आतंकवादी मुंबई में दाखिल हो जाते हैं......
बुधवार, 26 नवंबर 2008
एक बार फिर मुंबई आतंकवादियों की गिरफ़्त में है लेकिन क्या कारण है कि समुद्र के रास्ते से ये आतंकवादी मुंबई में दाखिल हो जाते हैं और हमारी समुद्रों के तटों पर हमेशा चाक-चौबंद रहने वाली नौसेना के कोस्टल गार्ड्स इन्हें सूंघ तक नहीं पाते। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड बुला लिये जाते हैं और फिर वही जनता को दिखाने का एक्शन ड्रामा चलता है। जनता कब समझेगी कि देश में क्या हो रहा है? इस घटना के बाद बस चार दिन तक रेलवे स्टेशनों पर गरीब यात्रियों को सामान चेक करने के बहाने सताएगी लूटेगी फिर सब सामान्य हो जाएगा अगले विस्फोटों के होने तक। किसी टीवी सीरियल के एपिसोड्स की तरह हमारे महानगरों में बम ब्लास्ट होते हैं और जनता का न्यूज चैनलों पर ये सब दिखा कर मनोरंजन करा जाता है फिर कुछ दिन बाद फिर सारे न्यूज चैनल कामेडी और क्रिकेट दिखाने लगेंगे। अब तो बस इस बात का इंतजार है कि लोकल ट्रेन में आते जाते कोई ऐसी सीट खाली मिले जिस के नीचे बम रखा हो(इतनी भीड़ रहती है कि बम वाली सीट पर लोगों को पता होने पर भी बैठने को दौड़ पड़ेंगे) मैं भी उसी पर जा कर बैठ जाउंगी ताकि मुक्ति तो मिले इस सतत तनाव से......
जय जय भड़ास
3 टिप्पणियाँ:
मुम्बई मे कल हुआ आतंकी घटना कोई आतंकी संगठन का काम नही हो सकता। इस घटना मे भारत मे आतंकवाद निर्मुलण के लिए काम करने वाले कुछ महत्वपुर्ण व्यक्तियो की हत्या की गई है । सम्भव है की उन व्यक्तियो के साथ ही कई महत्वपुर्णॅ राज भी सदा के लिए समाप्त हो गए है। घटना के बाद कुछ मुसल्मान आतंकी पकडे जाएगे लेकिन वह सब सत्य को छुपाने की एक कवायद भर है। जब हिन्दुओ के नाम से कोई किसी को मारता है तो शर्म से हिन्दुओ की गरदन झुक जाती है। वैसे ही जब कोई मुसलमान किसी इनसान को मुसलमान के नाम से मारता है तो मुसलमान की भी गरदन झुकती है। तो क्या चर्च से संचालित शक्ति सम्पन्न देशो के खुफिया संगठनो ने इस घटना को अंजाम दिया है ? यह सोचने वाली बात है। इस लाइन पर अनुसंधान होना ही चाहिए। सोनिया गांधी सम्भवतः विश्व के सबसे बडे आतंकी संगठन की अंग है। क्या भारत, पाकिस्तान सहित दक्षिण एसिया के मुलुक अब तक फिरंगीयो और उनके विभाजनकारी दुष्टताओ को समझ नही पाए हैं।
क्यों आयेंगे बाहर से,आतम्की सरदार.
गली-गली में हैं भरे,सौ-सौ नही-हजार.
सौ-हजार या लाख, कौन गिन पाये इनको.
ये दामाद कोई कुछ ना कह सकता इनको.
कह साधक कवि,क्या हो सकता अब बाहर से.
भीतर ही बदलो, क्यॊ सोचते हो बाहर से.
आपा,
आतंकी मुंबई में दाखिल हों या दिल्ली में, इसमें कोई शक नही की इनके पैरोकार हमारे राजनेता ही होते हैं, लचर ढीली व्यवस्था और राजनैतिक कलेश ने जिस तरह से हमारे देश को सांप्रदायिक उन्माद में धकेला है निसंदेह हम गृह युद्ध के कगार पर है.
मगर हमारा मैत्री भाव इतना कमजोर भी नही, हमने बड़े बड़े संकट झेले हैं, और तमाम दागों के बावजूद भारतीयता को हमेशा साबित किया है, इस बार भी ये संकट टलेगा, इन्तेजार तो बस इस बात का की कब हम ऐसे लोगों, राजनेताओं, जुड़ीसियरी, पत्रकारों, और अफसरशाहों को देश से खदेड़ देते हैं.
जय जय भड़ास
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