अनूप मंडल के पास सिर्फ एक पीपनी है वो भी बेचारे बजाना भूल गये

गुरुवार, 3 मार्च 2011

7 टिप्पणियाँ:

अनोप मंडल ने कहा…

एक की बजाए सबकी बजै सब की बजाएं सब चुप्प्प्प.....
बहादुर अमित सिर्फ़ एक की ही बजा देने से ये हाल है कि कोई राक्षस इस मंच की तरफ आने में एक हजार बार सोचता है और फिर चुप्पी साध लेता है चाहे वह महावीर सेमलानी हो या फिर संजय बेंगाणी या धीरज शाह....
क्या पीपनी का सुर कैसा लगा?
जय नकलंक देव
जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अमित भाई तुस्सी ग्रेट हो जी :)
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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यह धीरज शाह कौन है मित्र अनोप ?

कहीं आप मेरी बात तो नहीं कर रहे... मेरे ब्लॉग पर आ कुछ जवाब देने की हिम्मत तो जुटा नहीं पाये तुम सारे!


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अनोप मंडल ने कहा…

एक और छद्मवेशी मायावी राक्षस आया जो कि अभी मुंह फाड़ कर सवाल जवाब की बातें कर रहा है लेकिन आगे के विमर्श में ये भी अमित जैन की तरह चुटकुले सुनाने लगेगा या फिर महावीर सेमलानी के अंदाज में अदृश्य हो जाएगा।
प्रवीश शाह यदि साहस है तो अपने सवाल भड़ास पर भेज दो ई-मेल के जरिये
bharhaas.bhadas@blogger.com
ताकि सबके सामने विमर्श हो सके साहस, दुःसाहस और कायरता के साथ ही तुम्हारे इंद्रजाल की भी चर्चा कर लेंगे। स्वागत है जिनों के उपासकों...
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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अबे यह 'अनोप मंडल' के नाम से लिखने वाले ३००० (???) चू _यों, मैं तुम्हें मित्र कह रहा हूँ और तुम मुझे राक्षस, पहली बात यह कि मैं जैन नहीं, सालों कभी अपनी खिड़की-दरवाजे के बाहर निकलो तो उत्तराखंड के कुमाँऊ में जाकर पता करना कि वहाँ 'शाह' कौन लोग होते हैं... रही बात सवाल जवाब की तो एक ही बात पर बार-बार पोस्ट लिखने का फोकट का टाईम नहीं है अपुन के पास...
वो क्या कहते हैं कि ' _ _ में गूदा है' तो बताओ साबुत, बिना कटे पपीते के अंदर अंडे देकर कहाँ भाग गई मुर्गी ? सालों जब तुम्हारे दिमाग में ही मुर्गी है तो वह अंडे तो कहीं भी दे ही देगी, पपीता क्या चीज है... उन अंडों का आमलेट खाओ और मस्त रहो!



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मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

अनूप मंडल के लोगों ने जैसे ही प्रवीण शाह को सही पहचान से पुकारा तो तुरंत औकात पर आ गया। अनूप मंडल को एक और की सही पहचान कराने के लिये धन्यवाद।
शाह कौन होते हैं ये जानने के लिये किधर-किधर जाना पड़ेगा? फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह क्या उत्तराखंड के कुंमाऊं का है दुष्ट दानव? अनूप मंडल के लोग राक्षसों की पहचान करा रहे हैं शाहों की नहीं। अब तो जैन लोग अग्रवाल,अग्गरवाल,अगरवाल आदि सरनेम प्रयोग करके हिंदुओं में घुसने लगे हैं। अब जब तीन हजार से ज्यादा चूतियों को अपनी पत्नी का भाई मान कर साला बना ही लिया है तो जरा सही विमर्श में आओ। -- क्या है क्या तुम्हारे पास ये पुर्जा है नहीं जो इसका नाम नहीं पता?? गूदा हो या गू ये तो तुम्हें हाथ डालने पर पता चलेगा। आओ तो एक बार.....
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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हा हा हा हा,

मुझे शक पहले से था, क्योंकि एक बार पहले भी इन्ही साहब ने मुझ से सवाल पूछती पोस्ट लगाई थी... इसलिये मैंने जान बूझ कर एक ऐसे स्टाइल में कमेंट दिया जो मेरा स्टाइल नहीं है... फायदा यह हुआ कि चोट सही जगह लगी व सबको पता चल गया कि अनोप मंडल के नाम पर यह सारी अनर्गल बकवास श्रीमान मुनेन्द्र सोनी जी करते हैं... यह भी शायद अनोप मंडल के 'भाविक' हैं... जनाब अपनी प्रोफाईल में पेशा Goldsmith लिखते हैं पर एक ऐसी संस्था के सदस्य हैं जो व्यापारी वर्ग के विरूद्ध नफरत को बढ़ाती है तथा जिसके द्वारा प्रकाशित जगतहितकारणी व आत्मापुराण नामक किताबें १९५७ से प्रतिबंधित हैं... यह प्रतिबंध पिछले ४५ साल से लगा हुआ है जबकि यह प्रतिबंध हटाने के लिये मंडल आये दिन धरने पर बैठा रहता है... मैंने तो अपने शब्द/भाषा चयन का कारण स्पष्ट कर दिया व मुनेन्द्र सोनी जी के लिखे पर सिर्फ इतना ही कहूँगा कि किसी इंसान को यदि गुस्से में कोई काला कव्वा कह भी देता है तो भी न तो वह काला हो जाता है न ही उड़ने लगता है... मैं उनके द्वारा मुझे दिये गये सभी विशेषणों व अपशब्दों को जस का तस उन्हें वापस करता हूँ... वैसे उन्होंने बताया नहीं कि पपीते में अंडे देकर मुर्गियाँ गई कहाँ... :)



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