अण्णा हजारे बनाम इरोम शर्मिला यानि ग्यारह दिन बनाम ग्यारह साल

शनिवार, 27 अगस्त 2011



यदि आपको डमरू की ताल पर नाचना आता है तो आप किसी मदारी के जमूरे या बंदर बन पाने की सहज योग्यता रखते हैं। अण्णा हजारे को शाँति भूषण, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल आदि ने मिल कर जिस तरह अपनी बात को लोकतंत्र में भीड़तंत्र का समीकरण इस्तेमाल करने के लिये प्रयोग करा है वह आप सबने देख ही लिया। मात्र ग्यारह दिन उपवास करके हजारे की आड़ में इन लोगों ने लोकतंत्र की गरिमा को बंधक बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। वहीं दूसरी ओर एक लड़की २ सितम्बर २००० से यानि कि आज लगभग ग्यारहवाँ साल चल रहा है Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 (AFSPA)के विरोध में आमरण अनशन छेड़े हुए है कितने लोग उसके बारे में दिलचस्पी रखते हैं। उस लड़की को भारत की पिछलग्गू जनता का सहयोग प्राप्त नहीं है वरना उसकी बात पर भी विचार तो होता, इस लड़की का नाम है "इरोम चनु शर्मिला" जिसे लोग "मणिपुर की लौहमहिला" कहते हैं।
यदि अण्णा हजारे में जरा सी भी शर्म और अक्ल बची है और सठियाने के प्रभाव से बचे हुए हैं तो अब जरा बाकी बची जिन्दगी इस लड़की की बात को समर्थन देकर उपवास में गुजारें तो जीवन सफल हो जाएगा। ये लड़की हर बार भारत सरकार द्वारा आत्महत्या के प्रयास में दफ़ा ३०९ के तहत गिरफ़्तार कर ली जाती है जिसमें करीब एक साल की सजा सुनायी जाती है जमानत तो इसे लेना नहीं होता है तो जुडीशियल कस्टडी में ही साल बीतता है और फिर सजा खत्म होते ही दो तीन दिन बाद दोबारा इसी अपराध के लिये गिरफ़्तार हो जाती है। आप सब ऊपर दिये चित्र में देख सकते हैं कि सशस्त्र सेनाओं द्वारा करे जा रहे अत्याचारों के विरोध में क्षेत्र की माँओ ने निर्वस्त्र विरोध प्रदर्शन करा था जिसमें उन्होंने पोस्टर उठा रखा था कि आओ हमसे बलात्कार करो।

हमारे देश के युवाओं और नपुंसक राजनेताओं ने इस दिशा में दिल्ली में कोई भी कारगर प्रयास करा होता तो ये शर्मिंदगी न हो लेकिन हमारे देश के युवाओं के लिये तो ये सब मनोरंजन मात्र है और रही बात नेताओं की तो उनका अल्लाह मालिक है।
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

sanjay ने कहा…

मुनव्वर आपा आपने सही लिखा है कि देश के मदान्ध लोग जो कि भीड़तंत्र को लोकतंत्र समझ रहे हैं भला इरोम शर्मिला जैसे लोगों को कैसे समझ सकते हैं। मैं इरोम शर्मिला के जज़्बातों को हृदय से नमन करता हूं।
जय जय भड़ास

ysanjai ने कहा…

irom sharmila ki haalat par aaj manavata sharminda hai, bharat sarkar ka pata nahin. Anna ji ko is ladai ko bal dena chahiye, par sharmila ki iss halat ka thinkara Anna ke sar phodana theek nahin. ek insaan ek samay mein ek hi sangharsh ka morcha khol sakta hai. Badi vinamrata se kahana chahata hoon ki hum sab bhi to keval yahan sookhi hamdardi jata rahen hain, kya koi ek baar bhi sharmila ka haath majboot karne gaya. iss liye doosaron ko andolan mein bhejane se behtar hoga swayam ke prayas par nirbhar hona.

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