चंद्रशेखर "आज़ाद" हर पल शहीद हो रहे हैं
सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
शहादत का अर्थ होता है किसी घटना का सच्चा साक्षी होना। ’हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’ की स्थापना के समय उन्होंने जिस घटना का साक्षी बनना चाहा रहा वह था भारत को स्वतंत्रता मिलने पर एक समाजवादी गणराज्य बनना। 23 जुलाई 1906 के दिन जन्मे वीर चंद्रशेखर ने स्वयं को एक व्यक्ति के स्थान पर एक विचार के रूप में स्थापित अपने शरीर के रहते ही कर लिया था। अपनी उस पिस्तौल के साथ जिसे उन्होंने "बम तुलबुखारा" नाम दिया था भले ही आज समाज में न घूम रहे हों लेकिन वे आज भी एक महाविचार की क्रान्ति को प्रेरित करते हैं। भले ही हमारे देश के अमीर मोहनदास करमचंद गांधी के सामान को विदेश से लेकर आ जाते हैं लेकिन वो पिस्तौल और उसके साथ संलग्न विचार कभी देश में नहीं लाना चाहते क्योंकि वे जानते हैं कि फिर वो "आज़ाद" सामने आ जाएगा। आज का दौर हो या आने वाला कल, आज़ाद कभी भी समयबाह्य नहीं हुए। आतंकवाद की जड़ों को वे समझते थे साथ ही उसका उपचार भी जानते थे, आज के मुखौटाधारी नेता, साधु भले ही कुछ भी शोशेबाजी करके छाए रहने का प्रयास करें लेकिन उनमें वो बात नहीं आ सकती जो कि आज़ाद में है।
वो हर समय हमारे बीच एक विचार के रूप में मौजूद हैं और कभी भी शरीर धारण कर सकते हैं। ये चेतावनी हमारे देश के काले अंग्रेजों के लिये है जो कि जनता का खून और संसाधनों को अपनी बपौती समझ कर चूस रहे हैं। याद रखें वे लोग कि भले ही बम तुरुबुखारा देश में न लाया जाए लेकिन उस बारूद को कौन रोक लेगा जो विचारों से बिखर रही है।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
दीदी ये तस्वीर लगा कर तो आपने टू-मच हो गया है
चंद्रशेखर आजाद के शहीद दिवस पर लोग काफ़ी व्यस्त थे इसलिये याद नहीं रख सके। जिन अखबारों ने औपचारिकता करी भी तो बस ऐसे ही...
जय जय भड़ास
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