अगर इस देश में कोई कानून अन्यायपूर्ण है तो उसको मानना मूर्खता है
गुरुवार, 3 मई 2012
एक छोटे अपराध के लिए एक गरीब छोटा व्यक्ति सालों साल जेलों में सड़ता रहता है, और बड़े से बड़ा अपराध करके धनी और शक्तिशाली लोग आम जन की छाती पर मूंग डालते रहते हैं और बेल पर छूट जाते हैं. और अदालतों में इनके वकील इनकिया केस लड़ते जाते हैं. अगर पूछो तो अंक दिखा कर कहेंगे, हम आरोपी हैं, अपराधी नहीं.
कल रात तो आठ बजे एक बिकाऊ पत्रकार स्वामी रामदेव को कानून सिखा रहा था. कह रहा था इस देश में यही कानून है कि जबतक आरोप सिद्ध ना हो जाए तबतक किसीको अपराधी नहीं मान सकते. मैं पूछता हूँ, इस पढ़े लिखे मूर्ख बिकाऊ पत्रकार से, कि कानून किसके लिए होता है? जनता के फायदे के लिए या जनता के दमन के लिए? अगर कानून ऐसा है की आरोपी पर आरोप सिद्ध होने में कई दशक लग जाते हैं तो ऐसे क़ानून को बदलना पड़ेगा. अगर इस देश में कोई कानून अन्यायपूर्ण है तो उसको मानना मूर्खता है. और ये कानून बदलने वाले लोग ही अपराधी नहीं तो आरोपी अवश्य हैं, तो वे ऐसा क़ानून बनने नहीं देते हैं जिसमें आरोप जल्दी सिद्ध हो जाए. किसी शायर ने कहा है, "मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है, क्या मेरे हक़ में फैसला देगा". बाकी सब आप समझ जाएँ.
इस देश में आज भी कानून ऐसा है, अगर आप शांतिपूर्ण रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं तो पुलिस को अधिकार है कि आप पर बिना कारण लाठी चला दे. अगर आपने उनके लाठी के जवाब में आत्मरक्षा में लाठी या पत्थर चला दिया, तो आप अपराधी हो जायेंगे. अब ये तो स्वाभाविक और प्राकृतिक नियम है, आदमी अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिक्रिया करता ही है. अगर इन नेताओं पर आप हाथ उठा कर देखिये, कितने गांधीजी के नियम के अनुसार चुपचाप सहते रहेंगे? ये सरकारी पुलिसवाले जान बूझ कर कुछ ऐसा करते हैं कि शांतिपूर्ण लोग भड़क जाएँ, और फिर उन्हें लाठी गोली चलाने का बहाना मिल जाता है. असली मुद्दा रह जाता है और नया मुद्दा बन जाता है. कुछ लोग घायल होते हैं, कुछ मर जाते हैं और बचे लोग शांत बैठ जाते हैं. अंग्रेजों के बनाए इसी दमन के क़ानून के फार्मूले पर आज भी जनता का दमन कर इस देश को लूटा जाता है और इसे शासन करना कहा जाता है.
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धन्यवाद एवं हार्दिक शुभेच्छा,
राकेश चन्द्र
प्रकृति आरोग्य केंद्र
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