तुम आम जनता हो, हम तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकते. हम तो बड़े धन्ना सेठों के द्वारा उनके ही लिए बनी सरकार हैं.
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012
Author: भवेश नन्दन मिथिला के गौरवपूर्ण विरासत को आगे बढाने के लिए प्रयत्नशील भवेश नंदन जी पेशे से फिल्मकार और स्वतंत्र लेखक हैं | साभार - www.janokti.com
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया नदी जोड़ो परियोजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि "इसमें तकनीकी, पर्यावरणीय और आर्थिक अवरोध है" |
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया नदी जोड़ो परियोजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि "इसमें तकनीकी, पर्यावरणीय और आर्थिक अवरोध है" |
सही है . आर्थिक अवरोध तो है ही क्योंकि वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की नज़र में सूखे से पीड़ित आम किसान व बाढ़ पीड़ित आम आदमी कोई मायने नही रखता है, जिनको नदी जोड़ने से फायदा होगा..
उनकी प्राथमिकता में इस तरह की योजना का कोई महत्व नहीं है नहीं तो एन.डी.ए के शासनकाल से लम्बित इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को पहल नहीं करनी पड़ती | अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने को कहा है.. तो इस परियोजना को लटकाने की साजिश रची जा रही है पहले प्रधानमंत्री के करीबी और जलसंसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने इस परियोजना को सरकार की प्राथमिकता में न होने की बात कही व अब मोंटेक सिंह अहलूवालिया का यह कहना बेहद गंभीर संकेत है..
सरकार सीधे भी कह सकती है की हमारा धन सिर्फ कारोबारियों को आगे बढ़ाने के लिए है.. इस तरह का बहाना की इस परियोजना में तकनीकी, पर्यावरणीय और आर्थिक अवरोध है, दुखद है..
जहाँ तक आर्थिक अवरोध की बात है तो इस देश में एक बेकार से गुलाम देशों का आयोजन "राष्ट्रमंडल खेल" के नाम पर 80 हजार करोड़ रूपये खर्चे जा सकते हैं, दिल्ली के "ल्यूटियन जोन" के फूटपाथ पर संगमरमरी टाइल्स बिछाने के लिए पैसे हैं..
तकनीक क्या सिर्फ चन्द्रमा पर यान भेजने के लिए है..
पर सबसे हास्यास्पद तर्क पर्यावरण का है.. इस देश में नदी की धारा रोकने से पर्यावरण को कोई क्षति नहीं होती, फैक्ट्रियों के लिए जंगल समाप्त करने व पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाने से कोई फर्क नहीं पड़ता.. बस नदी के पानी का सामान वितरण से पर्यावरण को समस्या आ जायेगी..
नदी जोड़ो परियोजना आज देश की आवश्यकता है, आम किसानों की बाढ़ पीड़ितों की इस परियोजना को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिये जो दुर्भाग्यवश इस शासन व्यवस्था में कहीं दिख नहीं रहा है..
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