मजे से पोर्न मूवीज़ देखिये कुछ बुरा नहीं है मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सोच.......
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
मुंबई उच्च न्यायालय में जो भी होता है कम से कम उस पर हम मुंबईया भड़ासी तो जरूर चर्चा कर लेते हैं। खंडाला के पास एक ऐसा हिल स्टेशन है लोनावला जिसे हिला सको तो हिल स्टेशन है वरना खंडाला जाओ हिलाने। मुंबई के गुंडों से लेकर राजनेताओं और बिजनेस मैन से लेकर पुलिसवालों तक के लिये ये जगह अय्याशी के लिये बड़ी अच्छी है पूना से लेकर मुंबई तक का माल-मसाला सब इस जगह मिल जाता है। 26 अगस्त 2008 को एक बंगले से बाइस अफ़सरों को(विभाग मत पूछियेगा) ग्यारह बार-बार-हरबार-लगातार टाइप की बारगर्ल्स के साथ गिरफ़्तार किया गया। पुलिस ने मामला दर्ज करा कि ये सभी नशे में धुत्त थे और अश्लील(पोर्न) चलचित्र देख रहे थे। अब मेरी ये समझ में नहीं आता कि जब अफ़सर बाइस तो छोरियाँ ग्यारह क्यों थी ये कैसा समीकरण है पुलिस वाले मामू ने इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया? इत्ते टाइम तक मुकदमा-मुकदमा खेलने के बाद मुंबई हाईकोर्ट के न्यायप्रिय-न्याय फैलाने वाले महा विद्वान न्यायाधीश श्री श्री एक करोड़ आठ(कम है क्या??) जस्टिस वी.के.तहिलरमानी जी ने ये फैसला दिया है कि पुलिस अंकल गलत थे अफ़सर अंकल सही थे वे जो भी कर रहे थे उसमें कोई अश्लीलता या कानूनी जुर्म जैसी कोई बात नहीं है इसलिये सभी बाइज़्ज़त अपने घर जा कर दोबारा ये सब कर सकते हैं। फैसला है कि यदि कोई वयस्क व्यक्ति अपने घर में पोर्न मूवी देख रहा है तो ये अपराध नहीं है लेकिन ध्यान रहे कि पोर्न फिल्म बनाना, बेचना, खरीदना अब तक न्यायाधीश महोदय के अनुसार(क्षमा करें कानून के अनुसार) जुर्म है। इसका सीधा मतलब है कि घर बैठिये और मजे से इंटरनेट पर पागल हो जाने तक अश्लील फिल्मों में डूब जाइये। इसके बाद आप उन फिल्मों से प्रेरित होकर उसका अभ्यास अपने घर में करें या फिर पड़ोसिन के साथ बलात्कार करने की मानसिकता में आ जाएं इस बात से न्यायाधीश जी को कोई लेना देना नहीं है। सिगरेट पीती हुई रानी मुखर्जी या ऐश्वर्या राय बच्चों को गलत संदेश दे सकती हैं इसलिये इन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिये लेकिन ..........
धन्य है हमारा देश और उसमें जुडीशियरी की भैंसें हाँकने वाले ऐसे न्यायाधीश
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
dhanya hai aise bail buddhi nyayadheesh.....
सच कहा है....
बिलकुल सही कहा... यह तो हद है यार!
चोट्टे हैं साले ऐसी ऐसी बातों का निर्णय सुना सामाजिक रूप से लोगों को कुरूप बनाने वाले हमारे न्यायपालिका के मठाधीश. इन चोट्टों सालों को नंगी फिल्म बनाने वालों ने पैसे का बण्डल तो नहीं खिला दिया.
जय जय भड़ास
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