ऐसी नीच औलादें पैदा करने से अच्छा होता कि माताजी आप बांझ रहतीं.....
गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010
आज से लगभग डेढ़ साल पहले का वाकया मैंने इसी मंच पर लिखा था कि बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता की कैसी दुर्गति होने के लिये छोड़ देते है। ३ फ़रवरी मंगलवार २००९ के दिन लिखे इस आलेख के बाद मैं ये सोच बैठा था कि कुछ दिन बाद वह बूढ़ी मां इसी तरह गुमनाम मौत मुंबई के किसी उपनगरीय रेलवे स्टेशन पर मर गयी होगी।
बूढ़े माता-पिता को मुंबई की ट्रेन में बैठा दीजिये
आज मुझे भड़ास से जुड़े मेरे आफ़लाइन बाल-गोपालों ने फोन करा कि आप किधर हैं, मैंने कहा कि मैं नई मुंबई जुईनगर में हूं तो वे बोले कि आप सानपाड़ा में उस जगह आ जाइये जिधर लोकल ट्रेनों की धुलाई-सफ़ाई होती है यहां एक खाली लोकल में हम लोग पानी की खाली प्लास्टिक की बोतलें बीनने आए थे तो एक बूढ़ी औरत को देखा जो कि पूरी पानी से भीगी हुई है और हमारी बात समझ नहीं पा रही है कहीं मर न जाए आप जल्द आइये। खाली बोतलें बीनने वाले बच्चों के बुलाने पर मैं अपने साथ मेरे एक मौलाना मित्र को लेकर तुरंत उस जगह पहुंचा तो देख कर हैरान रह गया कि ये वही बूढ़ी महिला है जिसके बारे में मैं लिख कर आक्रोश निकाल चुका था और ये सोच चुका था कि बेचारी अब तक तो कहीं मर खप गयी होगी। लेकिन वाह रे दुनिया बनाने वाले.... तू भी कमाल करता है जिसे न ठीक से खाने को है न रहने को उसे जिंदा रखे है और जिन्हें सब सुविधाएं हैं वो अचानक चले जाते हैं।ठिठुरती माई को हम सब ने सूखे कपड़े जो कि मौलाना साथ लेकर आए थे दे दिये और चाय वड़ा-पाव देकर चले आए क्योंकि वो अब लोकल ट्रेन से उतरना ही नहीं चाहती थीं। शायद वो लोकल ट्रेन उन्हें अपने उन बेटा-बहू से ज्यादा भली लगने लगी है जिसमें कोई भी सहारा देकर कुछ खाने पीने को दे देता है जबकि बेटा बहू ने तो धोखे से यू.पी. से मुंबई आने वाली ट्रेन में धोखे से बैठा दिया था।न जाने कब तक भटकेगी ये मां इसी तरह? ऐसी नीच औलादों को पैदा करने से तो अच्छा होता कि वो मां ही न बन पाती, आजीवन बांझ होने का ताना सह लेती लेकिन ये दिन न देखने पड़ते।
जय जय भड़ास
8 टिप्पणियाँ:
वाह रे दुनिया बनाने वाले.... तू भी कमाल करता है जिसे न ठीक से खाने को है न रहने को उसे जिंदा रखे है और जिन्हें सब सुविधाएं हैं वो अचानक चले जाते हैं।
इस दुलनया में ऐसे ही दिल दहला देने वाले वाकये होते रहते हैं !!
kya kahu bandhu samajh nahi paa raha, aapki tab bhi post padhi thi maine aur aaj fir unhi ke baare me ye ek alag padh raha hu, kaise khoon ki rishte bhi safed ho jate hain yahan, samajh nahi pata.......
उसे कब पता था कि उसके अपने बच्चे ऐसे निकलेंगे और उसके साथ इस उम्र में ये सब होगा.कोई नही जनता.आप और मैं भी नही.यदि जां सके तो ...हाँ कोई भी बच्चे को जन्म नही देना चाहेगा.
बुद्धि अम्मा का सुन कर दुःख हुआ.क्या करें?
बस..इसी कारन चाहती हूँ अपने शहर में एक चिल्ड्रन होम और ओल्ड एज होम खोलना और इनके लिए जीना चाहते हैं हम दोनों.ईश्वर साथ दे.अब कहाँ है वो अम्मा? इसे मात्र एक सनसनी समाचार ही ना बना रहने दे.उनके लिए कुछ स्थाई व्यवस्था जरूर करे.वैसे इनके बेटे बहु को ढूंढ निकालना कोई मुश्किल नही मिद्या के लिए और ऐसी औलादों की उतारी जाए जिससे दुसरे दुबारा ऐसी हरकत करने से पहले दस बार सोचे.
उपर वाले इस तरह की ओलाद को उसके बुढ़ापे में फिर इतिहाश को दोहराना होगा
भाईसाहब दुर्भाग्य ही है। हम इस तरह के बुजुर्गों से तो रोजाना ही दो चार होते हैं। अपने माँगे हुए में से कुछ खरीद कर इन्हें खिला-पिला देते हैं बस...
इन नीच औलादों को कोसने के सिवाय क्या कर सकते हैं
जय जय भड़ास
दुनिया है साहब।
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@इंदुपुरी गोस्वामी जी
आप चाहें तो मुंबई पधारें और मुझसे संपर्क करें ताकि आपको ऐसे कई वृद्धों और लावारिस बच्चों से मिलवा सकें जिनके लिये कम से कम मैं तो निजी तौर पर कुछ खास न कर पाया बस आप सबके सामने आक्रोश में बात रखने के अलावा
मेरा मोबाइल नं. 09224496555
जय जय भड़ास
डा.रूपेश श्रीवास्तव जी अब लगभग आठ महीने हो गए है, देखिये बूढ़ी माई अभी भी वहीं कहीं लोकल ट्रेन के किसी डब्बे में बैठी मिलेगी| पहले पहल तो पता नहीं किसने और कहां से उसे मुम्बई की ट्रेन पर बिठा विदा किया था लेकिन अब की बार तो आप ही उसे मरने कि लिए छोड़ आये हैं| यदि बूढी माई ट्रेन से उतरना नहीं चाहती थी तो रेलवे के किसी अधिकारी या पुलिस को ही खबर कर दी होती ताकि उस महिला की देख रेख की जाती| सभ्य देश में कोई नागरिक आप जैसा लापरवाही का व्यवहार नहीं करेगा| वैसे आपकी कलम घिसते देख हम शर्मिंदा हैं और जानता चाहते हैं कि क्या बूढी माई ठीक से तो है|
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