अंततः प्रवीण शाह और अमित जैन दोनो गधे नहीं बल्कि महागधे ही सिद्ध हुए - भाग चार

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

इस पूरे प्रकरण में मैंने स्वयं ये लिखा है कि वीडियो कोई बहुत विश्वसनीय प्रमाण नहीं हो सकता क्योंकि वह मार्फ़िन्ग करके कुछ भी बनाया जा सकता है साथ ही फोटोग्राफ़्स में भी हजारों कलाकारियां करी जा सकती हैं। लेकिन इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात जिसे बार बार पीछे धकेला जा रहा है वह ये है कि चश्मदीद गवाहों की उपस्थिति में उस घटना का घटित होना और उसके बाद उन सभी चश्मदीदों द्वारा उस तांत्रिक पर विश्वास न करते हुए पुनः उस सामग्री, कटे हुए फलों आदि की वीडियो कैमरे के सामने जांच करना। क्या ये महत्त्वपूर्ण नहीं है कि ये चश्मदीद गवाह कौन हैं?? स्वयं डा.रूपेश श्रीवास्तव जिनके व्यक्तित्त्व के बारे में हम सब जानते हैं, दूसरी उन्हीं की तरह महाखुर्राट भड़ासिन बहन मुनव्वर सुल्ताना, सुन्नी मुसलमानों में तर्कों से धर्मांधता फैलाने वाले दढ़ियल मौलानाओं को रुला दिया करने वाले "बम" उपनाम से मशहूर बुजुर्ग भड़ासी जनाब मोहम्मद उमर रफ़ाई, इनके साथ ही डा.साहब के बड़े भाई श्री भूपेश श्रीवास्तव व बड़ी बहन श्रीमती भारती सक्सेना ; ये सभी लोग पूरी तरह होशोहवास में थे। हमारे देश का संविधान तक गवाहों के बैकग्राउंड को ध्यान में रखते हुए न्यायप्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण घटक स्वीकारता है लेकिन प्रवीण शाह और अमित जैन ही सबसे ज्यादा शाणे हैं बाकी सब इनकी नज़रों में मूर्ख हैं। असल बात तो ये है कि ये प्रयास सिर्फ़ इस प्रकरण पर धूल डालने के माध्यम से गम्भीर विषयवस्तु से ध्यान हटाने का है।
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

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