हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
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हमारे बुजुर्ग - तुम्हिं हो मेरा श्रंगार प्रीतम तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
14 घंटे पहले
 
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1 टिप्पणियाँ:
अमित जी आप खुद तो बंदर, बिल्ली, गधा बना कर अपनी अक्ल के स्तर का परिचय देते हैं और शम्स ने जब पूरे तर्कपूर्ण ढंग से बात लिखी तो आप सिर्फ़ एग्रीगेटर्स को प्रभावित करने वाली हैडिंग्स लिखने की चाल चल रहे हैं। आपने हम सभी के लिये रिस्पेक्टेड डॉ.रूपेश को अपनी हरकतों से परेशान करना चाहा है वह माफ़ी के लायक नहीं है।
शम्स ने जो भी ब्लॉगर सेटिंग के बारे में बताया है उसके बारे में आप के पास कोई उत्तर है या बस कार्टून बना कर प्रवीण शाह की तरह के "बस मैं सच्चा बाकी सब झूठे" यही तर्क है।
जय जय भड़ास
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