आनर किलिंग का विरोध करने वाले गद्दार !!!

मंगलवार, 14 सितंबर 2010


कल की ही बात है, वैसे टी वी पर एक मात्र सीरियल जो मैं देखता हूँ वो झांसी की रानी है. कल समर सिंह को फांसी दे दी गयी या यूँ कहें की समर सिंह ने देश सम्मान के लिए मृत्यु को स्वीकार. सिरिअल देख रहा था और जो विचार जेहन में थे वो सिर्फ इतना की ये फांसी भी तो आनर डेथ ही है.


भारत का इतिहास मान सम्मान के साथ ही समृद्ध है. ये मान सम्मान ही है जहाँ महाराणा प्रताप ने जंगल में घास खा कर वापसी की मगर सम्मान के लिए घुटने नहीं टेके. वहीँ राजनीतिज्ञ सम्राट चाणक्य ने सम्मान के लिए इतिहास रचा, गुप्त वंश भारतीय इतिहास का सुनहरा पन्ना है जो सिर्फ चाणक्य की दें है.

मुगलों के खिलाफ जौहर हो या भगत सिंह का हँसते हँसते फांसी को गले लगाना सब सिर्फ देश के मान सम्मान की खातिर. सीधी सी बात है की भारतीयता के धनाड्य होने में हमारा मान सम्मान हमेशा एक अहम् पहलु रहा है.

आज के कुछ या कहें अधिकतर जो अपने आपको भारतीय मानने में शर्म और फिरंगी बनने में गर्व महसूस करते हैं को आनर किलिंग के बहाने आधुनिक और समाज के पहरेदार बनने का भूत चढ़ा हुआ है. ये सभी वो लोग ही तो हैं जो कभी मुगलों और अंग्रेजों के ज़माने में देश के साथ गद्दारी करते थे आज उसी गद्दार के वंशज हमारी सभ्यता के साथ गद्दारी कर आधुनिका का चोला ओढना चाहते हैं.

देश के लिए सम्मान बाजार में नहीं मिलता, खरीद कर या उधार लेकर नहीं मिलता अपितु अपने घरों के संस्कार हमें ओत प्रोत कर देता है ये इन गद्दारों के वंसजों को कभी पता नहीं चलेगा. अगर हमें अपने घर के लिए अपने माता पिता के लिए सम्मान नहीं है तो देश के लिए सम्मान, मोमबत्ती जलना, प्रेस क्लब में इसी बहाने दारू की पार्टी करना दिखावे के साथ देश से सब गद्दारी ही तो है.

5 टिप्पणियाँ:

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
.
भाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है.अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है,
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं

एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html

Tausif Hindustani ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने राम ने मन सम्मान के लिए सीता की दो बार परीक्षा ली और सारी तकलीफ सिर्फ सीता ने सहा कभी जंगल में राम के साथ तो कभी रावण के साथ तो कभी वाल्मीकि के साथ . हमें तो अपना मन सम्मान नारी जाती को तडपाने में और उन्हें sati करने में और सम्मान के नाम पे जान से मारने में बचा है
dabirnews.blogspot.com

anshumala ने कहा…

शीर्षक देख कर तो एक बार घबरा ही गई थी की ये क्या लिखा है पढ़ कर पता चला की ये तो कुछ और ही है | सही कहा आपने देश के सम्मान के लिए हसते हुए मौत को गले लगने को और क्या कह सकते है |

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

रजनीश भाई ये आपने क्या लिख डाला कल तक जो जनाब तौसीफ़ हिन्दुस्तानी आपको गरिया रहे थे आज आपके साथ स्रुर मिला कर गाना गा रहे हैं। प्रेस क्लब के बारे में ज्यादा कुछ बोल या लिख दिया तो हो सकता है कि दुबारा बुरा मान जाएं
जय जय भड़ास

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

तौसिफ भाई,
लिखने से पहले लेख तो तो समझ लिया करो गुरु, ये राम सीता को क्यूँ बीच में ला रहे हो, हमने तो मोहम्मद साहिब का नाम नहीं लिया, बिना जाने बिना समझे बिना ज्ञान के टिपण्णी करने से बचो. कुछ भी कह देने से लोग ग्यानी नहीं बन जाते जैसे कौवा सफेदी करके हंस नहीं बन जाता है.
लेख को पढो दस बार शायद अर्थ समझ में आ जाये.
जय जय भड़ास

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