Fwd: भड़ास पर छपने के लिये मेरी भड़ास... प्रवीण शाह

रविवार, 13 मार्च 2011



---------- Forwarded message ----------
From: प्रवीण शाह <captainpraveenshah@gmail.com>
Date: 2011/3/12
Subject: भड़ास पर छपने के लिये मेरी भड़ास... प्रवीण शाह
To: bharhaas.bhadas@blogger.com


शीर्षक : क्या और कैसा विमर्श चाहता है अनोप मंडल व डॉ० रूपेश श्रीवास्तव से एक आग्रह भी...

संदर्भ समझने के लिये पहले <a href="http://bharhaas.blogspot.com/2011/03/blog-post.html">यह पोस्ट पर उस पर की गई टिप्पणियाँ भी </a> पढ़ें...
पोस्ट पर मेरी अंतिम टिप्पणी है...

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हा हा हा हा,

मुझे शक पहले से था, क्योंकि एक बार पहले भी इन्ही साहब ने मुझ से सवाल पूछती पोस्ट लगाई थी... इसलिये मैंने जान बूझ कर एक ऐसे स्टाइल में कमेंट दिया जो मेरा स्टाइल नहीं है... फायदा यह हुआ कि चोट सही जगह लगी व सबको पता चल गया कि अनोप मंडल के नाम पर यह सारी अनर्गल बकवास श्रीमान मुनेन्द्र सोनी जी करते हैं... यह भी शायद अनोप मंडल के 'भाविक' हैं... जनाब अपनी प्रोफाईल में पेशा Goldsmith लिखते हैं पर एक ऐसी संस्था के सदस्य हैं जो व्यापारी वर्ग के विरूद्ध नफरत को बढ़ाती है तथा जिसके द्वारा प्रकाशित <a href="http://www.bhaskar.com/2010/02/10/100210071656_anop_mandal.html">जगतहितकारणी व आत्मापुराण नामक किताबें १९५७ से प्रतिबंधित </a> हैं... यह प्रतिबंध पिछले ४५ साल से लगा हुआ है जबकि यह प्रतिबंध हटाने के लिये <a href="http://www.bhaskar.com/2010/03/04/100304012543_330310.html">मंडल आये दिन धरने पर बैठा रहता है</a>... मैंने तो अपने शब्द/भाषा चयन का कारण स्पष्ट कर दिया व मुनेन्द्र सोनी जी के लिखे पर सिर्फ इतना ही कहूँगा कि किसी इंसान को यदि गुस्से में कोई काला कव्वा कह भी देता है तो भी न तो वह काला हो जाता है न ही उड़ने लगता है... मैं उनके द्वारा मुझे दिये गये सभी विशेषणों व अपशब्दों को जस का तस उन्हें सधन्यवाद वापस करता हूँ... वैसे उन्होंने बताया नहीं कि <a href="http://praveenshah.blogspot.com/2011/01/blog-post_21.html">पपीते में अंडे देकर मुर्गियाँ गई कहाँ... :) </a>...


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अपनी तो समझ में ही नहीं आता कि किस बात पर व कैसा विमर्श चाहता है अनोप मंडल (मुनेन्द्र सोनी)... विमर्श तो बाद में करते रहेंगे पहले हमारे सवाल का जवाब मिले... हो सकता है साधु अनूप दास जी को उनके जीवन काल में कुछ जैनधर्मियों द्वारा विरोध झेलना पड़ा हो इसलिये उन्होंने 'सातों-आठों विलायतों के बादशाह और खासकर दयालु महाराजाधिराज पंचम जॉजॅ बहादुर की खिदमत में हाथ जोडकर अर्ज ' करते हुऐ एक सर्वहितकारणी प्रार्थना की... जिसकी भूमिका में लिखा है...

" परमात्माने नमः
मैं साधु अनूपदास उस, परमात्मा को अनेक धन्यवाद देता हू कि, जिसने पहाड, नदी नाले, समुद्र आदि अनेक – अनेक आश्चर्य युक्त इस पृथ्वी को बनाया और मनुष्य, पशु, पक्षी आदि एक से एक विचित्र जीव इसमें उत्पन्न किए, पर उसकी कारीगरी का भेद किसी को मालूम नहीं पड़ा । ऐसी विचित्र सृष्टि में दूसरी विचित्रता क्या देखी कि, सौदागर महाजनांन ने ऐसा जाल रच रखा है, कि उसमें जो शख्स फॅंसता है फिर उसका निकलना मुश्किल हो जाता है । इसलिए मैं दुनिया के हिन्दू, मुसलमान, फकीर, साधु, सन्त, महाराजा, राजा, सातों-आठों विलायतों के बादशाह और खासकर दयालु महाराजाधिराज पंचम जॉजॅ बहादुर की खिदमत में हाथ जोडकर अर्ज करता हूँ कि जिसको जादूचाला, राक्षसी विद्या या काफिर विद्या और इन्द्रजाल कहते है, यह महा पाप है । इसको पहले रावण ने चलाया था, लोगों की धन दौलत अकाल पड़ा-पड़ाकर अपने काबू में कर ली थी, फिर राजा हरनाकुश, कंश और कारुन बादशाह ने भी इस इन्द्रजाल को चलाकर लोगों को बड़ी तकलीफ दी थी । इन लोगों के पीछे बलराजा और उसके बाद इन बनियों ने इस राक्षसी पाप से काल पड़ाना शुरु किया है जैसे पहले रावण के वक्त में विभीषण की मदद से शनिचर ने इस इन्द्रजाल का पता लगाकर लोगो को आगाह किया था और सब प्रजा को इस जाल से बचने की राह बताई थी, उसी तरह मैंने भी इन सौदागर महाजनांन के जाल से बचाने के लिण इस पुस्तक में जो कुछ अर्ज किया है, उसको पढ़कर सब लोग होशियार रहें, कभी इन महाजनांन के जाल में न आवें, नहीं तो इनके जाल में फँस जाने से लोगों की बुद्घि भ्रष्ट हो जाती है और लोगों को यह भी पता नहीं लगता कि हमारा नुकसान क्यों हो रहा है और कैसे अच्छा होगा ? मैं परमदयालु परमेश्वर तथा प्रजारक्षक अंग्रेज महाराज से फिर भी प्रार्थना पूर्वक कहता हूँ कि आप मुझ गरीब अनूपदास की इस सर्वहितकारनी प्रार्थना को स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित करेंगे ।

सर्वहितेच्छु साधु अनूपदास."

 



जॉर्ज पंचम ने इस अपील पर  साधु अनूप दास जी को अनुग्रहीत किया या नहीं यह तो नहीं पता... पर आज के युग में इस प्रतिबंधित अपील के आधार पर जाति विशेष के विरूद्ध वैमनस्य फैलाने व तंत्र मंत्र का नाम लेकर लोगों को डराने व गुमराह करने का क्या औचित्य है... आइये इस पर विमर्श करें...


डॉ० रूपेश श्रीवास्तव जी से भी मेरा यह अनुरोध है कि भड़ास एक ऐसा मंच है जिसकी जरूरत थी, है व रहेगी... परंतु उन्होंने टिप्पणियों पर मॉडरेशन लगाया हुआ है व टिप्पणियाँ मॉडरेशन से बाहर आने में ४८ घन्टे तक लगा देती हैं... क्या मॉडरेशन की वाकई जरूरत है... यदि है, तो भी टिप्पणियाँ यथाशीघ्र छपनी चाहिये...


आभार!



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2 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

प्रवीण जी मैं अनूप मंडल की तर्कशीलता से प्रभावित हूं न कि उनके किसी संत या बाबा से ये तो मैं आपको स्पष्ट कर दूं। रही बात मेरे व्यापारी होने की तो मैं शुभ-लाभ के व्यापार पैटर्न में यकीन रखता हूं। किसी के गहने आदि गिरवी रखने और ब्याज खाने की बातें आपसे किसने कह दीं या फिर दिन में सपने आने लगे हैं आपको? आखिरी बात कि अनूप मंडल व्यापारी वर्ग का विरोध नहीं करता वो तो बस जैनियों का विरोध करते हैं ये क्या आप जानबूझ कर बात घुमाने और मरोड़ने का काम नहीं कर रहे?
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

मुनिन्द्र सुनार,

शुभ-लाभ का मतलब मां के गहने से भी सोना चुरा लेना नहीं होता।

साधु? अनोपा तो खुद को महाजनो का ही द्वेषी बताता है,उसमें जैन तो तुम जैसे नये अनुपमंड्लिको के दुर्भाविको ने जोडा है। महाजन का मतलब ही व्यापारी वर्ग होता है। सभी महाजन जैन नहीं होते।
आप तो उसके माननेवाले भी किसी न किसी तरह का व्यापार कर बिचारे अनोपे की आत्मा को दुखी कर रहे है।
जब उसके दुर-सिधांत ही नहीं समझ पाए तो तर्कशीलता क्या खाक समजोगे?

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