धन्यवाद अमित जैन मानव-दानव विमर्श में तुम सही रास्ते पर आ रहे हो

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

हम सभी अनूप मंडल के सदस्य हृदय से भड़ास के मंच की पवित्रता और संचालकों को प्रणाम करते है। हम सब इतने समय से सतत प्रयास रत थे लेकिन कोई मार्ग नहीं बन रहा था कि हम किसी जैन को सीधे विमर्श में आमने सामने ला सकें। भड़ास ने वो मार्ग खोल दिया और अमित जैन के रूप में एक विचारवान जैन सामने आ गया। अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार उन्होंने पहले तो चिढ़ कर गाली-गलौज करी हमें तमाम उपमाओं से संबोधित करके अपनी कुंठा निकाली और फिर वही करा जो कि ये लोग सदियों से करते आ रहे हैं लेकिन सामने नहीं आ रहा था। इससे पहले तुमने अपनी राक्षसी प्रवृत्ति के चलते इस्लाम पर भी कीचड़ उछालने की कुचेष्टा करी है।
आप सब ने देखा कि जब हमने सत्यार्थ प्रकाश (स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित आर्य समाज का एक आदरणीय गृन्थ) का जिक्र करा तो अमित बौखला गये क्योंकि इससे पहले वे जानना चाहते थे कि किस जगह उन्हें सीधे "राक्षस" सिद्ध करा गया है। जब सत्यार्थ प्रकाश सामने लाकर उन्हें बताया कि आप साहस करके स्वामी दयानंद सरस्वती जी को भी चूतिया, गधा और कुत्ते का पिल्ला आदि कहने की हिम्मत करो तो उन्होंने तत्काल हिंदुओं की नस को पकड़ कर संग लेने की पलटी मार ली कि देखो देखो भाइयों स्वामी दयानंद ने तो पुराणों को भी गलत और बकवास बताया है। वेदों के बाद जब राक्षसों ने जान लिया कि मनुष्य अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिये अपने धर्मगृन्थों को ही आधार बनाते हैं तो ये राक्षस इस क्षेत्र में ऋषियों के वेष में भी घुस गए और मनुष्यों के आदरणीय देवी-देवताओं,पूर्वजों आदि के नाम पर ऐसे ऐसे मनगढ़ंत किस्से लिख कर प्रचारित कर दिये कि खुद देवताओं के वंशज मनुष्य भ्रमित होकर रह गए । अमित जैन ने तो मात्र एक ही पुराण की बात का जिक्र करा है हम कहते हैं कि आप शिवपुराण से लेकर विष्णुपुराण तक और लिंग पुराण से लेकर देवी पुराण तक उठा लीजिए सभी में ऐसी बेसिर-पैर की बातें मिलेंगी कि आप असहज हो जाएंगे लेकिन चूंकि आपके देवी-देवताओं के नाम से लिखी बातें हैं तो आप उन्हें तार्किक तौर पर स्वीकार न कर पाने पर भी श्रद्धावश माने रहते हैं लेकिन इसके चलते धर्म का स्वरूप विकृत होता चला गया।
सोचने की बात है कि वेदों को मानने वाले आर्यों में से विष्णु,शिव,राम,कृष्ण आदि की मूर्तियां पूजने वाले हिंदू कैसे उपज गये?? अवतारवाद का सिद्धांत कैसे समाज में प्रक्षेपित कर दिया गया?? निराकार प्रकाशस्वरूप बृह्म को मानने वाले(मुस्लिम भी नूररूपी एक अल्लाह को ही मानता है ये ध्यान दें जो कि क्रिस्तान भी मानते हैं यानि शुरूआती दौर में ये एक मत ही रहे हैं किन्तु बाद में इनमें भेद उपजाए गये हैं जो कि सप्रयास करे गए) थे।राक्षस सदा से ही स्वर्गरूपी धरती माता पर कब्जा करने को लालायित रहे हैं जिसके लिये ये इस तरह के जतन करते रहे हैं। इनकी माया समझ पाना इतना आसान होता तो आज हमें इतनी जद्दोजहद न करनी पड़ती।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

देवताओं के गुरू बृहस्पति के शिष्यों की जमात के लोग दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य के शिष्यों की जमात को पेले जा रहे हैं और अखाड़ा बना हुआ है भड़ास का मंच। अच्छी कुश्ती है ऐसे ही एक दूसरे की लेते रहो शायद मानवता बेहतर स्थिति में आ जाए। वैसे अमित जैन हमेशा उन्नीस रहे हैं और अनूप मंडल बीस नहीं पच्चीस सिद्ध होता है इस बार भी कुछ वैसा ही हाल है। अब अमित कुछ दिन के लिये ताजमहल की कथा सुनाएंगे या फिर कोई चुटकुला ;)
जय जय भड़ास

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

आपके वार्षिक उत्सव का निमंत्रण मिला। पूरी कोशिश रहेगी कि आप सबके साथ मचर-मचर में शामिल होकर मानव-दानव की भयानक विमर्श में भाग ले सकूं। यदि हो सके तो निमंत्रण पत्र को भड़ास पर प्रकाशित कर दें जिसे आना होगा आ जाएगा।
जय जय भड़ास

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