नवभारत टाइम्स, मुंबई में भड़ासियों के लिये ही छपता है; आक्क्ख....थूऊऊऊ है इस समाचार पत्र पर

रविवार, 25 सितंबर 2011


अभी कुछ दिन पहले अक्सर की तरह २३ सितम्बर को समय मिलने पर मुंबई जैसे व्यस्त शहर में भी भड़ासी जन मेरे घर पर जुटे और एक दूसरे का हालचाल लिया । चाय नाश्ते के दौर पर दोपहर के भोजन से पहले एक भाई ने अपनी जेब से छह-सात परत करके घुसेड़ा हुआ एक हिंदी का समाचार पत्र निकाला तो सबने आदतन एक एक पन्ना बाँट लिया । एक पन्ना हमारे हाथ भी आ गया । अदल-बदल कर समाचार पत्र पढ़ने के बाद सबने एक दूसरे की तरफ देखा और स्कैनर की तरफ लपके । जिसने जिसने जो जो खबर स्कैन करी उससे आपको अंदाज हो जाएगा कि कौन कौन लोग वहाँ मौजूद थे :)

                 हिंदी के नाम पर कलंक हैं ये छुतिहर अंग्रेजों के वर्णसंकर पत्रकार

जैनों और उनके हमेशा की तरह अनूप मंडल के लिये शंकास्पद काम जिसका कोई उत्तर नहीं मिलता कि वे रामायण क्यों लिखते हैं या वेदों की बात क्यों करते हैं?


            इसको तो बस पटक-पटक कर रगेदना ही उपाय है और कुछ नहीं

डॉ.प्रकाश कोठारी जैसे महाचूतिया (या कमीना कहना बेहतर रहेगा) लोग बृह्मचर्य की अवधारणा को सिर्फ़ शरीर से वीर्य निकलने तक सीमित करके इतनी बकवास कर लेते हैं और आश्चर्य है कि कोई भी इनको जूते नहीं लगाता । इस ठरकी के अनुसार देखें तो जितने भी हिंदुओं के शास्त्रों में, जैनों के शास्त्रों में बृह्मचर्य का बल बताया गया है यहाँ तक कि महात्मा गाँधी भी इसके अनुसार चूतिया ही हैं । इसके चश्में से देखें तो सिर्फ़ "खसिया" ही बृह्मचारी हो सकते हैं । इस धूर्तशिरोमणि ने मन, वचन और कर्म पर आधारित बृह्मचर्य की अवधारणा को इतना सीमित कर दिया है कि इसको पकड़ कर नंगा कर इसके पिछवाड़े पर खजूर की संटी से सटासट बिना रुके एक हजार संटी मारने का दिल कर रहा है । इस नीच, कमीने, हरामखोर के अनुसार योगशास्त्र गलत है, सारे वो धर्मगृन्थ गलत हैं जिनमें बृह्मचर्य की विराट अवधारणा की महिमा मंडन करा गया है । इतना कस कर धोने के बाद इस वर्णसंकर से पूछा जाए कि अब क्या कहता है यदि फिर भी न माने तो पिछवाड़े से धान कूटने वाला मूसल डाल कर एक माह बात इसके विचार पूछे जाएं । यदि फिर भी इसे बृह्मचर्य बकवास लगता है तो क्रमशः खजूर का छीला हुआ पेड़ और इसके बाद कुतुब मीनार डाली जाए तब शायद इसकी बुद्धि ठिकाने आ जाएगी । यदि इस चिकित्सा शास्त्र के कलंक ने इतना ज्यादा पढ़ लिया है तो इस हलकट को मैं शास्त्रार्थ की चुनौती देता हूँ आकर देख ले कि कितने पानी में है ये ठरकी ।
जय जय भड़ास

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