मैं शरीर से हिजड़ा और आप आत्मा से हिजड़े हैं

शनिवार, 9 मई 2009

आज दो दिन पहले आप लोग के ब्लोग पर मैंने अपने भाई डा।रूपेश के कहने पर मेम्बर बन कर एक पोस्ट लिखा था । इस पोस्ट को लेकर कुछ लोग को प्राब्लम होने लगा कि ये मनीषा कौन है ? मेरी हिन्दी तो ऐसी है कि जितना भीख मांगते समय आशीर्वाद देने या फिर गालियां देने को काम आती है पर डा.भाई ने बताया कि अपना ब्लोग बनाना और उस पर लिखने के लिये अच्छा भाषा जानना चाहिए । मेरी भाषा मलयालम है और मैं मराठी ,इंग्लिश,तेलुगु,तमिळ बोल लेती हुं । आप लोग का लिखा हुआ मेरे को ज्यादा समझ में नहीं आता आर्थिक ,अस्तित्व,मसिजीवी या शुचितावादी का क्या अर्थ होता है ? हमारी प्राब्लम तो जिंदगी को आसान तरीके से जीना है जैसे राशन कार्ड,ड्राइविंग लाइसेंस,मोबाइल के लिए सिम कार्ड के वास्ते फोटो लगा हुआ आइडेंटिटी प्रूफ़ जैसे कि पैन कार्ड वगैरह अभी आप लोग बताओ किधर से लाएं ये सब ? उंगलियां दरद करने लगती हैं टाइप करने में लेकिन ऐसा लगता था कि इंटरनेट पर ब्लोग पर लिखने से प्राब्लम साल्व होगा पर इस खुशी में हम सब लोग ये भूल गए कि इधर भी तो वो ही लोग हैं जो ट्रेन में,सरकारी आफिसों में मिलते हैं । अभी हिन्दी टाइप करना आता है तो इन्हीं उंगलियों से इतना गंदा गंदा गाली भी टाइप कर सकती हूं कि मेरे और मेरे भाई के बारे में बकवास करने वाले लोग को वापिस मां के पेट में घुस कर मुंह छुपाना पड़ जायेगा लेकिन मुझे इतना तो अकल मेरे भाई ने दिया कि ऐसा लोग के मुंह नहीं लगना चाहिये ,हम लोग तो शरीर से हिजड़े हैं पर ये तो आत्मा से हिजड़े हैं इस वास्ते मैं इन आत्मा से हिजड़े लोग को गाली भी देकर इनका भाव नहीं बढ़ाना चाहती हूं अगर भड़ास पर मेरे होने से आप लोग को दिक्कत है तो भड़ास पर मैं पोस्ट भेजना बंद कर देती हुं ताकि लोगों को मेरे होने से अड़चन न हो क्योंकि हमे तो मुंबई में सार्वजनिक टायलेट तक में इसी प्राब्लम का सामना करना पड़ता है कि जेन्ट्स टायलेट में जाओ तो आदमी लोग झांक कर देखना चाहते कि हमारे नीचे के अंग कैसे हैं और लेडीज टायलेट में जाओ तो औरतें झगड़ा करती हैं । बस यही हमारी दिक्कते हैं जो हमें जिंदगी ठीक से नहीं जीने देतीं और हम अलग से हैं । अभी उंगलियां अकड़्ने लगी हैं मैं इतना लिख भी नहीं पाती पर आप लोग के दुख ने ताकत दिया लिखने का । अभी जब तक आप लोग नहीं बोलेंगे मैं भड़ास पर नहीं लिखूंगी ।



नमस्ते

2 टिप्पणियाँ:

Prakash Badal ने कहा…

कहानी मुझे नहीं पता कि दरअसल आपको किसने क्या कहा लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि हिजड़ा आप नहीं हिजड़ा तो वो है जिसने आपको गलत साबित किया है। नपुंसक वो होता है जिसकी मानसिकता नपुँसक होती है। आप तो अपनी भावनाएँ व्यक्त करती हो और वो भी क्रिएटिव होकर तो भला आपको हिज़ड़ा कहने वाला तो ख़ुद हिजड़ा हुआ न!

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

बेटा अग्नि,हिंदी ब्लागिंग से जुड़ने वाले नए लोग बेचारे न तो भड़ास के अस्तित्व के संघर्ष के बारे में जानते हैं और न ही मनीषा दीदी के बारे में कि उन्हें किन तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा था हिंदी ब्लागिंग में आने के बाद, कितने हिप्पोक्रेट्स सवालों के शूल लेकर टूट पडे़ थे, हम जिंदा रह पाए अपनी भावुकता के चलते..... समस्या लैंगिक विकलांगता नहीं है समस्या है वो पाखंडी सोच जो कि भले आदमी का मुखौटा लगा कर बैठी है और इन जैसे बच्चों को अपने ही परिवारों में जन्मने पर दुरदुरा देती है।
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