कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
बुधवार, 17 अगस्त 2011
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
ये समय नहीं हैं आँख बंद कर सोने का
ये समय नहीं हैं वक्त को ऐसे खोने का
चलो बदल दो देश की हालत आगे आओ
ये समय नहीं हैं नेताओं को ढ़ोने का
वरना तुम घनघोर निराशा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
कह विकास का सर्वनाश यह करते आए
भारत माँ का मान सदा यह हरते आए
खाद, हवाला हो या हो चारा घोटाला
जेबें अपनी नोटों से यह भरते आए
क्या विकास की यह परिभाषा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
अपने स्वार्थ के खातिर जो विस्फोट कराते
मन्दिर, मस्जिद धर्म के नाम पर चोट कराते
चोर लुटेरे थे कल तक जो अपने देश में
नेता बनकर कितने जाली वोट कराते
इनकी ओर तुम किस आशा से देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
अब तो जरूरी है संभल जाना तुम्हारा
अब तो जरूरी है मचल जाना तुम्हारा
अब तो तुम्हारी आंखों से अंगार बरसें
अब तो जरूरी है उबल जाना तुम्हारा
दुष्टों को क्या खून का प्यासा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
राम राज्य सी हो जाए तस्वीर देश की
स्वर्ग से सुंदर हो जाए तस्वीर देश की
मूक बना यह देश तुम्हारी ओर देखता
नौजवान ही बदल सका तकदीर देश की
कब तक तुम और दीप बुझा सा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
ये समय नहीं हैं आँख बंद कर सोने का
ये समय नहीं हैं वक्त को ऐसे खोने का
चलो बदल दो देश की हालत आगे आओ
ये समय नहीं हैं नेताओं को ढ़ोने का
वरना तुम घनघोर निराशा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
कह विकास का सर्वनाश यह करते आए
भारत माँ का मान सदा यह हरते आए
खाद, हवाला हो या हो चारा घोटाला
जेबें अपनी नोटों से यह भरते आए
क्या विकास की यह परिभाषा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
अपने स्वार्थ के खातिर जो विस्फोट कराते
मन्दिर, मस्जिद धर्म के नाम पर चोट कराते
चोर लुटेरे थे कल तक जो अपने देश में
नेता बनकर कितने जाली वोट कराते
इनकी ओर तुम किस आशा से देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
अब तो जरूरी है संभल जाना तुम्हारा
अब तो जरूरी है मचल जाना तुम्हारा
अब तो तुम्हारी आंखों से अंगार बरसें
अब तो जरूरी है उबल जाना तुम्हारा
दुष्टों को क्या खून का प्यासा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
राम राज्य सी हो जाए तस्वीर देश की
स्वर्ग से सुंदर हो जाए तस्वीर देश की
मूक बना यह देश तुम्हारी ओर देखता
नौजवान ही बदल सका तकदीर देश की
कब तक तुम और दीप बुझा सा देखोगे ?...
कब तलक चुपचाप तमाशा देखोगे ?...
- अखिलेश सोनी, भोपाल
1 टिप्पणियाँ:
आप चुप नहीं हैं और हम भी नहीं है जिसे चुपचाप तमाशा देखना है वह इस कविता की ललकार से बहुत अपसेट हो जाएगा सोनी जी
जय जय भड़ास
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