मेरी जूती...
बुधवार, 9 फ़रवरी 2011
आज मेरी जूती चमक रही है तो सबकी आंखों में चुंधियाहट घुस रही है। दरअसल मेरी जूती है ही ऐसी, चमकती, चमचमाती, दमदार और खालिस चमड़े की बनी है मेरी जूती। मेरी जूती बनाने वाली कंपनी ने वादा किया है कि बहुत जल्द वे मेरे लिए ऐसी जूती इजाद करेंगे, जो एशियन पेंट की तरह दीवारों पर धूल-मिट्टी नहीं जमने देगी। काश! कंपनी वालों ने वह जूती अभी बना ली होती तो न्यूज़ चैनलों में चलने वाले जूती सफाई अभियान के फूटेज न बने होते, क्योंकि तब न जूती पर डस्ट जमती और न ही सरकारी अधिकारी पस्त होते। मेरी जूती की राम कहानी भी कुछ ऐसी ही है, बड़े संर्घष के बाद आज जूती को जूतों के साथ चलने का मौका मिला है, तो जूतों का एक धड़ा इसे अपना अपमान समझ रहा है। हजारों सालों तक हमारे पूर्वजों ने यह जूती छुपा कर रखी थी, क्योंकि तब उन्हें जूते-जूतियां पहनने का नहीं बस बनाने का अधिकार था। आज स्थिति उलट रही है और परिस्थिति पलट रही है तो पोंगापंथियों का ज्ञान कुलांचे मार-मारकर बुराईयां कर रहा है कि आखिर जूती चमकी तो चमकी कैसे?
जूतोपनिषद में यह बात स्पष्ट रुप से लिखी गयी है कि एक दिन ऐसा आएगा जब एक चमचमाती जूती की चमक से एक पूरे प्रदेश की आंखें चुंधियायी रहेंगी। आज वह दिन आ गया है और शायद समय भी। क्योंकि एक जूती की चमक ने कईयों की आंखे खोल दी हैं। तथाकथित सभ्य और सुसंस्कारित व स्वनामधन्य बहुरुपियों ने इस चमक रही जूती को चमकाने वाले पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये हैं, कि यह तो व्यवस्था का अपमान है, उसी व्यवस्था का जिसमें सबको बराबरी का हक दिया गया है मगर नेताओं और आम आदमी का फर्क खुली आंखों से साफ देखा जा सकता है। सदियों का यही विरोधाभास आज जूती की चमक में साफ-साफ दिख रहा है और दिखा रहा है दुनिया को कि देखो सिर्फ बड़े नंबर वाले मंहगे जूते ही नहीं चमकते बल्कि कम नंबरों वाली छोटी सी जूती भी चमकती है तो अपनी चमक से चारों ओर चमचमाता प्रकाश फैला देती है।
रुमाल पुराण के एक सौ आठवें अध्याय में यह स्पष्ट किया गया है कि आने वाले समय में एक जूती की सारी चमक एक रुमाल पर आकर टिक जाएगी। जैसे ही वह जादुई रुमाल अलादीन के चिराग जैसी जूती को छुएगी, एक चमत्कार होगा। पूरी दुनिया इस चमत्कार का लाइव टेलिकास्ट देखेगी और कहेगी कि वाह क्या रुमाल है, जिसने जूती को छू भर दिया और बवाल मच गया। सच तो यही है कि यह रुमाल भी बरसों-बरस से इस जूती को छूने के लिए बेकरार था, या यूं कहिए कि जूती को इसी रुमाल का इंतजार था चमकने के लिए। अधिकारी बुद्धि भ्रष्ट नहीं था, उसने दिखा दिया कि सच क्या है? क्यों हम नेताओं को जन सेवक समझते हैं जो कि वे हैं ही नहीं। वे शासक हैं, राजा-रानियों की परंपरावाले। अधिकारी बुद्धि भ्रष्ट नहीं था, क्योंकि उसने दर्शा दिया कि हमारे देश में चाटुकारिता, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चमकती जा रही है, का कितना प्रकोप है। खैर, कुछ पथभ्रष्ट बुद्धिजीवियों को जूती पर खिंच रही दो-दो घंटे की लाइव स्टोरी जंच रही है। उनका मानना है कि बुश पर फेंके गये जूते के बाद पूरी दुनिया में जूती, चप्पल और खड़ाऊं का नामलेवा नहीं बचा था। लेकिन धन्य रे जूती रानी तूने समय के साथ यह बात पुख्ता कर दी कि किसी की भी हूकूमत ज्यादा दिन तक नहीं चलती, अभी तक जूते की जय-जयकार थी लेकिन अब जूती के अत्याचार का मार्मिक चित्रण चल रहा है.....
जूती के साथ हुए साक्षात्कार के आधार पर-
4 टिप्पणियाँ:
बहुत बढिया ,बहुत बढिया ,लगे रहो ,जूती महा काव्य न जाने क्या क्या गुल खिलाएगा
sir kya khub likhi hai, aaj naukarshai sare hade paar kar gai hai. Desh ka halat kisi se chupi nahi hai par sare log ankh band kiye hue hai, andher nagri chaupat raja. ek kranti ho tabhi in sphedposho par ankuch lagega...
sir kya khub likhi hai, aaj naukarshai sare hade paar kar gai hai. Desh ka halat kisi se chupi nahi hai par sare log ankh band kiye hue hai, andher nagri chaupat raja. ek kranti ho tabhi in sphedposho par ankuch lagega...
Desh ka kya hoga ye to pata nahi par ye leader log apna bhala jarur kar rahe hai, koi bolne ke liye tyar nahi hai bus ankh band kar ke so rahe hai, bhagwan bachaye is desh ko??
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