डॉ.दिव्या श्रीवास्तव के नाम पत्र

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

पिछले कुछ समय से मैं भड़ास पर लिख नहीं पा रहा था लेकिन फिर भी दिन में एकाधा बार तो देख ही लिया करता हूँ कि क्या उगला निगला जा रहा है। डॉ.दिव्या श्रीवास्तव के ब्लॉग "ज़ील" पर जाकर देखा तो उन्होंने कुछ लोगों द्वारा ब्लॉगिंग में उगले जा रहे विष से तंग आकर ब्लॉगिंग ही बंद करने का निर्णय ले लिया। जिस पर तमामोतमाम प्रतिक्रियाएं हुईं।

दिव्या जी आपसे सीधी बात कहना चाहता हूँ कि आपके विचारों से असहमत होने पर मैंने भी कई बार भड़ास पर लिखा है लेकिन एकदम साफ़ बात है कि ये विरोध विचारों के स्तर पर ही है इसमें निजी बैर-विरोध का कोई स्थान नहीं है। डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी की टिप्पणी भी आपके आलेख पर पढ़ी और इस बात का एहसास हुआ कि वे सचमुच बहुत बड़े हैं और हम सब उनके सामने विचारों में बहुत ही छोटे हैं। शायद मुझे भी ऐसा लगा कि एक बड़े से परिवार में जब बड़े भाई अपनी छोटी गुड़िया सी बहन को खेल-खेल में चिढ़ाया करते हैं, कभी उसके गुड्डा-गुड़िया उठा कर ऐसी ऊंची जगह पर रख देते हैं जिधर उसका हाथ न पहुंचे या फिर कभी उसकी चोटी को हल्के से खींच देना और भाग जाना फिर जब बहन मारने को पीछे दौड़ती है तो उसका मजा लेना और जब वो चिढ़ कर रोने लगे तो उसे गोद में उठा कर खूब प्यार करना और अपने जेबखर्च से टॉफी बिस्किट दिलाने के लिये बनिया की दुकान चल पड़ना। कितनी सारी यादें हम सबके साथ जुड़ी हो सकती हैं बचपन से लेकर अब तक जो कहीं धूमिल हो गयी थीं लेकिन आप और गुरूदेव डॉ.रूपेश जी के प्यार ने सब दोबारा ताज़ा कर दिया। मेरे विचारों को भी आप बस चुटिया खींचना ही मानें लेकिन यदि कोई आपके साथ बदतमीजी करेगा तो इस बात को हममें से कोई भी हरगिज बर्दाश्त नहीं करेगा। भाई बहनों की एक दूसरे पर चुटकियाँ अलग बात है और अपमानित करना बिलकुल ही नाकाबिले बर्दाश्त क्योंकि ऐसे तो मैंने भी आपको जंग लगी लौह महिला कहा था लेकिन यदि हम गंवारों की इस बात से कोई उल्लू का पट्ठा ये सोचने लगे कि वो आकर मुंह उठाएगा और हमारी बहन को अपमानित करेगा तो हम उसका मुँह तोड़ देने के लिये हमेशा तैयार हैं, हम ठहरे निरे देहाती और गंवार लोग जिन्हें टिप्पणीकार खोने या फ़ॉलोवर खोने का कोई भय नहीं है। यदि इनमें से कोई भी इस भड़ासाना चेतावनी को नहीं समझता तो फिर हमें कहाँ है कोई काम धंधा या फिर मुद्दों पर लिखने की बीमारी..... सीधे इनके ब्लॉग पर जाकर इनका ऐसा तियाँ-पांचा करेंगे कि शायद सपने में भी आपसे हिमाकत करने की न सोचें। हमारे कमेंट डिलीट करके भी ये लुच्चे हमसे बच नहीं सकते इनसे लड़ने का अंदाज तो हम सबके बड़े भाई डॉ.रूपेश जी ने इन मक्कारों से ही सीखा है कि कौन से दांव लगा कर इन्हें पटकनी देकर घसीटना है। आपने दोबारा लिखना शुरू कर दिया ये देख कर अच्छा लगा कि जब कभी आप की चोटी खींच कर भागने का मन करेगा आपका ये भाई ऐसा जरूर करेगा ये मैं इस जगह लिख कर दे रहा हूँ।
सस्नेह
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

2 टिप्पणियाँ:

ZEAL ने कहा…

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संजय जी ,

आपके इस स्नेह ने निशब्द कर दिया है। मुझे लगता था दुनिया में बुरे लोग ही ज्यादा हैं, लेकिन अब लगता है की इस पृथ्वी पर अच्छे लोगों की संख्या ही ज्यादा है तभी तो यह दुनिया अनंत काल से चल रही है। आप जैसे भाई और दोस्त हों तो हर स्त्री खुशहाल और महफूज़ रहेगी। ईश्वर से प्रार्थना करुँगी , संजय जी जैसे स्नेही भाई/मित्र हर किसी को मिले। आपके स्नेह ने आँखों में कृतज्ञता के आँसू ला दिए। हज़ारों मील दूर रहकर भी इस अपनेपन को महसूस कर रही हूँ। आपके इस पत्र में आपके सुन्दर , ममतामयी व्यक्तित्व का बोध होता है।

संसार सिर्फ आपसी स्नेह और सम्मान पर ही टिका है। वरना है क्या ? ...कुछ वर्ष जिए फिर चल बसे। मीलों दूर बसे हम लोग एक दुसरे से अजनबी होते हुए भी इतने करीब हो जाते हैं की एक दुसरे का दुःख सुख भी महसूस कर लेते हैं। आप मुझसे नाराज़ रहते थे लेकिन आपने मुझे कभी अपमानित नहीं किया था , इसीलिए आपके प्रति ह्रदय में सदैव सम्मान के ही भाव रहते थे।

कोई ऐसे आलेख लिख देता है की आत्मा तक छलनी हो जाती है , वहीँ पर आपका यह स्नेह-पत्र किसी की भी आँखें नम कर सकता है। शब्द कम हैं आपका आभार कहने के लिए।

अपने भाई और दोस्त संजय के लिए ढेरों खुशियों की प्रार्थना के साथ ,
कृतज्ञ बहन दिव्या।

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किलर झपाटा ने कहा…

मीठी मीठी बोल कर अच्छा उल्लू बना रहे हो कटारनवरे जी आप ज़ील को। कैरी ऑन आय लाइक दैट।

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