मुझसे गुडी-गुडी लेखन होता ही नहीं
गुरुवार, 27 नवंबर 2008
मैं क्या करूं कि मुझसे गुडी-गुडी लेखन होता ही नहीं कि बस एयरहोस्टेस की तरह "पेन्टेड स्माइल" चेहरे पर सजा कर लिखती रहूं कि हे सभ्य कहलाने वालों तुमने हमें क्यों लैंगिक विकलांग होने के कारण जीवन भर गली के कुत्तों से भी बदतर जिंदगी जीने को छोड़ दिया तुम्हें सभ्यता का वास्ता.....। मैं अपनी टीस भी बताऊं तो सुर में गाकर बताऊं अगर ऐसी अपेक्षा किसी भले आदमी को है तो मैं बुरी ही रहना पसंद करती हूं। हजारॊं साल की सामाजिक सोच को अगर बदलना है तो हमें विनम्र होकर इस सभ्य लोगों को समझाना पड़ेगा जिससे एक जनाआंदोलन खड़ा हो जाएगा और लोग हम जैसे बच्चों को सहज ही परिवार में स्वीकारने लगेंगे मैं इस बातो से इत्तेफ़ाक नहीं रखती। मेरे साथ जो हुआ वह इन स्वयंभू सभ्य लोगों ने ही किया है ये विनम्रता की भाषा नहीं समझते हैं। मेरे डैडी डा.रूपेश श्रीवास्तव ने मुझे पढ़ने के लिये बहुत सारी पुस्तकें दी हैं उनमें से एक है हिंदुओं की धरम पोथी ’राम चरितमानस" जिसमें एक जगह लिखा है कि भगवान राम जब तीन दिन तक समुन्दर के किनारे पूजा-प्रार्थना करते रहे तब तक समुन्दर ने उन्हें रास्ता नहीं दिया लेकिन जब उन्होंने धनुष उठाया तब डर कर रास्ता दे दिया, दोहा ऐसा है कि "विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत ॥" मैं जब तक जी भर कर अपन पीड़ा को बाहर न निकाल लूंगी अंदर ही अंदर कुछ घुटता रहेगा। मैने मुनव्वर सुल्ताना खाला की पुरानी पोस्ट्स पढ़ी हैं वो तो एकदम भयंकर लेखन करती हैं तो अगर किसी को लगता है कि मैं कड़ी बात लिखती हूं तो मैं अब से कुछ दिनों तक आप सब को अपनी मुनव्वर मौसी जी की कुछ पुरानी पोस्ट्स का स्वाद चखाउंगी तब बताइयेगा कि क्या मैं अंदर ही अंदर घुट कर पागल हो जाऊं। जब लिखने का मौका मिला है तो बेकार का सेंसर मत लागाइयेगा।
3 टिप्पणियाँ:
मेरी प्यारी बिटिया रानी जरा मुनव्वर आपा की पोस्ट्स को डालने से पहले देख लेना कि उनमें मादर-फादर जरा कम हो वरना उनकी हर बात एकदम भयंकर रहती है:)
बच्ची! जरा सम्हाल कर मुनव्वर आपा के बारे में नए भड़ासी नहीं जानते हैं कि वो ज्वालामुखी हैं। तस्लीमा नसरीन और इसमत चुगताई जैसी लेखिकाएं तो इनके आगे "पानी कम चाय" हैं।
जय जय भड़ास
हमारी गुडिया भूमिका,
आप अगर आपा के लेखन से सीख ले रहीं हैं तो मैं गारंटी लेता हूँ की आपकी लेखन धार से बचना किसी के लिए भी नामुमकिन होगा, आपा की लेखनी को झेलने की ताकत बड़े बड़े मुखोटेधारी में नही रही है, क्यौंकी लोगो को कम्बल के अन्दर घी जो पीना होता है, बाहर से सफेदी का लबादा.
आप पढ़ें और लिखें, आपकी सभी लेख जो की आपके विचार होंगे निसदेह क्रांति लायेंगे,
जय जय भड़ास
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