खबरों की अब यही खबर है

रविवार, 15 अप्रैल 2012

देश की हालत बुरी अगर है
संसद की भी कहाँ नजर है
सूर्खी में प्रायोजित घटना
खबरों की अब यही खबर है

खुली आँख से सपना देखो
कौन जगत में अपना देखो
पहले तोप मुक़ाबिल था, अब
अखबारों का छपना देखो

चौबीस घंटे समाचार क्यों
सुनते उसको बार बार क्यों
इस पूँजी, व्यापार खेल में
सोच मीडिया है बीमार क्यों

समाचार में गाना सुन ले
नित पाखण्ड तराना सुन ले
ज्योतिष, तंत्र-मंत्र के संग में
भ्रषटाचार पुराना सुन ले

समाचार, व्यापार बने ना
कहीं झूठ आधार बने ना
सुमन सम्भालो मर्यादा को
नूतन दावेदार बने ना

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