डा.रूपेश जी की माता जी की मृत्यु नैसर्गिक नहीं बल्कि अत्यंत क्रूर हत्या थी

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

अब तक हम सभी लोगों ने ये पाया कि जब भी अनूप मंडल की तरफ से कोई बात लिखी जाती रही तो वह ये कह कर मजाक बना दी जाती कि हम सब तो व्यर्थ में ही इस आधुनिक युग में राक्षस,यंत्र-मंत्र-तंत्र और जादू-टोने आदि की बातें करके भोले-भाले जैनों को प्रताड़ित करते हैं। आज हम जो कह रहे हैं वह जैनों से सीधे संबद्ध नहीं है लेकिन जादू टोने से जुड़ी अवश्य है। इस बातचीत में आने से पहले हम कुछ मित्र आदरणीय डा.रूपेश जी के घर गए थे और सारी परिस्थितियों का जायजा लिया। अब तक हमने जितने भी स्वयंभू विद्वान बुद्धिमान देखे हैं वे भले ही समाज में खुल कर जादूटोने को बकवास कहकर नकार देते हों लेकिन अकेले में दबी जुबान में जरूर स्वीकारते हैं। हम हमेशा से ये कहते आ रहे हैं कि जिसे ब्लैक मैजिक या काला जादू कहा जाता है उसे हमारे संविधान में क्यों प्रतिबंधित करा गया है क्या संविधान बनाने वाले मूर्ख थे कि जो अस्तित्व में ही नहीं है उसे कानून बना कर प्रतिबंधित करें? हम अक्सर ही मुंबई जैसे आधुनिक शहर में चौराहों पर नींबू, अंडे,सिंदूर आदि जैसी वस्तुएं देखा करते हैं तो ये कौन लोग हैं जो इन सब को मान कर अमल में ला रहे हैं?
डा.रूपेश जी की माताजी के मामले में हमने पाया कि उनको बुखार रहता था ध्यान दीजिये कि मात्र बुखार। जब स्वयं डा.साहब जैसा आयुर्वेद का धुरंधर विद्वान इससे एक माह लगातार जूझ कर कुछ हासिल न कर पाया तो मुंबई के लगभग सभी चिकित्सक विद्वानों से सलाह ले डाली जिसने जो कहा कर लिया। यहां तक कि जिसने उपवास करने या हनुमान चालीसा पढ़ने को कहा तो वो तक करना शुरू कर दिया लेकिन इसे क्या कहेंगे कि जितना उपाय करा गया हर कदम पर माताजी के स्वास्थ्य में गिरावट आती गयी सारी रिपोर्ट्स हर बार ओ.के. आकर चिकित्सा का उपहास कर देतीं और डाक्टर नए टैस्ट्स कराते जाते। अंतिम एक माह में जब हताशा सी होने लगी तो तंत्र-मंत्र का भी सहारा लिया गया लेकिन क्या आश्चर्य कि दरवाजे पर लटकाया नींबू-मिर्ची तक गायब हो गया। डा.रूपेश, उनकी बड़ी बहन और बड़े भाई तीनो माताजी के पास सारे काम छोड़ कर चौबीस घंटे मौजूद रहते थर्मामीटर था कि यदि पंद्रह मिनट में दस बार लगाया जाता तो हर बार अलग-अलग तापमान बताया। शक होता कि शायद थर्मामीटर खराब है लेकिन कम से कम कई सौ बार बहन जी और भाई साहब ने अपने शरीर पर उसी थर्मामीटर को लगा कर उसे सही पाया। पानी की पट्टियां लगातार दो-चार-छह यहां तक कि दस-पंद्रह घंटों तक रख कर भी एक डिग्री तक तापमान कम न होता। दिमाग क्या करता है ऐसे में?तांत्रिक परिचित ने कहा कि भाई अब भी मान जाइये कि ये बीमारी नहीं है बल्कि वज्रमूठ का मारण प्रयोग है। दुनिया भर में बुखार के लिये प्रसिद्ध दवाएं देकर भी चाहे वह ऐलोपैथी की हों या आयुर्वेद की बुखार निन्यानबे डिग्री रहने पर दवा देते ही दस पंद्रह मिनट में एक सौ चार डिग्री तक चला जाता फिर पानी की पट्टियां आदि रखने का उपक्रम करने पर भी परिणाम ढाक के तीन पात रहता। चौबीस छब्बीस घंटों बाद बुखार खुद ही कम हो जाता जब ये तीनों भाई बहन हताश हो कर हनुमान चालीसा आदि पढ़ने लगते। एक बारगी लगता कि हनुमान चालीसा से बुखार उतर रहा है तो तीनो तीमारदारी में लगे माताजी का मलमूत्र साफ़ करते हुए भी जपते रहते लेकिन बुखार तो मुंह चिढ़ाता बना ही रहता। तांत्रिक ने कह दिया कि भाई ये एक निश्चित मुद्दत के हिसाब से करा मारण प्रयोग है और समय पूरा हो चुका है लेकिन फिर भी यदि आप दबाव देते हैं तो मैं उपाय करता हूं, डाक्टर साहब का कहना भी सही था कि मरना तो सबको है तो क्या इस बात से निराश होकर हम प्राण रक्षा के उपाय करना बंद कर देते हैं। आप अपना जो कुछ भी जंतर-मंतर करना चाहें करिये आपको इजाज़त है। डा.साहब स्वभाववश तांत्रिक की हर हरकत और अपने घर में होने वाली हर अजीब बात की तस्वीरें लेते चल रहे थे...................................
क्रमशः
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

ऐसा तो मेरे साथ रोज होता रहा है पिछले कई सालो से !

अनोप मंडल ने कहा…

@ YM यदि आप के साथ ऐसा पिछले कई सालों से होता आ रहा है तो आप बात को सही तरीके से समझ कर उपचार करवाइये। भले ही आपको कोई अंधविश्वासी या दकियानूसी कहे यही तो इन राक्षसों का मायाजाल है जिसमें मनुष्य उलझ गये हैं
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

प्रकृति ने कहा…

डा० रूपेश, आज मै अचानक ऐसे ही आपकी वेब साइट पर चला आया, मै तो कम्प्यूटर बन्द करके सोने जा रहा था / पता नहीं कैसे मस्तिष्क में यह बात आयी कि आप्की वेब साईट पर आ करके कुछ पढा और समझा जाये /

यहा आकर जब मै सर्फिन्ग कर रहा था तो अचानक आपकी माता जी का देहान्त का समाचार देखकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ / ताज्जुब इसलिये कि मुझे आपकी माता जी की म्रूत्यु के बारे मे पता ही नहीं चला और न आपने कोई सूचना ही दी /

अभी अभी मुझे आपकी माता जी के स्वर्गवास का पता चला और मै आपको अपना शोक व्यक्त कर रहा हूं / ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और सभी परिवारीजनों को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे / ओम शान्ति, शान्ति, शान्ति /

गुरू जी

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