धीरज शाह जी आप कन्फ़्यूजिया गये हैं एक बार दोबारा पधारिये

रविवार, 13 मार्च 2011

धीरज शाह भाई,आपने मुनेन्द्र सोनी को अनूप मंड्ल मान और जान लिया और ठहाका भी मार लिया तो एक बात पर और ठहाका मार लीजिये कि मुनेन्द्र सोनी का अनूप मंडल से कोई संबंध नहीं है वो झांसी शहर के रहने वाले एक वकालत की पढ़ाई करे महाशय हैं जो कि वकालत के साथ अपने पैतृक व्यवसाय में पिताजी का हाथ बटाया करते थे किन्तु पिताजी के निधन के बाद अब वे स्वयं ही दुकान चला रहे हैं। भड़ास के मुरीद हैं मैं उन्हें पिछले तकरीबन उन्नीस सालों से जानता हूं।
आपको कुछ नयी बातें बताना चाहता हूं कि अनूप मंडल और मुनेन्द्र की भाषा और लेखन शैली में पर्याप्त अंतर है अनूप मंडल के आलेखों को लिखने वाले तमाम लोग हैं जो कि एक ही सुर में अलापते हैं आपको भ्रम कैसे हो गया कि मुनेन्द्र सोनी ही अनूप मंडल के नाम से लिख रहे हैं? अनूप मंडल की पुस्तकें यदि प्रतिबंधित हैं तो ये लोग खुलेआम कैसे घूम कर किताबें बांट रहे हैं और वो भी बस जैनों को निशाना बनाते हुए इन्हे संवैधानिक तौर पर रोका जा सकता है लेकिन क्यों कोई जैन इनके आलेखों का प्रिंट निकाल कर इस संस्था को प्रतिबंधित करा देता ताकि इनकी जुबान बंद हो जाए ये सवाल तो मेरा भी है?
मुर्गी के अंडों के साथ पपीतों से बकरे के कटे हुए चार पैरों से साथ साड़ी का सवा मीटर टुकड़ा तथा अन्य बहुत सारा सामान निकला था। ये विषय मुझसे संबद्ध है इस विषय पर आप मुझसे भी बात कर सकते हैं। यदि मुर्गी पपीतों में अंडे देकर भाग गयी तो बकरा/बकरी अपने पैर छोड़ कर किधर भाग गया/गयी ये भी जानना जरूरी है। इस विषय पर अनूप मंडल ने मुझे लिखने से रोक दिया था कि संभव है कि मैं माताजी के देहावसान के दुःख में किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अंटशंट लिख सकता था और मैंने इस आग्रह को मान भी लिया क्योंकि उस समय मैं सचमुच असंयत था लेकिन अब मैं इस विषय पर लिख सकता हूं और निजी तौर पर चाहता हूं कि इस विषय पर विद्वान लोग साहस करके चर्चा व विमर्श करें मात्र परिहास-उपहास में न उड़ा दें।
सप्रेम
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

प्रवीण ने कहा…

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प्रिय व आदरणीय डॉ० रूपेश श्रीवास्तव जी,

आपकी इस पोस्ट के लिये आभार, परन्तु मैं भी कुछ कहना चाहूँगा...

१- मेरा नाम प्रवीण शाह है धीरज शाह नहीं...
२- मैं काफी हद तक आश्वस्त हूँ कि मुनेन्द्र सोनी जी भी अनोप मंडल के 'भाविक' हैं, यह मानने के मेरे पास पर्याप्त आधार हैं...
३- मैंने अब तक चार बार अपनी पोस्ट bharhaas.bhadas@blogger.com पर इ-मेल की है... आप यदि चाहते हैं कि इस विषय पर विद्वान लोग साहस करके चर्चा व विमर्श करें मात्र परिहास-उपहास में न उड़ा दें।... तो कृपया मेरी पोस्ट छापें... तभी तो बहस होगी आगे...
४- जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट में कहा भी है कि भड़ास के मॉडरेशन से टिप्पणी को बाहर आने में ४८ घंटे तक लग रहे हैं, ब्लॉगिंग में इतना धैर्य नहीं किसी के पास... अत: या तो यह मॉडरेशनोपरान्त छपना तुरन्त हो या मॉडरेशन हटा दीजिये...
५- आपकी माताजी के देहावसान से मैं भी दुखी हूँ, दिवंगता को मेरी श्रद्धांजलि व नमन...



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बेनामी ने कहा…

आपकी माताजी के देहावसान पर हमारी भी स्रद्दांजली,किन्तु किसी भली आत्मा के मृत्यु उपरांत उस भली आत्मा को टोने-टोटके के नाम घसीटना और कीसी मंड्ल-बंडल के प्रचार में उपयोग करना ठीक तो नहीं है।

जिस उपहास वगेरा से दुख हो रहा है वह इस अनूप का ही क्रियाक्रम है।

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