एक दलाल को भाई कह कर गुफरान सिद्दीकी ने !

गुरुवार, 24 जून 2010

एक दलाल को भाई कह कर गुफरान सिद्दीकी ने जो गुस्ताखी की है उसकी एवज में उल्टियाँ तो पड़नी ही थी खैर कोई बात नहीं बीमार की बात पर ध्यान नहीं देते ये जो लिंक उठा उठा कर लाते कमीशन का धंधा बढ़िया है लेकिन यहाँ फंस गए आकर यहाँ तो रोज़ी रोटी चलने से रही क्योंकि भड़ास के मंच पर इसका कोई जुगाड़ नहीं है और रुपेश भाई की शैली भी बिकाऊ नहीं है लगता है फस गए संजय जहाँ जाते हो वहां यही काम करते हो क्या चोरी चकारी खैर कोई बात नहीं अब बात करते हैं भाई बंधू बनाने की महोदय रुपेश भाई ने आपको भडासी का खिताब दे दिया तो सोचा भाई से संबोधन करूँ लेकिन तुमने इसको मेरी कमजोरी समझी कोई बात नहीं हर कोई यहाँ अपने को तीरंदाज़ बताता फिरता है और ज्ञान की उल्टियाँ करता रहता है लेकिन खुद की हकीक़त कपटी कभी नहीं बताता चलो जान करना भी क्या है हम तो अपना काम करते हैं और किसी से उसके लिए प्रमाद पत्र लेने की ज़रूरत नहीं ,जहाँ तक 'लोकतंत्र' और धर्मनिरपेक्ष की बात है तो पहले इसका भी मतलब समझा ही दीजिये लेकिन लिंक मत दीजियेगा हम बाजारवाद से कुछ सहम से जाते हैं महोदय जिस कुए में टर्र टर्र करके निकले हैं भड़ास को कुवा समझने की गलती न करिए कृपया पहले भी मैंने कहाँ ..........इसकी भाषा नहीं जो कहना है खुल कर कहिये और हाँ जो राष्ट्र राष्ट्र चिल्ला रहे हैं ये आपकी टर्र टर्र से काफी मेल खाता है और जिसको और ये भी जान लीजिये की जहाँ से राष्ट्र विरोध सबसे अधिक है वही रह कर आप जैसे लोग उन हरामियों का समर्थन करते हैं जो भारत को खंडित करने की साजिश रच रहे हैं जनता हूँ ये तर्क पचेगा नहीं लेकिन क्या करें सत्य तो यही है इश्वर को नहीं कर्म को मानते हो तो एक दो के ऊपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम करा ही दो अगर फटे न तो.......

1 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

चिढ़ गये चिढ़ गये चिढ़ गये
खीझ गये खीझ गये खीझ गये
यार गुफ़रान बाबू आप तो इतनी जल्दी दल्ला भड़वा रंडी शिखंडी पर उतारू हो गये ये क्या बात हुई। पट्ठे ने आपको और रणधीर सिंह सुमन जी को जो लिंक पढ़ने को दी हैं उन्हें पढ़ कर कोई तर्कपूर्ण उत्तर लिख कर संजय कटारनवरे का मुंह काला कर देते तो बात थी। भड़ास पर किसी लिंक को देना कोई नयी बात तो नही है, रही बात पढ़ने की सलाह देने की तो इस बंदे ने सिर्फ़ आपको ही नहीं रणधीर सिंह सुमन जी को भी पढ़ने को लिखा है जैसे कि उन्होंने इन महाशय को कुछ किताबें पढ़ने को सुझाई थीं आप तो किसी ब्लॉग की एक लिंक मात्र से खीझ गए। दूसरी बात कि सुमन जी तो मैदान छोड़ कर ही पलायन कर गए लग रहा है कि लोकसंघर्ष का मामला अब भड़ास पर तो बस किस्सागोई तक ही रहने वाला है विचारधारा तो इस बंदे ने सामने ला दी है कि लाल झंडा कितना हितचिंतक है देश का। अब सुमन जी कई दिनों से चुप्पी साधे हैं और जैसे कि इस बंदे ने लिखा है कि आपने विमर्श की दिशा को मोड़ना चाहा है और आप सफल भी रहे क्योंकि बात आपने सुमन जी से उठा कर अपनी ओर घुमा ली है। खैर हम तो सब को देख रहे हैं इसी मंच पर---- बाजारवाद,भड़ास,कुंवा,मेढ़क,राष्ट्र,टर्र टर्र,लोकसंघर्ष,अवध पीपुल्स फ़ोरम,तीरंदाजी,लोकतंत्र,धर्मनिरपेक्षता,हिंदू,मुसलमान,भारत,पाकिस्तान,अरब,खरब.....
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