डॉ.दिव्या श्रीवास्तवम च दिवस गौड़ाय नमः.... इस मंत्र के जाप से निर्मल बाबा की "किरपा" के बिना टी.आर.पी. बढ़ती है।
रविवार, 15 अप्रैल 2012
मंत्र है----
ॐ डॉक्टर दिव्या श्रीवास्तवम च दिवस गौड़ाय नमः
जिस प्रकार इस मंत्र में ॐ लगा कर टी.आर.पी. का टोटका शोध करा गया है उसी तरह यदि अनेक बीजमंत्र जैसे ह्रीं , क्लीं, ऐं , स्फ्रें, ख्फ्रें आदि लगा कर तमाम लाभ लिये जा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिये भड़ास से संपर्क करें। राष्ट्रवाद से लेकर महाराष्ट्रवाद तक के तमाम झंझट दूर करे जा सकते हैं। बवासीर-भगंदर, पेट की मरोड़, उल्टी-दस्त का भी इलाज होता है लेकिन भड़ासियों की देखरेख में ही क्रिया सम्पन्न करी जाए ये ध्यातव्य है।
चलते चलते दो मंत्र और प्रस्तुत हैं जो कि देखने में किसी ग़ज़ल के शेर जैसे लगते हैं लेकिन इनका भी प्रभाव अत्यंत तीव्र व तीक्ष्ण है
१) चूमा जो तुमने झुक के तो बवासीर फट गयी
बयानों की थी पड़ी जो वो ज़ंजीर कट गयी
कैसे रिसे भड़ास "दिवस" भर दर्द है
चमचा बढ़ा तो हुक्म की तामीर घट गयी ।
२) कमरों के नीचे क्यों कर दिवस चूमते हो तुम
रंग- बू भड़ास सूँघ कर क्यों झूमते हो तुम
टाँगें तुम्हारी मेरी ही दीवार पर उठीं
इन्साननुमा होकर लिये घूमते हो दुम ।
इन दोनो मंत्रों के प्रयोग की विधि भड़ास से संपर्क करके जानी जा सकती है। इसके लिये आपको कोई शुल्क नहीं देना होगा बस दिन भर में भड़ास के पेज पर बिना कारण न्यूनतम दो हजार बार विजिट करना होगा।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
यकीन मानिये मुनेन्द्र जी मैंने डॉ.दिव्या श्रीवास्तव का फोन अटैंड करा था जब मैं डॉ.रूपेश श्रीवास्तव की फ़िल्म "प्रश्न" के दौरान प्रोडक्शन सुपरवाइजर का काम कर रहा था, ये बन्दी मुझे कुछ सनकी सी जान पड़ी। डिग्री होना और व्यवहारिक तौर पर समझदार होना दो अलग बातें हैं। यदि इसकी हाँ में हाँ करो तो अच्छे वरना बुरे। दिवस और दिव्या जैसे लोग राष्ट्रवाद की बातें करते हैं जो कि मर्दानगी, जनानगी और हिजड़ानगी से ऊपर उठ कर कभी सोच ही नहीं सके होंगे इनके लिये शायद प्रसिद्धि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। दिवस का कहना है कि किसी को तकलीफ़ नहीं दे रही है मैं कहता हूं कि मुझे तकलीफ़ होती है इनके बेवकूफ़ाना लेखन से जब ये हिंदू-मुसलमान की कूपमंड्क सोच लेकर भी राष्ट्रवाद की बात करती हैं। हिंदू राष्ट्र बना लेने के बाद ब्राहमण राष्ट्र की बात करेंगी या मूर्तिपूजक और वेद मानने वालों के बीच जहर उगला करेंगी। राष्ट्र की अवधारणा इन जैसे कुंठित लोगों की सोच से बहुत विशाल रहती है इन्हें जो लिखना है ये सिर्फ़ यदि अपने विशेष पाठकों तक सीमित न रख कर ब्लॉग पर लिखेंगी तो विरोध और समर्थन दोनो के लिये तैयार रहना होगा। विरोध पर स्त्री होने की दुहाई दे कर मर्दानगी पर विचार विमर्श करने लगना शायद जमीनी काम होती है। दिवस ये जान लो कि लेखन कागजी काम है जमीनी काम नहीं वरना रामप्रसाद बिस्मिल सिर्फ़ शायरी ही करके काम चला लेते।
जय भड़ास
एक टिप्पणी भेजें