सड़क दुर्घटनायें - पुलिस भी कम दोषी नहीं
सोमवार, 19 जनवरी 2009
रोज़ सुबह अखवार उठाओ तो दो चार सड़क दुर्घटनाओं की खबर तो अपने सहारनपुर के पृष्ठ पर ही पढ़ने को मिल जाती हैं। कुछ दुर्घटनाओं का कारण कोहरा होता है पर अधिकांश दुर्घटनाओं के पीछे चालक की लापरवाही या तकनीकी खराबी बताई जाती है। आश्चर्य तो ये है कि इसके बावजूद भी हमारे यातायात नियंत्रक ऊंघते रहते हैं।
मैं अपने शहर में ही देखूं तो मैंने यही पाया है कि यातायात सुरक्षा के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है। लाईसेंस चेक कर लो, इंश्योरेंस चेक कर लो, हेल्मेट चेक कर लो और बस कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है। बहुत कुछ करने की इच्छा हुई तो यातायात सप्ताह मना लो। बच्चों से निबंध लिखवाओ, किसी हिंदी के अध्यापक से उन निबंधों को जंचवाओ, फिर एक दिन बच्चों और बड़ों को सामने बैठा कर भाषण पेलो, विजेताओं को इनाम दे दो, अखवार नवीसों को बढ़िया सा नाश्ता करवा दो, फोटो खिंचवाओ, अपनी वाह वाही करवाओ और फिर उन निबंधों को कूड़े के डब्बे में सरका दो। उन निबंधों में बच्चों ने क्या सुझाव दिये ये पढ़ने की न तो कोई जरूरत समझी जाती है और न ही उन पर अमल करने की चेष्टा होती है। पुलिस अधिकारी मानते हैं कि वे खुद इतने ज्ञानवान हैं कि उनको किसी सुझाव की जरूरत नहीं है। वह तो सिर्फ बच्चों को ज्ञान बांटने के लिये ये सब किया करते हैं।
किसी तेज़ गति वाहन का कभी चालान किया गया हो, ड्राइविंग करते हुए किसी वाहनचालक को मोबाइल पर बात करते हुए देख कर रोका गया हो, जुर्माना किया गया हो, स्कूटर, मोटरसाइकिल पर तीन, चार सवारियां लाद कर चलने पर किसी का चालान काटा गया हो, किसी ओवरलोडेड ट्रक या बस का चालान कटा हो, ऐसा मैने तो कभी देखा नहीं। रेलवे क्रॉसिंग पर बंद फाटक के नीचे से दुपहिया, तिपहिया वाहन निकाले जाते हैं, रोज़ सड़कों पर जानबूझ कर जाम लगाये जाते हैं। कोई पुलिसकर्मी इनको कभी रोकता, पकड़ता दिखाई नहीं देता। हां, वाहन चालकों से अवैध वसूली करते पुलिस कर्मियों को रोज़ाना हर चौराहे पर देखा जा सकता है।
कभी किसी बड़े मामले में पुलिस सक्रिय हो भी जाये तो मामला कचहरी में जाकर दो तीन दशकों के लिये लटक जाता है। अखवारों में इतने अपराधों की खबरें छपती हैं, कभी किसी अपराधी को सज़ा मिली ऐसी खबर पढ़ने को मन तरस जाता है।
हर कोई जानता है कि हमारे देश में वाहन चालक का लाइसेंस रिश्वत और दलालों की कृपा से घर बैठे बैठे बन कर आ जाता है। गाड़ी की फिटनेस के लिये आर.टी.ओ. कार्यालय में रिश्वत देना पर्याप्त होता है - ऐसे में वाहन चालक का लाईसेंस या फिट्नेस चेक करने से क्या दुर्घटनायें कम हो जायेंगी? क्या इन कागज़ों को चेक करना मात्र औपचारिकता नहीं है? क्या भीड़ में, जाम की स्थिति में हैल्मेट दुर्घटना कराएगा या दुर्घटना से सुरक्षा करेगा? क्या पुलिस अधिकारी स्वयं को धोखा नहीं दे रहे हैं? जो वो कर सकते हैं वह तो करते नहीं। तेज़ गति वाहनचालक को पकड़ सकते हैं, कभी नहीं पकड़ते। गर्दन में मोबाइल दबा कर बतियाते मोटर साईकिल, स्कूटर, कार चलाते व्यक्तियों का मोबाइल जब्त कर सकते हैं पर नहीं करते। ओवरलोड वाहनों को सआ दे सकते हैं पर उनसे रिश्वत ले कर उनको छोड़ देते हैं। लाइन तोड़ कर आगे निकल जाने की कुचेष्टा में दिन रात सड़कों पर जाम जैसी स्थिति बनी रहती है। ऐसे लोगों पर दंडात्मक कार्यवाही हो सकती है, पर नहीं होती। फिर दुर्घटनाओं को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने और कर्तव्य परायणता का, जनहित का ढोंग किस लिये?
सुशान्त सिंहल
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