मुंबई में मैराथन दौड़ क्यों होती है?कौन कराता है??कौन दौड़ता है???
मंगलवार, 18 जनवरी 2011
पिछले कुछ दिनों से देख रहा था कि मुंबई में मैराथन दौड़ को लेकर बड़ी गहमागहमी छायी हुई थी। वो लोग जिन्हें जनता देखने को तरस जाती है जैसे कि फिल्म स्टार, अंबानी-संबानी टाइप के बिजनेस टाईकून्स, समाजसेवा से मेवा खाने वाले समाजसेवक आदि। इस पूरी दौड़ में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो जाते हैं जिन्हें कोई काम धंधा नहीं रहता और जिन्हें लगता है कि वे इसमें हिस्सा लेकर "कुछ" कर रहे हैं। इनमें वे लोग शामिल नहीं रहते जो कि सुबह मुंह अंधेरे घर से निकल कर भागते हुए लोकल ट्रेन पकड़ते है और बैठने की जगह पाने के लिये ट्रेन स्टेशन पर आकर खड़ी होने से पहले ही लपक कर चढ़ जाते हैं, बसों में धक्के खाते हैं आफ़िस में जाकर मालिक की डांट खाते हैं और शाम को ताश के पत्ते खेलते हुए उसी लोकल ट्रेन में कसमसाते हुए अपने अपने दड़बेनुमा घरों(जिन्हें मुंबई में फ़्लैट्स कहकर सम्मान दिया जाता है) लौट जाते हैं। वो नेता भी नहीं रहते हो को घोटालों में सतत व्यस्त रहते हैं। तो फिर कौन कराता है ये सब और क्यों??? अरे यार बड़े लोगों का मनोरंजन है, टाइमपास है, आदर्श सोसायटियों की तरफ से ध्यान हटाने का प्रयास है। प्याज, खाने का तेल, रसोई गैस, टमाटर, लहसुन जैसी आम जरूरत की वस्तुओं की सुरसा के बदन की तरह बढ़ती कीमतों की तरफ से थोड़ा सा ध्यान हटाने के लिये आयोजन रहता है। मोबाइल फोन आदि की कीमतें दिन ब दिन कम हो रही हैं आखिर हमारा देश तरक्की कर रहा है अगर किसान आत्महत्या कर लें या मध्यम वर्गीय परिवार की कमर टूट जाए तो क्या फ़र्क पड़ता है तरक्की के लिये कुर्बानी देनी पड़ती है।
अबे लोकल ट्रेनों और बसों में सफ़र करने वालों तुम तो रोज ही मैराथन दौड़ते हो लेकिन जीतते नहीं जीतेगा तो वो जो इथयोपिया से इधर तक दौड़ कर आया है तुम तो सिर्फ़ उत्तर प्रदेश बिहार तमिलनाडु कर्नाटक या फ़िर बीजापुर कोल्हापुर से मुंबई आए हो तुम्हारी दौड़ भी छोटी और तुम्हारी रफ़्तार भी कम है।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
हमें भी आजतक समझ नहीं आई कि ये मैराथन है क्या?
प्रणाम
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