़ास ही लिखने का दिल कर रहा है
रविवार, 21 नवंबर 2010
मुंबई के तमाम भड़ासी मेरी माताजी की मृत्यु के बाद और उससे पहले से ही मेरे साथ ऑफ़लाइन रह कर मुझ दो हाथ वाले प्राणी का माताजी की तीमारदारी में सहयोग कर रहे थे। माँ तकरीबन दो माह से बिस्तर पर ही थीं। मन को संतोष देने के लिये कह सकते हैं कि उम्र हो गयी थी तो एक न एक दिन जाना ही था लेकिन मन पर एक बोझ है जो भड़ास के अलावा किधर निकाला जा सकता है। भाई अजय मोहन से लेकर मुनव्वर सुल्ताना आपा तक सभी तो जानते हैं। बुज़ुर्ग सहयोगी जनाब मुहम्मद उमर रफ़ाई साहब से लेकर बादशाह बासित सभी तो अपने अपने स्तर पर लगे हुए थे कि किस तरह माताजी के लिये कुछ कर सकें। बादशाह बासित ने जहाँ अपने सारे दोस्तों को sms करे कि मेरी नानी जी के स्वास्थ्य के लिये प्रेयर करिये वहीं रफ़ाई साहब ने आब-ए-ज़मज़म से लेकर तस्बीह तक हाथ में लेकर न जाने क्या क्या जाप कर डाले। मुंबई जैसे बड़े शहर के तमाम नामचीन अस्पताल और उनकी रिपोर्ट्स लगातार कराए जाते रहे पैथोलॉजिकल टैस्ट्स एक दिन २९ अक्टूबर शाम ६:५० पर सब थम गया। माता जी की साँसों की डोर टूट गयी। माताजी की मृत्यु का कारण आज तक हमारी समझ में न आया क्योंकि उन्हें तो बस बुखार ही रहा करता था जिसे हम लोग किसी भी तरह से नियंत्रित करने का प्रयास करते रहते और वो था कि पागल साँड की तरह मेडिकल साइंस को धकियाता रहता था जैसे ही दवा देते साला 99 से बढ़ कर दस मिनट में 104 तक चला जाता और माँ बेसुध रहती, हम सब पागल की तरह ठंडे पानी की पट्टियां रखते पंद्रह बीस घंटे बिता देते तब कहीं जाकर हौले हौले बुखार नीचे आता और माँ धीमी आवाज़ में आँखें खोल कर पानी माँगती जिसे हम लोग बड़ी सफलता की तरह देखते दो चम्मच पानी हलक से नीचे उतर जाता तो बड़ी बात रहती इस बीच में हम सब इस जुगाड़ में रहते कि कुछ जूस आदि पिला दिया जाए।
बस्स्स्स्स्स...........
बस्स्स्स्स्स....
दिमाग खराब नहीं हुआ है मेरा कि ये सारी रामकहानी लिखूं । बात तो अभी आगे है जो कि लिखना शुरू करना है।
निवेदन है कि बिना जानकारी और पुख्ता सबूत के इस अनुभव में कोई न कूदे। मैं अपनी बातो के साथ समय समय पर प्रमाण के तौर पर चित्र वीडियो आदि रखता चलूंगा।
अनूप मंडल के विद्वानों से निवेदन है जैनों को कुछ समय के लिये छोड़ कर आप इस मामले में अपनी राय अवश्य रखियेगा।
7 टिप्पणियाँ:
विनम्र श्रद्धांजलि। हौसलेदार तो हो ही, सबको हौसला देते हो।
माताजी के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करता हूं।
डा. साहब, वैसे किसी की भी मृत्य के अवसर पर सबसे प्रचलित दो ही वाक्य हैं (1) ईश्वर हुतात्मा को शांति/स्वर्ग प्रदान करे (2) ईश्वर घर वालों को इस क्षति को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। शायद मैं भी आपके लिए ऐसा ही लिखता पर 3 नबम्बर को मैं भी अपने चचेर भाई को खो चुका हूँ जो कि काफी समय से बीमार थे पर मेरी वेवसी यह थी कि मे उनके अंतिम दर्शन भी न कर सका क्योकि पोर्टब्लेयर से मैनपुरी (उ.प्र) तक पहुंचने कोई शीघ्रतम साधन भी उपलब्ध नहीं था। आप स्वंय भी चिकित्सक है और इस बात से सहमत भी होगे कि इलाज केवल बीमारी का हो सकता है मृत्य का नहीं, पर मृत्यु को भी आने का एक बहाना चाहिये।
माता जी के साथ बिताये दो पल आज भी याद आते हैं, मन खिन्न है मगर माँ के वैकुंठ वाशी होने पर भी आशीर्वाद स्वरुपा हो संग होने का अहसास भी.
अगर हमारा दिल बैकुंठ है तो नानी जरूर बैकुंठवासी हैं। नानी जिस्मानी तौर पर भले अब जा चुकी हैं पर वो उतनी ही शिद्दत से हमारे दिल में हैं
कोई भी तब तक ही जिंदा रहता है जब तक आप उसे भुला न दें
जय जय भड़ास
विनम्र श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि.
एक टिप्पणी भेजें