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मनीषा बहन से माफ़ी (अतीत के पन्ने से.......)

शनिवार, 9 मई 2009

न जाने कितनी बार लिखा और मिटाया ,समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे बात शुरू करें । लेकिन जो मन में है वो तो कहना ही है क्योंकि भाई बोलते है कि अगर मन में बात रखा तो बीमार हो जाते हैं । अभी मेरे नाम वाली मनीषा बहन से एकदम सीधी बात कि आपको मेरे कारण परेशानी और दुख हुआ तो माफ़ करिये मुझे और मेरे भाई को । भाई तो इमोशनल हैं तो उन्होंने मेरे को लेकर एकदम डिफ़ेंसिव तरीका अपना लिया वो भी गलत नही हैं । आप लोगों के सामने मैं भाई की लिखी एक कविता रख रही हूं जिससे आप सबको भाई की सोच की गहराई और प्रेम व करुणा का अंदाज हो जायेगा ।



ए अम्मा,ओ बापू,दीदी और भैया
आपका ही मुन्ना या बबली था
पशु नहीं जन्मा था परिवार में
आपके ही दिल का चुभता सा टुकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
कोख की धरती पर आपने ही रोपा था
शुक्र और रज से उपजे इस बिरवे को
नौ माह जीवन सत्व चूसा तुमसे माई
फलता भी पर कटी गर्भनाल,जड़ से उखड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लज्जा का विषय क्यों हूं अम्मा मेरी?
अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं
सारे स्वीकार हैं परिवार समाज में सहज
मैं ही बस ममतामय गोद से बिछुड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
सबके लिए मानव अधिकार हैं दुनिया में
जाति,धर्म,भाषा,क्षेत्र के पंख लिए आप
उड़ते हैं सब कानून के आसमान पर
फिर मैं ही क्यों पंखहीन बेड़ी में जकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
प्यार है दुलार है सुखी सब संसार है
चाचा,मामा,मौसा जैसे ढेरों रिश्ते हैं
ममता,स्नेह,अनुराग और आसक्ति पर
मैं जैसे एक थोपा हुआ झगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
दूध से नहाए सब उजले चरित्रवान
साफ स्वच्छ ,निर्लिप्त हर कलंक से
हर सांस पाप कर कर भी सुधरे हैं
ठुकराया दुरदुराया बस मैं ही बिगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
स्टीफ़न हाकिंग पर गर्व है सबको
चल बोल नहीं सकता,साइंटिस्ट है और मैं?
सभ्य समाज के राजसी वस्त्रों पर
इन्साननुमा दिखने वाला एक चिथड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लोग मिले समाज बना पीढियां बढ़ चलीं
मैं घाट का पत्थर ठहरा प्रवाहहीन पददलित
बस्तियां बस गईं जनसंख्या विस्फोट हुआ
आप सब आबाद हैं बस मैं ही एक उजड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
अर्धनारीश्वर भी भगवान का रूप मान्य है
हाथी बंदर बैल सब देवतुल्य पूज्य हैं
पेड़ पौधे पत्थर नदी नाले कीड़े तक भी ;
मैं तो मानव होकर भी सबसे पिछड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........




सोचिये हमारे बारे में भी ,मनीषा बहन से एक बार फिर माफ़ी मांगती हूं । अब आप सब लोग होली की तैयारियां करिये ।



नमस्ते



नमस्ते

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मैं शरीर से हिजड़ा और आप आत्मा से हिजड़े हैं

आज दो दिन पहले आप लोग के ब्लोग पर मैंने अपने भाई डा।रूपेश के कहने पर मेम्बर बन कर एक पोस्ट लिखा था । इस पोस्ट को लेकर कुछ लोग को प्राब्लम होने लगा कि ये मनीषा कौन है ? मेरी हिन्दी तो ऐसी है कि जितना भीख मांगते समय आशीर्वाद देने या फिर गालियां देने को काम आती है पर डा.भाई ने बताया कि अपना ब्लोग बनाना और उस पर लिखने के लिये अच्छा भाषा जानना चाहिए । मेरी भाषा मलयालम है और मैं मराठी ,इंग्लिश,तेलुगु,तमिळ बोल लेती हुं । आप लोग का लिखा हुआ मेरे को ज्यादा समझ में नहीं आता आर्थिक ,अस्तित्व,मसिजीवी या शुचितावादी का क्या अर्थ होता है ? हमारी प्राब्लम तो जिंदगी को आसान तरीके से जीना है जैसे राशन कार्ड,ड्राइविंग लाइसेंस,मोबाइल के लिए सिम कार्ड के वास्ते फोटो लगा हुआ आइडेंटिटी प्रूफ़ जैसे कि पैन कार्ड वगैरह अभी आप लोग बताओ किधर से लाएं ये सब ? उंगलियां दरद करने लगती हैं टाइप करने में लेकिन ऐसा लगता था कि इंटरनेट पर ब्लोग पर लिखने से प्राब्लम साल्व होगा पर इस खुशी में हम सब लोग ये भूल गए कि इधर भी तो वो ही लोग हैं जो ट्रेन में,सरकारी आफिसों में मिलते हैं । अभी हिन्दी टाइप करना आता है तो इन्हीं उंगलियों से इतना गंदा गंदा गाली भी टाइप कर सकती हूं कि मेरे और मेरे भाई के बारे में बकवास करने वाले लोग को वापिस मां के पेट में घुस कर मुंह छुपाना पड़ जायेगा लेकिन मुझे इतना तो अकल मेरे भाई ने दिया कि ऐसा लोग के मुंह नहीं लगना चाहिये ,हम लोग तो शरीर से हिजड़े हैं पर ये तो आत्मा से हिजड़े हैं इस वास्ते मैं इन आत्मा से हिजड़े लोग को गाली भी देकर इनका भाव नहीं बढ़ाना चाहती हूं अगर भड़ास पर मेरे होने से आप लोग को दिक्कत है तो भड़ास पर मैं पोस्ट भेजना बंद कर देती हुं ताकि लोगों को मेरे होने से अड़चन न हो क्योंकि हमे तो मुंबई में सार्वजनिक टायलेट तक में इसी प्राब्लम का सामना करना पड़ता है कि जेन्ट्स टायलेट में जाओ तो आदमी लोग झांक कर देखना चाहते कि हमारे नीचे के अंग कैसे हैं और लेडीज टायलेट में जाओ तो औरतें झगड़ा करती हैं । बस यही हमारी दिक्कते हैं जो हमें जिंदगी ठीक से नहीं जीने देतीं और हम अलग से हैं । अभी उंगलियां अकड़्ने लगी हैं मैं इतना लिख भी नहीं पाती पर आप लोग के दुख ने ताकत दिया लिखने का । अभी जब तक आप लोग नहीं बोलेंगे मैं भड़ास पर नहीं लिखूंगी ।



नमस्ते

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पत्रकार मनीषा पांडेय,मैं अर्धसत्य नामक ब्लाग की माडरेटर मनीषा नारायण हूं (अतीत के पन्ने से.....)

शुक्रवार, 8 मई 2009



"ब्लागर और पत्रकार मनीषा पांडेय ने वेबदुनिया डाट काम को टाटा बायबाय कह दिया है। उन्होंने दैनिक भास्कर से खुद को जोड़ लिया है। वे भोपाल में अपना नया काम एक अप्रैल को संभाल लेंगी। मनीषा चर्चित ब्लाग बेदखल की डायरी की माडरेटर हैं। उन्होंने वेब दुनिया में हिंदी ब्लागिंग को लेकर काफी कुछ काम किया है। मनीषा की नई नौकरी पर भड़ास की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं।"



आज कई दिन बाद जबसे यशवंत दादा वापिस गये हैं तबसे अब तक मैं अपने भाई डा।रूपेश के घर आने का समय नहीं निकाल पायी थी। आज मीडिया रिलेटेड इन्फ़ार्मेशन वाली पट्टी पर इस खबर को देख कर एक बार फिर से मन में कुछ टीस सी उभर आयी। मुझे याद है कि मेरे और मनीषा पांडेय के नाम एक जैसे होने के कारण कितना विवाद हुआ था। यशवंत दादा ने बिना शर्त माफ़ी मांगी, मैंने भी भाई के कहने पर इससे माफ़ी मांगी कि आपको मेरा नाम मनीषा होने पर दुःख हुआ इसके लिये माफ़ करें, इस लड़की ने मेरे भाई को फोन करके कानूनी तिकड़मों की धमकी दी लेकिन भाई ने इसे अपने ही अंदाज़ में हंस कर सहन कर लिया। मैं भी उस घटना को भूलने की कोशिश कर ही रही थी कि एक बार फिर इसका नाम भड़ास पर दिखा तो लगा कि किसी ने ज़ख्म में उंगली डाल कर कुरेद दिया हो। हिन्दी के लिये बहुत कुछ किया होगा इस लड़की ने पर इसने एक बार भी यह नहीं माना आज तक कि जो कुछ भी इसने किया था वो एक गलतफहमी के चलते हुआ या इसने जो लोगों का दिल दुखाया उसके लिये इसे जरा भी शर्मिंदगी हुई है। मन में पीड़ा एक बार फिर से उभर आयी है कि इस लड़की को एकबार तो कम से कम कह दूं कि तुमने जो किया था वो गलत और पीड़ादायक था,तुम्हारे साथ लोगों की सहानुभूति इसलिये चिपक जाती है क्योंकि तुम एक स्त्री हो और मेरा तिरस्कार इस लिये कर दिया जाता रहा है क्योंकि मैं एक लैंगिक विकलांग हूं,हिजड़ा हूं। मुझे घिन आती है तुम्हारे जैसी सोच से चाहे तुम कितने भी बड़े सामाजिक कद के क्यों न हो तुम्हारी सोच का बौनापन हम सबने देखा है, अगर सचमुच पत्रकारिता करती हो या सुलझी सोच का एक अंश भी है आत्मा के किसी कोने में आज भी जीवित तो मुझसे आकर मिलो और एहसास करो अपनी गलती का।


जय भड़ास



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