नाट्यमंच के सिक्के के दो पहलू .......
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
हिंदीभाषियों के प्रति नफ़रत का जहर फैलाता नाटक
साम्प्रदायिकता के जहर को मिटाकर प्रेम के संदेश देता इकबाल भाई की प्रस्तुति
भड़ासी भाई-बहनों और बुजुर्ग साथियों, आज एक पीड़ा भड़ास के पन्ने पर निकालने जा रही हूं। जहां एक ओर जनाब इक़बाल नियाज़ी जैसे नाटककार नाटक की कला को देश में जाति धर्म और भाषा की दरार को पाटने के लिये प्रयोग कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर इसी कला का प्रयोग कुछ लोग क्षेत्रवाद और नफ़रत को बढ़ावा देने के लिये कर रहे हैं। भाई इक़बाल जी द्वारा लिखित-निर्देशित व लगभग पचास बार मंचन करे गये नाटक "ये किसका लहू बहा...." के बारे में तो आपने पिछली पोस्ट्स में जाना अब देखिये नाटक "भइया हातपांय पसरी" का चित्र जो कि मुंबई में हिंदीभाषियों के प्रति मराठीभाषियों के मन में कैसे नफ़रत के जहर को फैला रहा है, इस नाटक में दर्शाया गया है कि हिंदीभाषी (भइया लोग) कैसे मुंबई आते हैं और यहां जम कर रह जाते हैं और सम्पत्ति खरीदते हैं घर मकान दुकान बना लेते हैं वगैरह....। एक तरफ संविधान भारतीय नागरिकों को भारत गणराज्य की सीमा मे किसी भी जगह आने जाने में कोई प्रतिबंध नहीं लगाता किंतु ऐसे माध्यम एक सामाजिक प्रतिबंध जरूर पैदा कर देते हैं। मैं दिल से ईश्वर से कामना करती हूं कि ऐसे नाटककारों पर से देवी सरस्वती की दया समाप्त हो जाए।
जय जय भड़ास
भड़ासी भाई-बहनों और बुजुर्ग साथियों, आज एक पीड़ा भड़ास के पन्ने पर निकालने जा रही हूं। जहां एक ओर जनाब इक़बाल नियाज़ी जैसे नाटककार नाटक की कला को देश में जाति धर्म और भाषा की दरार को पाटने के लिये प्रयोग कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर इसी कला का प्रयोग कुछ लोग क्षेत्रवाद और नफ़रत को बढ़ावा देने के लिये कर रहे हैं। भाई इक़बाल जी द्वारा लिखित-निर्देशित व लगभग पचास बार मंचन करे गये नाटक "ये किसका लहू बहा...." के बारे में तो आपने पिछली पोस्ट्स में जाना अब देखिये नाटक "भइया हातपांय पसरी" का चित्र जो कि मुंबई में हिंदीभाषियों के प्रति मराठीभाषियों के मन में कैसे नफ़रत के जहर को फैला रहा है, इस नाटक में दर्शाया गया है कि हिंदीभाषी (भइया लोग) कैसे मुंबई आते हैं और यहां जम कर रह जाते हैं और सम्पत्ति खरीदते हैं घर मकान दुकान बना लेते हैं वगैरह....। एक तरफ संविधान भारतीय नागरिकों को भारत गणराज्य की सीमा मे किसी भी जगह आने जाने में कोई प्रतिबंध नहीं लगाता किंतु ऐसे माध्यम एक सामाजिक प्रतिबंध जरूर पैदा कर देते हैं। मैं दिल से ईश्वर से कामना करती हूं कि ऐसे नाटककारों पर से देवी सरस्वती की दया समाप्त हो जाए।
जय जय भड़ास
3 टिप्पणियाँ:
आपने ही कहा न कि सिक्के के दो पहलू होते हैं लेकिन अगर एक भी पहलू घिसा हुआ हो तो सिक्का चलने योग्य नहीं रह जाता, मूल्यहीन हो जाता है। नाट्यमंच पर जहर फैलाने वालों की भड़ास पर बखिया उधेड़ते रहिये और उन्हें सूचित भी करती चलिये कि हम क्या कर रहे हैं ताकि हम भड़ासियों के विरोध में भी एक नाटक करें ये जाहिल लोग....
जय जय भड़ास
सदुपयोग और दुरुपयोग करना तो उसकी मनोस्थिति के ऊपर है जो कि प्रयोग कर रहा है नाट्यमंच भी इसी के लिये इस्तेमाल हो रहा है....भाई इकबाल नियाज़ी बधाई के पात्र हैं।
हमारा ब्लाग जगत भी इससे कहां बच पाया है...
जय जय भड़ास
फरहीन साहिबा सच कहा आपने वो क्या है की रंगमंच सीधे तौर पर हमारे विचारों से जुदा होता है और फिल्मो से कहीं ज्यादा हमारे विचारों को प्रभावित करता है ........, अगर इसको माध्यम बना कर समाज में ज़हर बोया जा रहा है तो निश्चिंत ही ये फिक्र करने की बात है लेकिन जब इकबाल भाई जैसे लोग समाज को हमेशा आईना दिखाते रहते हों तो हम लोगों पर भार कुछ कम हो जाता है .........आपको एक बार फिर बधाई बहोत अच्छा विषय चुनती हैं आप.........,
आपका हमवतन भाई....gufran......(awadh pepuls forum)
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