वर्चस्‍वकारी तबका नहीं चाहता कि हाशिये के लोग मुख्‍य धारा में शामिल हों

सोमवार, 9 मई 2011

वर्चस्‍वकारी तबका नहीं चाहता है कि हाशिये के लोग मुख्‍यधारा में शामिल हों
हिंदी विवि में ''हाशिये का समाज'' विषय पर आयोजित परिसंवाद में हरिराम
मीणा का उदबोधन
वर्धा 09 मई, 2011; महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,
वर्धा में ''हाशिये का समाज'' विषय पर आयोजित परिसंवाद में बतौर मुख्‍य
वक्‍ता के रूप में सुप्रसिद्ध आदिवासी साहित्‍यकार व राजस्‍थान के
आई.जी.ऑफ पुलिस पद पर कार्यरत हरिरा मीणा ने कहा कि समाज का
वर्चस्‍वकारी तबका नहीं चाहता है कि हाशिये के लोग मुख्‍यधारा में शामिल
हों।
फादर कामिल बुल्‍के अंतरराष्‍ट्रीय छात्रावास में आयोजित समारोह की
अध्‍यक्षता विवि के राइटर-इन-रेजीडेंस सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार से.रा.
यात्री ने की। इस अवसर पर विवि के राइटर-इन-रेजीडेंस कवि आलोक धन्‍वा,
स्‍त्री अध्‍ययन के विभागाध्‍यक्ष डॉ.शंभु गुप्‍त मंचस्‍थ थे। हरिराम
मीणा ने विमर्श को आगे बढाते हुए कहा कि स्‍त्री, दलित, आदिवासी, अति
पिछड़ा वर्ग, ये 85प्र‍तिशत समाज हाशिये पर हैं, इसी पर प्रजातांत्रिक
प्रणाली टिकी हुई है। दिन-रात मेहनत करने पर भी इन चार वर्गों को मूलभूत
सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। समाज की वर्चस्‍ववादी शक्तियां इनके
व्‍यक्तित्‍व विकास में रोड़े अटकाती हैं।
समाज के प्रभुवर्ग द्वारा हाशिये वर्ग का किस प्रकार से शोषण किया जा रहा
है, का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि आदि मानव व श्रमसाध्‍य मानव को
धकेल कर हाशिये पर किया गया है। ये दलित, दमित, शोषित हैं। दलित, अछूत
वर्ग यह एक समाजशास्‍त्री अवधारणा है, समाज के स्‍तर पर इनका दमन किया
गया है। राजशक्ति के तौर पर भी इनका दमन किया गया है। अर्थशास्‍त्री
दृष्टिकोण से इनके श्रम का शोषण किया जाता रहा है। आज 85 प्रतिशत तबके के
श्रम को मान्‍यता नहीं देना एक वर्चस्‍व बनाए रखने की साजिश है। आखिर कौन
नहीं चाहेगा कि उनका विकास हो, पर विकास किसके लिए हो रहा है, यह एक बड़ा
सवाल है। बांध बनाते वक्‍त जिन्‍हें विस्‍था‍पित किया जाता है, उनके घरों
में बिजली नहीं दी जाती है अपितु बिजली शहरों में भेजी जाती है। झाबुआ
जिले में इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनवा कर दिया गया पर आदिवासियों
ने उन्‍हें तोड़ दिया क्‍योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि मकान के बहाने
कहीं उनके जमीन को सरकार हड़प न लें। जंगल में ही रखकर आदिवासी संस्‍कृति
को सुरक्षित रखनेवाले लोगों से य‍ह अवश्‍य पूछा जाना चाहिए कि आपका समाज
चांद पर जाएगा और मूल समाज को जंगलों में ही छोड़ दिया जाएगा? क्‍या
उन्‍हें सिर्फ 26 जनवरी के झांकियों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता रहेगा ?
विकास बनाम आदिवासी संस्‍कृति का रक्षण करना है तो इन्‍हें परिधि से
केंद्र में लाना होगा, उन्‍हें विश्‍वास में लेना होगा। नक्‍सलवाद/माओवाद
पर चर्चा करते हुए उन्‍होंने बताया कि आखिर बेकसूर आदिवासियों को क्‍यों
मारा जा रहा है। आदिवासियों को मारनेवाले तथाकथित सभ्‍य समाज के लोगों को
पहले यह साबित करना होगा कि ये मनुष्‍य नहीं है। शोषणकारी सत्तासीन वर्ग
उन्‍हें दैत्‍य, दानव, असुर, राक्षस करार देते हुए पहले सिद्धांत गढता है
फिर उन्‍हें आतंकवादी करार कर उन्‍हें मारने का लाइसेंस हासिल कर लेता
है।
भूमंडलीकरण पर प्रकाश डालते हुए हरिराम मीणा ने कहा कि वैश्‍वीकरण,
उदारीकरण, निजीकरण का नारा आज कौन दे रहा है \ अमेरिका लादेन को पकड़ने
के लिए एयरस्‍पेस नियम का उलंघन करता है तो कोई बात नहीं, यही कोई और देश
करेगा तो यह एक बहुत बड़ी घटना के रूप में पेश किया जाएगा। वैश्‍वीकरण के
संदर्भ में चालाक, चतुर, टेक्‍नोक्रेट जानते हैं कि कैसे आम इंसान को
उपभोक्‍ता समाज तब्‍दील किया जा सकता है। पूंजी, बाजार और विज्ञापन इसके
वाहक हैं और इसका नायक अमेरिका है। आज मल्‍टीनेशनल्‍स के आधिपत्‍य में
हाशिये और भी शोषित होते जा रहे हैं। एक जिम्‍मेदार नागरिक के रूप में
स्‍त्री, दलित, दमित, शोषित की पहचान करनी पड़ेगी। आदिवासियों, दलित,
अतिपिछड़े वर्ग को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना पडे़गा तभी ये सब
मुख्‍यधारा में आ सकेंगे वर्ना प्रभु वर्ग हाशिये से भी धकेलते रहेगा।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में से.रा.यात्री ने कहा कि हमें आखिरी पायदान के
व्‍यक्ति को पहले पायदान पर लाने की प्रयास करने की जरूरत है।
प्रस्‍ताविक वक्‍तव्‍य में डॉ.शंभु गुप्‍त ने हाशिये के समाज को
मुख्‍यधारा में लाने के लिए विविध प्रसंगों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर
डॉ.सुनील कुमार 'सुमन', राकेश मिश्र, अखिलेश दीक्षित, शिवप्रिय समेत कई
प्राध्‍यापकों-शोधार्थियों आदि ने भी चर्चा में भाग लेकर बहस को
विचारोत्‍तेजक बनाया।

-अमित कुमार विश्‍वास

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