विचार विमर्श की आवश्यकता क्या है? मुँहचोरी की जय हो !!
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
आजकल भड़ास पर एक बात देखने में आ रही है कि सामान्यतः जो समसामयिक विचार रहते हैं उन पर तो वैसे भी दूसरे ब्लागर मुंह मारते है लेकिन भड़ासी तो ऐसे मुद्दों पर झांकते तक नहीं है। ओबामा से सरकोज़ी तक और जूलियन असांजे से लेकर अमित जैन तक किसी पर कोई भड़ासी पता नहीं क्यों नहीं लिखता। विचार विमर्श करने की जरूरत क्या है सबसे अच्छा तरीका है कि जब कोई बात सवाल के रूप में सामने आ जाए तो कुछ दिन या सप्ताह मुंह छिपाए रहो बस लोग भूल जाते हैं उसके बाद फिर उल्टी-दस्त शुरू कर दो। विकीलीक्स तो बहुत दूर का विषय है हमारे डा.रूपेश श्रीवास्तव जी की माताजी के निधन के बाद अनूप मंडल ने अपने चश्मे से जो देख कर लिखना शुरू कर दिया उस पर भी ब्ला-ब्ला करने वाले किसी ब्लागर की हिम्मत नहीं हुई कि कुछ प्रतिवाद दर्ज कराए। हां ऐसा जरूर हुआ कि कोई अनूप मंडल का बाप आ गया कोई यमराज आ गया लेकिन सच्चे और ईमानदार विमर्श के लिये कोई सामने आने का साहस न जुटा सका। आजकल तो शायद यमराज को भी सर्दी लग गयी है और अनूप मंडल के बाप न जाने क्या कर रहे हैं बस एक अमित जैन भाई ही हैं जो अनूप मंडल की कस कर लेने में ताकत लगा रहे हैं वो भी बिना वैचारिक वायग्रा का सेवन करे। अनूप मंडल के लोग भी जब कुछ दिन तक लोगों का फ़ीडबैक देख लेते हैं तो नयी कड़ी लेकर अमित को दुखी करने आ जाते हैं। अच्छा है पेले रहो एक दूसरे को बाकी मुद्दे तो मुख्यधारा के ब्लागर चूस-चबा ही रहे हैं।
जय जय भड़ास
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