हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
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हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
23 घंटे पहले
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© भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८
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3 टिप्पणियाँ:
अमित जी कभी कभी तो आप पर दया आने लगती है कि अपनी कुटिलता को छिपाने के लिये क्या क्या करने लगते हो चुटकुलेबाजी, शायरी, कार्टूनिंग अब आगे न जाने किस लिमिट तक जाओगे
जय जय भड़ास
आयशा दया तो मुझे तुम पर आरही है ,की अब उन नमूनों को बचने के लिए तुम्हे आगे आना पड़ रहा है ,अगर तुम मे कोई इस तरह का शोंक है तो आप भी आ जाओ आजे मैदान मे , आप का भी स्वागत है ,क्यों क्या कार्टून बनाने, शायरी करने , चुटकले लिखने का काम सिर्फ सिर्फ कुटिल लोगो का है , अगर तुम्हारी एसी सोच है तो ,फिर तुम दया की ही नहीं तरस खाने की भी अधिकारी हो जाती हो ,
चुटकुले, शायरी लिखना सिर्फ़ कुटिल लोगों का काम नहीं है ये काम तो हमारे जैसे चूतियों के मुखिया भी कभी कभी कर लेते हैं।
जय जय भड़ास
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