पूर्व कानून मंत्री रह चुके शांतिभूषण जी अण्णा हजारे के प्रतिनिधि हैं जिन्हें जस्टिस आनन्द सिंह के नाम से ही बुखार आ जाता है
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
अभी जब हमारे भाई भड़ासाधिपति डा.रूपेश श्रीवास्तव जी ने अण्णा हजारे और लोकपाल विधेयक के बारे में लिखा कि मोमबत्तियां जला कर समर्थन करने वालों के अंदर जलती मोमबत्ती घुसा देनी चाहिये ताकि अंतर्मन आलोकित हो जाए, इस बात पर एक बेनामी टिप्पणी ने अपना रोष व्यक्त करा। मैं नहीं जानना चाहती कि वो बेनाम बंदा/बंदी कौन है पर सब ये जान लें कि शांति भूषण क्या हैं और देश के संविधान की पतली हालत को बखूबी समझते हैं। हमारे जस्टिस आनन्द सिंह जी जो कि एक जमाने से न्याय प्रक्रिया में समीक्षा करके सार्थक बदलाव लाने की मांग कर रहे हैं अपने मामले को लेकर इन हजरत से मिल चुके हैं और जब सारा मामला ये समझ गए तो चुप्पी साध गए। अण्णा हजारे के कंधे पर बंदूक रख कर चलाने वाले लोकपाल बन कर नए मुखौटे में जनता का खून चूसेंगे ये हमारी बेवकूफ़ जनता नहीं जानती उसे तो बस समर्थन रैलियां निकालना आता है। दूसरी बात जान लीजिये कि इस पूरे ड्रामे में मीडिया का रोल भी कम नहीं है क्योंकि मलाई में से हिस्सा तो इन्हें भी मिलेगा।
जिसको जो समझ में आए वो करिये।
हमारे भड़ासी भाई वकील साहब सुमन जी तो देश की स्थिति और विधि,न्याय प्रक्रिया को भली प्रकार जानते हैं वे इस बारे में क्या राय रखते हैं?
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
nice
मैं आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूं क्योंकि जब तक हमारे देश की जनता की सोच लोकतंत्र के अनुकूल परिपक्व नहीं हो जाती ऐसी व्यवस्थाओं और कानूनों का कोई औचित्य नहीं है। शांतिभूषण हों या अशांतिदूषण इस सिस्टम में सारे के सार खरदूषण ही सिद्ध होते हैं जैसे ही ताकत हाथ में आती है इनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। आप देखिये कि भाई सुमन जी भी हमारी बात से सहमत हैं और अपने अंदाज़ में सहमति जता रहे हैं।
जय जय भड़ास
मैं भी आप सब की सोच से इत्तेफ़ाक रखता हूं।
बुखार की गोली बाटने फिर आ गये वकील साहब
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