"नउआ" का छक्का-चउआ, कान ले गया कउआ..... फ़ुर्रर्रर्र.....

शुक्रवार, 19 जून 2009

आखिरकार सुरेश चिपलूणकर के स्पष्टीकरण पर ही राजसिंह ने माना कि वे और उनके फ़िरंगी-टोडी तकनीकी के जानकार अभी दुष्ट षडयंत्रकारियों से बहुत पीछे हैं। रही बात भड़ासियों की तो हम सब ठहरे गंवार, देहाती, उजड्ड, मजदूर, बेढब, असभ्य, गाली गलौज करने वाले जाहिल, जन्म से नंगे, महाऔघड़, भदेसी, भारतीय किस्म के लोग सो हम तो ये कहेंगे ही नहीं कि हमने जांच करी और हम चिरकुट चूतिये जांच कर सकते हैं या तकनीक के जानकार हैं वो तो गोरे जानते हैं और वो ही करते हैं। हमारे सामने जो दिखा हम उसे ही रगेद लेते हैं, अब उसे किसने भेजा था ये जानना हमारा काम नहीं है बल्कि जो पिट कर जाएगा वो उससे निपटेगा। भारत का संविधान अच्छा है हमारे हाथ में नहीं है वरना हम तो कसाब को ही पेल रहे होते ये थोड़ी न करते कि उसे दामाद बना कर बैठाएं कि बताओ जमाई राजा आपके पीछे कौन है किसने भेजा है वगैरह...।
मैं डा.रूपेश श्रीवास्तव भड़ास पर निजी तौर पर सुरेश चिपलूणकर से कहता हूं कि हमने जिसकी मइय्यो-बापो करी है भाई संयोग से उसका नाम भी सुरेश चिपलूणकर है बस आपके साथ नाम की समानता है जो आपको दुःख दे रही है और अब तो उसका नाम बराक ओबामा और राजसिंह भी है। अगर बराक ओबामा के नाम से भी कोई हमें उंगली करे तो हम उसकी भी पिछाड़ी में कुतुबमीनार घुसा देंगे, दे दो साले फ़ांसी... कर लो जो करना है....। अफ़सोस नही है कि राजसिंह अभी भी बाई के सम्मान के लिए चिरौरी करते प्रतीत हो रहे हैं कि गंदे,नीच,कमीने और महाबुरे भड़ासी एक औरत से जांघों के बीच से इंसानो का वर्गीकरण करके न बांटें, सो महाराज! भावनाएं स्त्रैण और पुरुषोचित नहीं होती हैं वो सहज मानवीय होती हैं बस इतना कहना है हमारा। ब्लाग तुम्हारा है तुम्हारे पास अधिकार है कि तुम टिप्पणी मात्र माउस के एक क्लिक से हटा सकते हो लेकिन पाखंड का क्या करोगे जो नस-नस में भरा है तो रायता फैलाए बैठे हो कि जब डा.रूपेश श्रीवास्तव हटाए तब ही टिप्पणी हटेगी अन्यथा नहीं, वाकई काफ़ी शरीफ़ किस्म के प्राणी हो और लगे हाथ जनता ये भी बताकर हूलपट्टी में लेने की कोशिश कर रहे हो कि बराक ओबामा भइया लोग को पहचानता है, हा...हा...हा...ही...ही...ही...हो...हो...हो....। तुम हास्य लेखक भी हो टिप्पणी में पता चल गया। सुरेश दादा से एक शिकायत है कि अगर वे मामले को समाप्त करने की बात न करते तो शायद राजू भइया हमें लतियाते हुए ही सही पर अमरीका तो बुलवा लेते सजा दिलाने के लिये, एक मौका मिला था हम भदेसियों को अमरीका देखने का तो इन्होंने उसे भी खत्म करके हम मासूमों के सपनों पर ठर्रा फ़ेर दिया :)

ब्लॉगर Suresh Chiplunkar ने कहा…

मेरी जिस कथित टिप्पणी पर बवाल मचा हुआ है, वह मेरी टिप्पणी नहीं है। यह निश्चित रूप से किसी ने मेरे साथ कोई हरकत की है…। मैं आज ही अपना पासवर्ड बदलता हूँ और आगे से कहीं भी कोई टिप्पणी न करने की कसम खाता हूँ… मैं इस प्रकार की भाषा का कभी भी उपयोग नहीं करता हूँ… चूंकि मेरा सायबर कैफ़े है और मैं वहीं से पोस्ट लिखता हूँ, इसलिये हो सकता है कि किसी शरारती ने मेरा पासवर्ड चुराकर मेरे नाम से यह बेहूदा टिप्पणी की है। मैं रूपेश जी से भी माफ़ी मांगता हूँ… और राज सिंह जी से आग्रह करता हूं कि वह टिप्पणी हटा दें। इसी प्रकार सभी लेखकों से आग्रह है कि कोई भी बेहूदा टिप्पणी मेरे नाम से पाई जाये तो कृपया मेरे मेल पर मुझसे निःसंकोच संपर्क करके इस बारे में बात कर सकते हैं ताकि भविष्य में कोई गलतफ़हमी ना हो…। पता नहीं मेरे नाम से वह "फ़र्जी" कहाँ-कहाँ, कितनी गन्द फ़ैला चुका होगा। राज सिंह जी यदि मुझे नहीं बताते तो शायद पता भी न चलता। एक बात और कहना चाहूँगा कि अमूमन मैं कविताओं पर टिप्पणी नहीं करता (मुझे कविताओं की कोई समझ नहीं है)। अतः इस मामले को यहीं समाप्त माना जाये।

June 17, 2009 10:34 PM

ब्लॉगर RAJ SINH ने कहा…

हिन्दी ब्लोगर परिवार के सभी मित्रों से .....

पहले तो सुरेश चिपलूनकर जी आपको बहुत ही धन्यवाद !
बहुत बहुत धन्यवाद !

आपने मेरी बहुत सारी उलझनों को सुलझा दिया है . अब जाकर माजरा समझ में आया है . पहले तो रूपेश जी की टिप्पणी ने उद्दिघ्न किया जिसमे उन्होंने हरकीरत हकीर के बारे में असम्मंनीय लिखा (मेरे , मेरे लेखन और ' मुद्दे ' के विषय में नहीं , यद्यपि उसका ढंग और भाषा शैली व्यथित करने वाली है )

सुरेश जी की तथाकथित 'टिप्पणी' आने के बाद मैं और भी व्यथित हो गया .लेकिन जैसा मैं पहले कह चूका हूँ की निति के तहत ही मैंने कोई मोदेरेसन नहीं रखा न किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को ही बाधित होने दिया . पूर्व में मेरे बारे में ही कटु ही नहीं असम्मान नीय टिप्पणीयाँ भी आयीं पर उनको भी बिना एक शब्द हटाये वैसे ही रखा . कोई चाहे तो पुष्टिकरण भी कर ले .मैंने उसके जबाब भी जितना बन पड़ा शालीनता से ही दिए पर शिकायत टिप्पणीकारों से नहीं की कभी भी .

यहाँ एक बात बताना जरूरी समझूंगा की ऐसे हर मामले में और खास कर अभी के मामले में मैंने सोर्स को वेरीफाई किया . सुरेश जी की तथाकथित टिप्पणी को असहमत होने के बावजूद भी प्रकाशित तो रहने दिया पर पूरी तरह से उसे कई बार अपने ढंग से और हाल में तंत्रज्ञों द्वारा भी सोर्स को वेरीफाई कराया . उनकी पोस्टों , ब्लॉग और साथ ही अन्य जगह उनके द्वारा की गयी टिप्पणियों और उन की गयी टिप्पणियों के सोर्स का भी मिलान किया /कराया .

मेरे लिए यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी बन गयी जबकि मेरे ऊपर ही आरोप लगाया गया की मै ही ' सुरेश चिपलूनकर ' बन कर यह टिप्पणी दे गया . यह मुझे अचंभित कर गया की कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है . मैं अपनी ही पोस्ट और ब्लॉग पर ऐसा करूंगा ? जबकि इतना गंभीर मुद्दा उठाकर लिख रहा हूँ . यह मुद्दा ही जबकि एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी बन जाता है .

और टेक्निकली पूर्ण संतुष्ट हो जाने के बाद ही मैंने श्री अजय मोहन को चुनौती दी (.ऊपर देख लें )
.मेरा सुरेश जी से कोई परिचय ( व्यक्तिगत )नहीं था . हाँ कुछ जगहों पर मैंने उनके दृष्टिकोण का समर्थन किया था और कुछ पर विरोध . अत्यधिक विरोध भी . अब मामला साफ़ हो गया है . सबकी समझ में भी आ जाना चाहिए .

हाँ जो बात मजबूर होकर मैंने अंत में की वह पहले ही कर लेनी चाहिए थी .सुरेश जी से सीधे पूछ लेना चाहिए था उनकी ' टिप्पणी ' के बारे में . लेकिन मैंने अपने कयास लगाये . यह पा कर की यह टिप्पणी उन्हीं के सोर्स से आयी है , मान लिया की उन्होंने अपने किसी पूर्वाग्रह के तहत ही ऐसा लिखा है ,क्योंकि उनका रूपेश जी के साथ ' भड़ास' वगैरह को लेकर विवाद अतिचर्चित भी हुआ था .अपनी इस मूर्खता पर मैं सिर्फ शर्मिंदा ही हो सकता हूँ . कोई ' फर्जी ' भी ऐसा कारनामा कर सकता है दिमाग में ही नहीं आया .

यह मेरे सहित सभी ब्लोगर जगत के लिए लेखकों पाठकों के लिए भी एक सीख ही है . क्योंकि रूपेश जी ने और उनके भड़ास के कुछ अन्य साथियों ने भी सिर्फ इसे पूर्वाग्रह ही माना और यहाँ तथा ' भड़ास ' ( उनके वाले ) पर जिस तरह से और जिन शब्दों लहजे में प्रतिक्रिया दी वह भी शर्म ही है . हमारी मूर्खता भी . की कौवा कान ले गया कहना ही बहुत था सब ' भडासी ' पिल पड़े , जैसे की भीड़ की तरह , बिना जाने सुने पढ़े . बिना कान की तलाश किये .

इन सब परिस्थितियों में यदि किसी को भी लगता हो की गलती हुयी , जैसा की मुझे भी लग रहा है , ( उससे ज्यादा मूर्खता ) तो मैं पूरे मन से छमा मांगता हूँ और चाहता भी हूँ .

आशा है की सभी गुनिजन बात को समझेंगे और एक दूसरे को माफ़ भी करेंगे .

एक विशेस निवेदन डा.रूपेश श्रीवास्तव से करूंगा .उनसे उनकी टिप्पणी पूर्णतः हटाने के लिए नहीं कहूँगा पर जो उन्होंने हरकीरत हकीर का जिक्र किया है उसे हटा दें . वह भी उन्हीं जैसे मेरे मेहमान के प्रति असम्मंनीय ही नहीं अनावश्यक भी है . व्यक्तिगत मुझे लेकर जो कहा गया उस पर आप सब के विवेक पर छोड़ता हूँ .

धन्यवाद !

June 18, 2009 1:13 AM

जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

अजय मोहन ने कहा…

राजू भइया जी, बस एक बात कहता हूं कि भड़ास पर सचमुच में आपके पैमाने के गुणीजन आते ही नहीं है और विवेक-सिवेक जैसी बात भड़ासियों में नहीं है ये उनके पास होती जो दिमाग से सोचते हैं हम ठहरे ठर्र गंवार जो बस दिल से सोचते हैं। इसलिये महाराज हम जैसे थे वैसे ही रहने वाले हैं.... भौं..भौ...भौं... :)
जय जय भड़ास

दीनबन्धु ने कहा…

अजय सर ने सही कहा कि हम लोग दिल से ही सोचते हैं और हमें स्वयंभू गुणीजनों की जरूरत भी नहीं है जो हमें आकर ईश्वर की भक्ति और इंसानियत का पाठ पढ़ाने का पाखंड करें और उसकी आड़ में हमें चूसते-पेलते रहें जैसा कि सदियों से बौद्धिक किस्म के हरामी करते आए हैं।
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी ने कहा…

HUM BHADASIYON KI BHID ME KOI BHADBHADA KE GIR GAYA HAI....RASTA DIJIYE KHUD HI BAHAR NIKAL JAYEGA..

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