ऐसे रचनाकार कई

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कहते हम सब भाई भाई, ऐसे रचनाकार कई
आपस में छीटें रोशनाई, ऐसे रचनाकार कई

समझाने के वो काबिल हैं, जिसने समझा रिश्तों को
इनको अबतक समझ न आई, ऐसे रचनाकार कई

बोझ ज्ञान का ढोना कैसा, फ़ेंक उसे उन्मुक्त रहो
कहते, होती है कठिनाई, ऐसे रचनाकार कई

इधर उधर से शब्द उड़ाकर, कहते हैं रचना मेरी
कविता पे होती कविताई, ऐसे रचनाकार कई

अलग अलग दल बने हए हैं, राजनीति और लेखन में
अपनी अपनी राम दुहाई, ऐसे रचनाकार कई

लेखन की नूतन प्रतिभाएँ, किस दुकान पर जायेंगे
खो जातीं हैं यूँ तरुणाई, ऐसे रचनाकार कई

लिखते हैं जिसके विरोध में, वही आचरण अपनाते
यही सुमन की है चतुराई, ऐसे रचनाकार कई

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