पीछा नहीं छोड़ रहा ढैंचा बीज घोटाला त्रिवेन्द्र रावत का

शनिवार, 7 मार्च 2020




पीछा नहीं छोड़ रहा ढैंचा बीज घोटाला त्रिवेन्द्र रावत का
-जयसिंह रावत
भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेस का दावा करने वाले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत का पीछा ढैंचा बीज घोटाला छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है। उन पर त्रिपाठी जांच आयोग ने इस करोड़ों के घोटाले में शामिल होने का आरोप तो लगाया ही था लेकिन अब भाजपा के ही एक पूर्व नेता एवंह्विसिल ब्लोवरसंस्था जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने मुख्यमंत्री पर सत्ता में आने के बाद इस घोटाले में स्वयं को ही क्लीन चिट देने का आरोप लगाते हुये सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान कर दिया है। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच इस काण्ड के पुनः उछलने से रावत की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। नेगी इससे पूर्व भी मुख्यमंत्री रावत पर कई गंभीर आरोप लगा चुके हैं।
रघुनाथ सिंह नेगी का आरोप है कि लगभग 14.03 करोड़ के ढैंचा बीज घोटाले की जांच के लिये जस्टिस एस.सी. त्रिपाठी जांच आयोग की सिफारिश पर कार्यवाही करने के बजाय मार्च 2017 में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने अधिकारियों पर दबाव डाल कर  रिपोर्ट पर दाखिल एक्शन रिपोर्ट में स्वयं को क्लीन चिट दिलवा दी। जबकि त्रिपाठी जांच आयोग ने कृषिमंत्री रहते हुये त्रिवेन्द्र रावत को इस घाटाले का दोषी पाया था। नेगी के अनुसार इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर वह सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को इस मामले के उठने से त्रिवेन्द्र रावत की कुसी हिलाने में मदद मिल गयी है।
गौरतलब है कि 2007 से लेकर 2012 तक राज्य में भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुये 7 बहुचर्चित घाटालों की जांच के लिये जांच आयोग (केन्द्रीय) नियमावली 1972 के नियम 5 (3) एवं (4) के तहत 28 मार्च 2013 को गठित एक सदस्यीय जस्टिस एस.सी. त्रिपाठी जांच आयोग ने शिकायतकर्ता रमेश चन्द्र चौहान और कृषि सेवा संघ के अध्यक्ष डी.एस. असवाल की शिकायत पर प्रदेश के बहुचर्चित घाटाले की जांच की थी।
आयोग ने अपनी जांच में तत्कालीन कृषि निदेशक मदन लाल को दोषी पाये जाने के साथ ही तत्कालीन सचिव की लापरवाही भी पायी थी लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि सचिव के खिलाफ अपराधिक कार्यवाही योग्य साक्ष्य नहीं मिले हैं, इसलिये उनके खिलाफ केवल प्रशासनिक कार्यवाही ही की जाय। लेकिन तत्कालीन कृषिमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को आयोग ने इस घोटाले में स्पष्ट रूप से दोषी माना था। आयोग ने अपने निष्कर्स में लिखा है कि डैंचा बीज वितरण में कृषिमंत्री ने अनुदान की राशि मनमाने ढंग से 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 75 प्रतिशत कर बजट मैनुवल, सचिवालय अनुदेश नियमावली 1975 की अवहेलना कर शासकीय धन की स्वीकृति निजी व्यय की भांति दे दी जबकि वह शासकीय धन के कस्टोडियन थे। उन्होंने भारी अनियमितताओं की शिकायत पर पहले तो नैनीताल, देहरादून, उधमसिंहनगर और हरिद्वार के 4 मुख्य कृषि अधिकारियों के खिलाफ निलंबन आदेश पारित कर दिये और फिर 28 दिसम्बर 2010 को बिना समुचित कारण के स्वयं ही निलंबन निरस्त कर विभागीय कार्यवाही के आदेश जारी कर दिया जो कि उनको संदेह के घेरे में लाता है।
अपने निष्कर्स में आयोग ने कहा कि सचिव अपने विभाग का अध्यक्ष होता है और महत्वपूर्ण कार्यवाही के लिये वह मंत्री एवं मुख्य सचिव से दिशा निर्देश लेता है। इसी नाते तत्कालीन कृषि सचिव ने इस मामले की जांच सतर्कता विभाग से कराने की अनुशंसा की थी जिसे कृषि मंत्री के रूप में त्रिवेन्द्र रावत ने अपने 9 अप्रैल 2011 के आदेश से अस्वीकृत कर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के राजकीय दायित्व का निर्वहन नहीं किया। इसलिये वह अपने अधिकारों का दुरुपयोग और अनियमितता के दोषी पाये गये। इसी प्रकार मंत्री ने नयी मांगों के प्रस्ताव की प्रकृया सुनिश्चित किये बिना कृषि निदेशक के गलत प्रस्ताव को अनुमोदित कर सचिवालय अनुदेश का उल्लंघन किया।
आयोग ने अपने निष्कर्स में स्पष्ट कहाहै कि ‘‘श्री त्रिवन्द्र रावत के चुक या कृत्य के कारण कृषि निदेशक डा0 लाल अनियमितताएं कर पाये तथा एक अपराधिक षढ़यंत्र रच कर उसका लाभ उठा पाये। श्री रावत अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वहन में असफल पाये गये। उनके कृत्य और चूक से मै0 निधी सीड्स कारपारेशन को अनुचित लाभ पहुंचा जो लोकहित के विपरीत था। इससे श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ‘‘प्रीवेशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धरा 13 (एक) (डी) (तीन) की परिधि में आते हैं तथा सरकार उक्त तथ्यों का परीक्षण कर कार्यवाही करे।’’
इस घाटाले की जांच पहले भी की जा चुकी थी जिसमें 4 जिलों में मुख्य कृषि अधिकारियों समेत 143 कर्मचारियों को दोषी पाया गया था, लेकिन निदेशक ने मामला दबवा दिया था। घोटाले में आरोप था कि बिना मांग का आंकलन किये 4 मैदानी जिलों के लिये 13,184 कुंतल ढैंचा बीज का क्रय किया गया। इस बीज की दर क्रय समिति द्वारा 3,989 रुपये प्रति कुंतल तय की गयी थी जिसका भुगतान लगभग 5,25,38,240 रुपये बनता था, लेकिन मिली भगत से कुल 14,03,33,302 रुपये का ड्राफ्ट देहरादून जिले के विभागीय खाते में शासन से मंगवाया गया, जबकि भुगतान देहरादून के अलावा नैनीताल, उधमसिंहनगर और हरिद्वार जिलों की ओर से भी होना था। यह बीज अप्रैल अंत तक बो दिया जाता है लेकिन इसकी आपूर्ति मई 28 मई 2011को दिखाई गयी। बीज की आपूर्ति कम और भुगतान ज्यादा दिखाया गया। यही नहीं वाणिज्य कर विभाग से जब बीज ढोने वाले ट्रकों की संख्या का मिलान किया गया तो ट्रक कम मिलने के साथ ही एक ही दिन में एक ही ट्रक से रुड़की और नैनीताल में आपूर्ति दिखायी गयी।



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