कुछ महीने न लिख कर क्या देख सकी वो बताना है

बुधवार, 20 जनवरी 2010

पिछले कुछ महीनों से सक्रिय लेखन बंद कर के एक प्रयोग करके देख रही थी। इस प्रयोग में मैने ब्लागिंग के बाद में मैंने जो नजरिया पाया था उस नई नजर से दुनिया को देख कर समझने की कोशिश कर रही थी कि शायद कुछ बदलाव आया होगा लेकिन कुछ बदला ही नहीं है बस ये है कि कुछ लोग मुझे पहचानने लगे हैं, इस नयी पहचान के चलते जो सामाजिक कद हासिल हुआ है उसमे पत्रकार बंधुओं को लगने लगा है कि मैं भी घटनाओं पर अपनी राय दूं। अभी जब कुछ समय पहले समलैंगिकता वाले मामले में कानूनी उठापटक चल रही थी तो कई लोगों ने मेरी राय जानना चाहा कि मैं इस बारे में क्या विचार करती हूं। मैंने एक बात देखी कि हर जगह पूंजी का जोर है पैसे की ताकत से सारे काम सिद्ध हो रहे हैं। हमारी न्याय व्यवस्था और न्याय प्रणाली के साथ साथ ही मैंने न्याय का पालन कराने वाली संस्थाओं को भी नये नजरिये से देखने का प्रयास करा लेकिन कुछ भी बदलाव नहीं है। बाबू जी डा. जे.सी.फिलिप सही कहते हैं कि हमारा मसला तो सामाजिक मसला है और सामाजिक बदलावों की गति बहुत धीमी होती है इसलिये फिलहाल कुछ अपेक्षा करना भी व्यर्थ है। लैंगिक विकलांगता के मुद्दे को दरकिनार करके धनी और कुटिल लोगों ने खुद ही एक लैंगिक अल्पसंख्यक वर्ग रच डाला जिसे उन्होंने "LGBT समूह" नाम दे डाला और गुदा मैथुन से लेकर मुख मैथुन तक को अपनी निजी काम-वरीयताओं में गिना कर कानूनी नौटंकी करके भारतीय सभ्यता के मुंह पर कालिख पोत दी पर हमारे माननीय न्यायाधीश तर्कों के आगे घुटने टेके रहे। आश्चर्य होता है जब न्यायाधीश अपने निजी विवेक का जरा भी प्रयोग नहीं करते। आजकल मेरा रुझान ’विधि के शासन’(Rule of law) की तरफ है जिसे एक आम नागरिक होने की हैसियत से जानने का प्रयत्न कर रही हूं। काफ़ी दिनों बाद लिख रही हूं तो विचारों का तारतम्य आसानी से नहीं बन पा रहा है। मुझे पता है कि जो भड़ास इतने दिनों से दम साध कर रोके हुए थी अब उबल-उबल कर बाहर आएगी। इस बीच मैं अपने बड़े भाई और गुरुदेव डा.श्री रूपेश श्रीवास्तव जी के सम्पर्क में रही, लंतरानी समूह की संचालिका और भड़ास की संरक्षिका मेरी बड़ी बहन मुनव्वर(सुल्ताना)आपा के जुड़ाव में भी लगातार हूं इसलिये कुछ अविस्मरणीय पल तस्वीरों के रूप में कैद हो सके जो आप सबके साथ बांटना है।
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

Achaanak nazar pad jaana bhi kya toh thithak jaana hai...
Wo bhi subah subah... kya toh afsaana hai... chale kahin aur the, gum kahin aur jaana hai.

Toh bhi Sub-haan Allah!

Bhadaa.... aaas.

Aas baki hai.
Mere bhi salaam len sab shaandaar aur jaandaar log. Aapke kahe ka kuchh zikra mere blog "snowa... the mystica" me bhi hai.

-Snowa Borno, Ashesh Pariwar ke sath aap ko pyar ke sath.

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

@ Snowa Borno
हमारा कहा और तुम्हारा कहा तो भेद है ही नहीं बस मचल तो सबके भीतर रहा था पहले किसने उगल दिया, उल्टी उसकी मान ली जाती है,यदि ये रचनात्मकता है भी तो वमन से अधिक कुछ नहीं है...
आप भड़ास पर पधारे हम धन्य हुए, आप रहस्यवादी हैं हम किनारे बैठे भौतिकवादी लोग हैं जो भूख,काम,भय,जरूरतों,लालच.... ना जाने किन किन बातों को लपेट कर बस अनायास जिए जा रहे हैं
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

दीदी,
हमें बेसब्री से इन्तजार है,
आपकी लेखनी और तस्वीरों का.
जय जय भड़ास

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