मेरी पोस्ट पर टिप्पणी करने से आप हिजड़े बन सकते हैं
बुधवार, 26 नवंबर 2008
जैसे-जैसे मैं लिखना तीखा करती जा रही हूं देख रही हूं कि लोग बिदक कर भाग रहे हैं। एक बड़ी साधारण सी बात कहना है कि यही पोस्ट अगर किसी लड़की की होती भले ही कितनी भी मूर्खतापूर्ण होती, बकवास होती या लटका-पटका की तुकबंदी जोड़ कर लिखनी वाली कोई कवियत्री होती तो उस पर कम से कम बीस-पच्चीस टिप्पणीकार लार टपकाते आ गये होते लेकिन हम लोगों का लिखा भी पढ़ लेने से लोगों को छूत लग जाती है, शायद लगने लगता है कि कहीं हमें भी "अर्धसत्य" पर टिप्पणी कर देने से या प्रोत्साहित कर देने से लैंगिक विकलांगता का इन्फ़ेक्शन न हो जाए और हम भी हिजड़े बन जाएं। मैं इस पोस्ट के द्वारा हम सबके धर्मपिता व गुरू डा.रूपेश श्रीवास्तव से निवेदन कर रही हूं कि अब वे कम से कम मेरी लिखी किसी भी पोस्ट पर कोई भी टिप्पणी न प्रकाशित करें। मुझे किसी की मक्कारी भरी सहानुभूति नहीं चाहिये। जब से मैंने लोगों के बनावटी मुखौटे नोचने खसोटने शुरू करे हैं हिंदी के छद्म शरीफ़ ब्लागरों में खलबली है, जवाब नहीं देते बनते इस बड़े-बड़े बक्काड़ और लिक्खाड़ लोगों से। हमारे कुनबे को हम खुद ही संवारने का माद्दा रखते हैं। मैं इस सोच से एक और फ़ायर-ब्रांड बहन को जोड़ रही हूं।
1 टिप्पणियाँ:
भूमिका,
बड़ी कड़वी मगर सच्ची बात कही है आपने, और ये ही लबादे हैं हमारे समाज के, सडे हुए, बेकार और बेहद ही घटिया लेख भी अगर किसी महिला का होता है, चाहे वो किसी भी चुतियापा से भाडा हुआ हो तो लाड टपकाने वाले पुरुषों की लाइन लग जाती है, और ये ही चरित्र है हमारे समाज का.
मगर आप अपनी लेखनी में कमी ना लाओ, धारदार और बेहत ताक़तवर की इन क्षद्म लोगों की आत्मा तक तिलमिला जाए.
जय जय भड़ास
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