अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना। - प्रदीप सिंह
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अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना।
17 घंटे पहले

1 टिप्पणियाँ:
जिनों की उपासना करने और उसे धर्म का लेबल लगा कर प्रचारित करना कितने हजार साल पुराना है???
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
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