जैन बनाम अनूप मंडल या तंत्र-मंत्र????? प्रवीण शाह जी(धीरज शाह जी से नहीं ) से विमर्श

सोमवार, 14 मार्च 2011

प्रवीण शाह जी आपकी बात के नीचे मेरी बात है कृपया बिना जल्दबाजी के पढ़ें यदि समय की कमी हो तो कई दिन में पढ़ें।
प्रिय व आदरणीय डॉ० रूपेश श्रीवास्तव जी,
प्रिय व आदरणीय प्रवीण शाह जी,

आपकी इस पोस्ट के लिये आभार, परन्तु मैं भी कुछ कहना चाहूँगा...
आपकी इस टिप्पणी के लिये आभार, परन्तु मैं भी कुछ कहना चाहूंगा...

१- मेरा नाम प्रवीण शाह है धीरज शाह नहीं...
आप धीरज शाह के लिये लिखी पोस्ट को क्यों अपने लिये स्वीकार रहे हैं जबकि इससे पहले आप न सिर्फ़ अनूप मंडल को भी बता चुके हैं कि प्रवीण शाह जाहिराना तौर पर धीरज शाह से अलग हैं। उन्होंने किसी धीरज शाह के लिए कुछ वमन करा तो आप आ गए क्या "शाह" सरनेम के ब्लागर नहीं हैं संभव हो कि आपको लगा हो कि अनूप मंडल गलती कर रहा है और वो आप से ही मुखातिब है। इसलिये आपने उनकी भूल सुधार कर दी वैसे तो अधिकांशतः ब्लागर तमाम बातों पर राजनैतिक चुप्पी साध लेते हैं। आपको पुनः धन्यवाद भड़ास पर पधारने के लिये आभार स्वीकारिये। अब जब आप स्वयं कि धीरज शाह मान ही चुके हैं तो ये ही सही:) कृपया अन्यथा न लें प्रवीण जी।
२- मैं काफी हद तक आश्वस्त हूँ कि मुनेन्द्र सोनी जी भी अनोप मंडल के 'भाविक' हैं, यह मानने के मेरे पास पर्याप्त आधार हैं...
कृपया अपनी मान्यता के आधार प्रस्तुत करें तो मैं ये लिख सकूंगा कि ये लोग तीन हजार एक से ज्यादा हैं जिनसे मैं मिल चुका हूं क्योंकि एक बार अहमदाबाद में तीन हजार लोगों से रूबरू मिलना हुआ था। वैसे मुनेन्द्र को अनूप मंडल में मान लेना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि फ़िलहाल वो उनके समर्थन में लिख रहे हैं न... किन्तु "भाविक" नहीं जैसा कि आपने लिखा।
३- मैंने अब तक चार बार अपनी पोस्ट bharhaas.bhadas@blogger.com पर इ-मेल की है... आप यदि चाहते हैं कि इस विषय पर विद्वान लोग साहस करके चर्चा व विमर्श करें मात्र परिहास-उपहास में न उड़ा दें।... तो कृपया मेरी पोस्ट छापें... तभी तो बहस होगी आगे...
आदरणीय प्रवीण जी एक बात तो आशा है कि आप जानते होंगे कि भड़ास का एकमात्र माडरेटर मैं ही नहीं अपितु भाई श्री रजनीश के.झा साहब भी हैं। चूंकि मैं एक चिकित्सक हूं तो कई बार तकनीकी कार्यों आदि में विलंब हो जाता है और तानाशाही का माहौल न हो इसलिये एक और माडरेटर होना अनिवार्य माना गया जो कि कदाचित अन्य सामूहिक ब्लाग पर नहीं है। आप जानते हैं कि जिसे आप या कोई आपको अपने ब्लाग के व्यवस्थापन के तकनीकी अधिकार दे देता है वह आपके हाथ में क्या क्या अधिकार दे रहा होता है यदि दूसरा व्यवस्थापक चाहे तो पलक झपकते माउस के एक क्लिक से मुझे उस मंच से हमेशा के लिये बेदखल कर सकता है इसके बावजूद भी हम भड़ास के लोकतान्त्रिक शैली के लिये ऐसा कर रहे हैं और हमें इस बात पर गर्व है। ई-मेल के द्वारा आने वाली पोस्ट कैसी कैसी रहती हैं कदाचित आपको इस बात का अनुमान ही नहीं है कि यदि बिना माडरेशन के उन्हें सीधे ही प्रकाशित कर दिया जाए तो आप और हमारी मां-बहने भड़ास को कभी देख ही नहीं सकती इतनी अश्लीलता और एडवर्टाइज भेजी जाती है साथ ही भड़ास पर लिखे जाने वाले विचार चाहे वह किसी के समर्थन में हों या विरोध में गालियां तो बदले में हमारी ही मां-बहनों को दी जाती हैं जिन्हें हम चाह कर भी खून का घूंट पीकर बिना प्रकाशित करे रहते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि किसी ने यदि अपना विरोध जताने के मेरी मां को गाली दी है तो आप उसे पढ़ कर दोबारा न दें।
यकीन मानिये कि आप निःसंदेह साहसी है और आपकी विद्वता से कोई इन्कार नहीं है जो आप इस विषय पर चर्चा हेतु आगे आए क्योंकि आज तक किसी भी स्वयंभू विद्वान ब्लागर ने ऐसा साहस नहीं करा जबकि भड़ास पर पधारने वाले लोगो में कुछेक तो ब्लागर होंगे ही सारे पाठक तो नहीं रहते। आपकी पोस्ट को मैं अभी प्रकाशित करे दे रहा हूं। देख लीजिये कोई संपादन तो नही है जो कि ई-मेल से पोस्ट भेजने वाले के साथ कुटिलतावश कई बार व्यवस्थापक कर देते हैं(कृपया टिप्पणी से प्रमाणित करें क्योंकि टिप्पणी हटायी जा सकती है लेकिन संपादित नहीं करी जा सकती।) एक और विनती है कि बहस और शास्त्रार्थ/विचार-विमर्श में भेद बनाए रखें।
४- जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट में कहा भी है कि भड़ास के मॉडरेशन से टिप्पणी को बाहर आने में ४८ घंटे तक लग रहे हैं, ब्लॉगिंग में इतना धैर्य नहीं किसी के पास... अत: या तो यह मॉडरेशनोपरान्त छपना तुरन्त हो या मॉडरेशन हटा दीजिये...
भाई ब्लागिंग अधीरता या असंयम का कार्य नहीं है क्योंकि हम जो भी लिखते हैं उसे तमाम दुनिया देख रही होती है ये एक जिम्मेदाराना कार्य है। उससे भी अधिक जिम्मेदारी हो जाती है संपादक/व्यव्स्थापक की जब ब्लाग सामूहिक हो। एक बात और बताना था कि चूंकि अब ब्लागर ने अपनी नीति के तहत एक समूह ब्लाग में सौ से अधिक लेखक लेने बंद कर दिये हैं इसलिये कई लोगों को विनम्रता पूर्वक हटाया और ई-मेल से पोस्ट भेजने की नीति बनायी गयी। आशा है कि आप धैर्य और ब्लागिंग में सामंजस्य कर सकेंगे। भड़ास चलाना दोनो हाथ में अंगारे लेकर बैठना और बिना रोये चिल्लाए ऐसा है, लेखक तो लिख देता है और प्रतिक्रियाएं व्यवस्थापक पर होती हैं। इसी भड़ास पर सीधे मेरे ऊपर आरोप लगाया गया था कि मुझे अंतर्राष्ट्रीय अपराधी दाउद इब्राहिम से धन आता है ताकि मैं मुस्लिमों का समर्थन करूं। आप यदि लेख-संग्रह में देखें तो आपको ये पोस्ट भी मिल जाएगी। माडरेशन लगाना तो बाध्यता है क्योंकि विधि ये बताती है कि स्वतंत्रता की क्या सीमा हो जो कि उच्श्रंखलता से रोक सके। अतः प्रार्थना है कि इस व्यवस्था में परिवर्तन का आग्रह न करें यदि बेहतर बनाने का सुझाव हो तो अवश्य दें।
५- आपकी माताजी के देहावसान से मैं भी दुखी हूँ, दिवंगता को मेरी श्रद्धांजलि व नमन...
माता जी के देहावसान के दुःख में आप मेरे साथ शामिल हैं इसके लिये आभार।
विश्वास है कि आप विमर्श जारी रखेंगे।
हम भड़ासियों का अटूट विश्वास है कि हमारे विचार और उनसे निर्मित सामाजिकता हमें राष्ट्र को साविधि चलाने की एक व्यवस्था प्रदान करती है इसलिये विचारों को विधि से अलग कर के देखना हमें उचित नहीं प्रतीत होता है। अनूप मंडल के जो ग्रंथ राजस्थान सरकार ने जब्त करे थे वे भी तो संवैधानिक विधि से ही करे न? तो आप कैसे कह सकते हैं कि ब्लागिंग में विचारों को चलने दिया जाए और इन्हें कानून से रोका नहीं जा सकता??
मेरी अभी अनूप मंडल के राजस्थान प्रवक्ता श्री भूराराम जी से मोबाइल पर बात हुई तो उन्होंने आपकी बात का समर्थन करा कि ये बात सत्य है कि सन ५७ में इस संस्था की तमाम पुस्तकों को प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन इसके बाद ये भी सत्य है कि ये प्रतिबंध सिर्फ़ राजस्थान में है जिसपर श्री ईश्वरलाल खत्री जी तीन साल जेल में रह चुके हैं और उन्होंने प्रतिबंध के इस फैसले के खिलाफ़ याचिका भी दायर करी है जो कि विचाराधीन है और मामला फ़िलवक्त न्यायालय में प्रक्रियान्तर्गत है। केन्द्र सरकार ने इनकी पुस्तकों पर कोई रोक नहीं लगायी है न ही संगठन पर कोई प्रतिबंध है। इनके अनुसार इनके समर्थन में यदाकदा कानून के जानकार और लोकसंघर्ष ब्लाग वाले हमारे वरिष्ठ भड़ासी एडवोकेट श्री रणधीर सिंह सुमन जी भी इनकी बातों की ताइद करते हैं यानि कि कानून के प्रतिबंध अत्यंत निम्न स्तर पर हैं शीर्षस्थ नहीं अभी आगे गुंजाइश है। वामपंथ का सरकार द्वारा विरोध या दमन करना तो हमेशा की नीति रही है इसमें कुछ नया नहीं है।
अंतिम बात कि अनूप मंडल ने इन लेखों में जैनों का विरोध(उन्हें राक्षस कहना या सभी गड़बडियों के जिम्मेदार ठहराना नहीं लिखा था)यहां बात जैन बनाम अनूप मंडल नहीं है इसलिये मंडल का विरोध विषय नहीं है बल्कि तंत्र-मंत्र विषय था।
जय जय भड़ास

24 टिप्पणियाँ:

हरभूषण ने कहा…

बिल्कुल सही अंदाज में जवाब दिया है डा.साहब आपने क्योंकि ये बात अनूप मंडल ने लिखी जरूर थी लेकिन ये जैन विरोधी बात नहीं थी यदि किसी को ये सब दकियानूसी जान पड़ती थी तो उस वक्त क्यों नहीं बोला?
शाह जी भी अनूप मंडल के सामने जिस तरह आए हैं वह भी न तो तथ्यपरक है न ही तर्क आधारित क्योंकि ये जनाब अत्यंत अधीर हैं। काले जादू या तंत्र मंत्र के इस मामले में इनकी लिखी बात पर जिन लोगों ने टिप्पणियों की हाजिरी लगाई है वे भी भड़ास पर आकर अनूप मंडल की निंदा न कर पाए यदि विरोधी विचार थे तो। ये लौटेंगे इस बात की बहुत कम उम्मीद है जैसे कि यमराज और ऐसे ही न जाने कितने ऐसे लोग उस क्रम में पैदा हुए थे और फिर भड़ास की स्पेशल इफ़ेक्ट से गायब हो गये।
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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@ हरभूषण जी,

लीजिये मैं लौट आया... मुझे पूरी उम्मीद है कि आप भी आगे के विमर्श में अपनी स्वस्थ प्रतिभागिता बनाये रखेंगे...


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प्रवीण ने कहा…

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प्रिय व आदरणीय डॉ० रूपेश श्रीवास्तव जी,

२- मैं काफी हद तक आश्वस्त हूँ कि मुनेन्द्र सोनी जी भी अनोप मंडल के 'भाविक' हैं, यह मानने के मेरे पास पर्याप्त आधार हैं...

कृपया अपनी मान्यता के आधार प्रस्तुत करें तो मैं ये लिख सकूंगा कि ये लोग तीन हजार एक से ज्यादा हैं जिनसे मैं मिल चुका हूं क्योंकि एक बार अहमदाबाद में तीन हजार लोगों से रूबरू मिलना हुआ था। वैसे मुनेन्द्र को अनूप मंडल में मान लेना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि फ़िलहाल वो उनके समर्थन में लिख रहे हैं न... किन्तु "भाविक" नहीं जैसा कि आपने लिखा।

इस संबंध में मैं आपका व सभी का ध्यान मुनेन्द्र सोनी जी की टिप्पणी के इस अंश की ओर दिलाना चाहूँगा...

"अनूप मंडल के लोगों ने जैसे ही प्रवीण शाह को सही पहचान से पुकारा तो तुरंत औकात पर आ गया। अनूप मंडल को एक और की सही पहचान कराने के लिये धन्यवाद।
शाह कौन होते हैं ये जानने के लिये किधर-किधर जाना पड़ेगा? फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह क्या उत्तराखंड के कुंमाऊं का है दुष्ट दानव? अनूप मंडल के लोग राक्षसों की पहचान करा रहे हैं शाहों की नहीं।"


आप ही बता रहे हैं कि सोनी जी एक वकील भी हैं... मैंने क्या किसी की भैंस खोल ली है, किसी गरीब से बेगार कराई है या किसी के सौ रूपये के जेवर ४० में गिरवी रख दस फीसदी महीने का ब्याज 'कमा' रहा हूँ... जो अनूप मंडल मुझे राक्षस कह रहा है और मुनेन्द्र सोनी इस बात पर उसे धन्यवाद दे रहे हैं... साफ है कि वही अनूप मंडल के भाविक हैं...




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प्रवीण ने कहा…

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"देख लीजिये कोई संपादन तो नही है जो कि ई-मेल से पोस्ट भेजने वाले के साथ कुटिलतावश कई बार व्यवस्थापक कर देते हैं(कृपया टिप्पणी से प्रमाणित करें क्योंकि टिप्पणी हटायी जा सकती है लेकिन संपादित नहीं करी जा सकती।)"

प्रमाणित करता हूँ कि मेरी पोस्ट में कोई संपादन नहीं है यद्मपि मुझे खुशी होती कि मेरी लिखी html आलेख में न दिखाई देती...



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प्रवीण ने कहा…

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"अंतिम बात कि अनूप मंडल ने इन लेखों में जैनों का विरोध(उन्हें राक्षस कहना या सभी गड़बडियों के जिम्मेदार ठहराना नहीं लिखा था)यहां बात जैन बनाम अनूप मंडल नहीं है इसलिये मंडल का विरोध विषय नहीं है बल्कि तंत्र-मंत्र विषय था।"

यह थोड़ा तो सही है पर पूरा नहीं, अनूप मंडल अपने लेखों की सीरिज से यह साबित करना चाहता है कि तंत्र मंत्र का प्रभाव व वजूद वाकई है तथा साधु अनूप दास का महाजन वर्ग के विरूद्ध प्रमुख आरोप भी यही है कि वे तन्त्र मन्त्र का इन्द्रजाल रच बाकी को भरमाते हैं... इस तरह परोक्ष रूप में 'जगतहितकारिणी' नाम की 'सातों-आठों विलायतों के बादशाह और खासकर दयालु महाराजाधिराज पंचम जॉजॅ बहादुर की खिदमत में हाथ जोडकर पेश की गई अर्जी 'की बातों को सही ठहराया जा रहा है...

बहरहाल आपकी इच्छा का सम्मान करते हुऐ मैं भी यही चाहता हूँ कि हमारा विमर्श 'तंत्र-मंत्र' के ऊपर ही सीमित रहे...मेरा मानना यह है कि यह सब तंत्र-मंत्र बेवकूफ बनाने की कला से ज्यादा कुछ नहीं है... अब अनूप मंडल की लेख सीरिज से ही उद्धृत करता हूँ...

"***तांत्रिक ने पूजा आदि का विग्रह सजा कर हल्दी के चूर्ण से एक वृत्ताकार मंडल बनाया जिसमें रख कर उसने पपीतों पर बंधा लाल कपड़ा खोला और एक एक करके उन्हें घर के चाकू से ही काटा। पपीते काटने पर बीजों के अलावा क्या निकलेगा ये तो उम्मीद ही न थी लेकिन जब पहले पपीते में से साड़ी का एक तिहाई टुकड़ा, करीब दो सौ ग्राम सूखी लाल मिर्चें आदि जैसी सामग्री निकली तो सभी लोग भौचक्के रह गये
***दूसरा पपीता तांत्रिक ने काटा तो उसमें से बकरे की घुटनों से काटी हुई चार टांगें, दो अंडे, दो शंख जिनके मुंह बालों के गुच्छे से बंद करे गए थे,ब्लाउज की दो काटी हुई आस्तीनें, अगरबत्तियां आदि सामग्री निकली।
***तीसरा पपीता काटने पर उसमें से कुछ हड्डियां, दो लाल कपड़े और लकड़ी से बनाई गुडियानुमा आकृतियां, दो नींबू जिनमें कि पचास साठ आलपिनें चुभोई हुई थी आदि निकली।"

सहज बुद्धि यही तो कहेगी कि किसी इन्सान को मारने के लिये बिनाकटे पपीतों के अंदर यह सारा माल घुसाने की जरूरत क्या है जबकि 'निशाने' के दिमाग की धमनियों या दिल की कॉरोनरी आर्टरीज के अंदर महज दस ग्राम कुटी मिर्च तंत्र क्रिया द्वारा पहुंचा देने से यह काम मिनटों में हो सकता है...
यदि तन्त्र से किसी दूर बैठे इंसान को मारना संभव होता तो हिन्दुस्तान के करोड़ों इस विद्मा में विश्वासी लोगों में कोई देशभक्त नहीं बचा क्या जो मुल्क के दुश्मनों की 'सुपारी' इस विद्मा के किसी समर्थ साधक को दे देता ?


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काम रस से भरी कहानिया ने कहा…

बेटा हरभूषण हमे कैसे याद किया , हम जरा अपने कार्य मे व्यस्त थे , इस लिए अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पाए ,परन्तु आप जैसे भक्तो के मन मे हम हर वक्त विचरण करते है ,


बेटा मुनेन्द्र सोनी तुम अपने दिल मे भरा हुआ बरसो का गुस्सा निकल दो ,जो तुम्हारे अंदर जात पात की पुरानी भारतीय व्यवस्था के कारण बरसो से जमा हो गया है , तुम्हारे जीवन का अंतिम लक्ष्य भी मै ही हू , अतः मेरी शरण मे आ बालक

बालक प्रवीन शाह तुम इन सब अक्ल के मारो को अर्थात अनूप मंडल के ३००० बेवकूफों को समझाने मे कामयाब हो ,ये हमारा तुम्हे आशीर्वाद है

काम रस से भरी कहानिया ने कहा…

बालक अनूप उस पपीते मे से ही तो तुम्हारे अनूपदास ने तो जनम नहीं लिया था ,जो तुम्हे हर चीज पपीत मे से निकलती दिखाई देती है ...:}

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

@ mr yamraj ji
भैंसे पर बैठे गधे... जैसे ही भड़ासियों ने अंगूठा करा तो बौखला कर आ गए वो भी नंगों के समर्थन में...हम भी तो जानते हैं कि तुम कौन हो धूर्त प्राणी;)
तुम चिंता मत करना भड़ासी तुम्हे मृत्यु को याद करके जीते हैं तभी तो डरते नहीं ये तुम जैसे धूर्त नहीं समझ सकते। हरभूषण भाई जैसे लोग तुम्हारी समझ में नहीं आएंगे mr yamraj ji के नाम से लिखने वाले गधे। अनूप दास ने तो मां के गर्भ से जन्म लिया था लेकिन तुम क्या पीछे से निकले थे। हम जान रहे हैं कि पिछवाड़े मिर्ची का गोदाम खुल गया है इसलिये जापान से काम छोड़ कर इधर भड़ास पर आए बिना शांति नहीं मिली।
हम इसी तरह तुम दुष्टों की लेते रहेंगे। प्रवीण शाह को तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत नहीं है वो वैसे भी विमर्श में सक्षम है। प्रवीण बाबू मैं अनूप मंडल की बातों से सहमत हूं तो इस तरह की सहमति तो रणधीर सिंह सुमन ने भी जतायी थी तब तुमने उन्हें अनूप मंडल का "भाविक" नहीं माना। खैर तुम्हारी समझ की बलिहारी है...अभी भी उसपर तर्कपूर्ण बात नहीं कर रहे हो जो कि विचार का विषय है
जय जय भड़ास

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

प्रवीण जी यदि अनूप मंडल की सारी बातों में से आपने मात्र कुछ लाइनें पढ़ी हैं जैसा कि आप खुद मानते हैं कि ब्लागिंग में किसी के पास "इतना" समय नहीं है तो आप पूरी बात से वंचित हैं। मेहरबानी करके उन साइंटिफ़िक प्रमाणों को भी देख लीजिये जो कि इस प्रकरण में उद्घृत करे गए हैं। काले जादू या तंत्र-मंत्र के बारे में अभी तो आप ने महज सहज बुद्धि की बात करी है आप आगे देखिए कि आपकी बुद्धि कैसे असहज हो जाएगी क्योंकि इस पूरे प्रकरण मे चश्मदीद गवाह खुद महाभड़ासी,महाशक्की,पक्के साइंटिस्ट एम.डी., पी.एच.डी. जैसी भारी भरकम डिग्रियों के धारक डा.रूपेश श्रीवास्तव रहे हैं
जय जय भड़ास

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

एक और बात कि प्रवीण जी एक एक शब्द को भड़ास पर चूस-चबा कर उसका स्वाद ले लेकर लिखा जाता है तो अब आप आ ही गए हैं तो ये ध्यान रहे कि कितनी भी बातें मरोड़ लें पीछा नहीं छूटने वाला।
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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@ मुनेन्द्र सोनी जी,

किन साइंटिफिक प्रमाणों की बात कर रहे हैं आप... कोई Illusion Artist या हाथ की सफाई दिखाने वाला या अगर चार पाँच लोगों के सामने पपीते से ढेर सा माल निकाल देता है तो भी इससे क्या साबित होता है ?... भाई मारना आदमी को है तो पपीते का क्या काम ?... वैसे भी गलियों चौराहों पर हाथ की सफाई दिखाने वाले भी बहुतों को भरमा जाते हैं... साड़ी, आलपिन, अगरबत्ती, लाल कपड़े, ब्लाउज की आस्तीनें, गुड़िया आदि चीजें केवल इन्सान ही बना सकता है वह भी फैक्ट्रियों में... स्पष्ट है कि इन चीजों को पपीते के अंदर डालने में कहीं न कहीं आदमी शामिल होगा...

एक संभावना पर और विचार किया जा सकता है कि क्या पेड़ पर लगे पपीते में एक छोटा सा कट लगाकर कुछ चीजें डाल दी जायें तो कुछ समय बाद वह कट की जगह पर जुड़ तो नहीं जाता ?

हजारों मूर्ख हमारे देश में तंत्र-मंत्र की साधना करने के लिये शम्शानों में डेरा जमाये होते हैं व हर आते जाते को मानव कपाल आदि दिखा भीख मांगते होते हैं... किसी के पास कोई सिद्धि देखी है क्या आपने ?

एक जिज्ञासा मेरी भी, जब पपीतों से माल निकला था तब क्या आप वहाँ मौजूद थे ?



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डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

प्रवीण जी मुनेन्द्र भाई जिन साइंटिफ़िक प्रमाणों की बात कर रहे हैं शायद आपने अपने स्वभाव की अधीरता के चलते उन्हें देखा पढ़ा नहीं। एक बार पूरे प्रकरण को गौर से पढ़े तब ही कुछ लिखें बिना पढ़े कुछ भी लिखना गैरजिम्मेदाराना होगा जिसकी आपसे कदाचित अपेक्षा नहीं है
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

मेरी डॉ साहब से विनम् विनती है की वो किप्या जो भी प्रमाण है उन सभी को भडाश के मंच पर पोस्ट कर दे जिस से की इस तंत्र मन्त्र विद्या पर पूर्ण रूप से विचार विमश किया जा सके न की सभी भडासी भाई बहन आपस में आरोप प्रत्यारोप कर एक दूसरे को कमतर आकते रहे

manoj ने कहा…

saley munende lagta hai ki tu kisi giri hui ,pichdi jati ka kutta hai jo har vakt bhokta rahta hai ,ab to parveen ke bare me shuru ho gaya , tujhe koi akal nahi chutiye ,yaha bhadash par tuapne ulte sidhe vicharo ko kabhi kisi ki me aghutha karna bata raha hai , abe thedi gardan vale kavaae jyada kav kav mat kiya kar

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

अमित भाई जिस विषय पर बात चल रही है उस समय चूंकि मैं भी वहां मौजूद थी
जय जय भड़ास

प्रवीण ने कहा…

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आदरणीय डॉ० रूपेश श्रीवास्तव ने कहा:-
प्रवीण जी निवेदन करना चाहता हूं कि मैं स्वयं एम.डी., पी.एच.डी. हूं और अंधश्रद्धा निर्मूलन के तमाम कार्यक्रमों में डेमोन्सट्रेटर रह चुका हूं अपने कालेज के दौरान और इन कार्यक्रमों में हम सबके संरक्षक जिले के कलेक्टर हुआ करते थे। हाथ की सफ़ाई या इस तरह की ट्रिक्स में तो हमारे सारे ग्रुप को महारत हासिल थी। ये बात अलग है कि अब सब अपने अपने रोजी रोजगार परिवार में उलझ गए हैं।
एक विनती और है कि यदि अनूप मंडल ने एक भी बात असत्य लिखी होती तो मैं स्वयं उसका तत्काल खंडन कर देता। मैं संभावनाओं पर नहीं ठोस परिणामों के आधार पर जीवन को देखता हूं। मेरी निजी प्रयोगशाला रही है। यदि मुझे इस पूरे प्रकरण में तनिक भी श्रद्धा रही होती तो मैं हाथ जोड़ कर पूजा में बैठा होता न कि मूवी कैमरा लेकर वीडियो बना रहा होता।
अंतिम बात कि आप स्वयं पपीते पर ऐसा प्रयोग करके देख लीजिये या आपकी नजरों में कोई illusion artist हो जो कि मेरे ग्रुप के सामने ऐसा कर सके तो मैं इस वैश्विक मंच से उसे या आपको एक लाख रुपए का नगद प्रोत्साहन पुरस्कार देने की घोषणा करता हूं बस सारी परिस्थितियां पूर्ववत रहेंगी ये बात दीगर होगी कि इस बार कोई मरेगा नहीं, है न? मेरा ये पुरस्कार साइंस की तरक्की के लिये होगा न कि अंधश्रद्धा के पोषण के लिये।
जब तक कोई रहस्य नहीं खुलता वह जादू है जब खुल गया तो तर्कबद्ध तरीके से साइंस मे दर्ज़ हो जाता है। मैं प्रयोगवादी प्रकृति का हूं और इसके लिये साइंस के मौजूदा तरीकों को आजमाता हूं आपके पास यदि कुछ अधिक उन्नत तरीका हो तो अवश्य सूचित करें।
श्मशान में कौन क्या कर रहा है ये विमर्श का विषय होगा लेकिन फिलहाल नहीं। आशा है कि आप विषय को परिहास में न उड़ाएंगे।


मेरा उत्तर था...

मेरा मानना है कि आप उस समय ऐसी मनोस्थिति में नहीं थे कि चीजों को उनकी समग्रता में देख पाते...

एक लाख तो नहीं पर अपनी खून पसीने की कमाई में से पाँच हजार रूपये मैं भी उस तान्त्रिक को देने को सहर्ष तैयार हूँ जो मुम्बई के किसी ब्लॉगर भाई द्वारा किसी फल की दुकान से खरीदे पपीते में से पूर्ववर्णित माल निकाल दिखा सके... आप चाहें तो यह प्रयोग TSALIM के तत्वाधान में भी किया जा सकता है...

एक कदम और आगे जाते हुऐ मैं अपना फोटो, पहना हुआ वस्त्र व बाल भी देने को तैयार हूँ बशर्ते तय समय सीमा (एक माह) के अंदर कोई मुझे इस लोक से उबार दे... अपने मरणोपरांत लाभों में से उस शख्स को एक लाख रू० इन सेवाओं की एवज में देने का प्रबंध भी कर जाउंगा मैं...


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प्रवीण ने कहा…

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सभी से...

१- मैंने अनोप मंडल की वह लेख सीरिज अनेकों बार पढ़ी है आपको यह भी पता होना चाहिये कि मैंने उस पर एक पोस्ट भी बनाई थी... मेरा मानना है कि स्वयं ईश्वर भी भौतिकी के नियमों को मानने को बाध्य है... आप बिना बुनियाद के तो धर्मस्थल भी यदि बना दें तो वह धराशायी हो जायेगा... ठीक इसी तरह किसी बिना कटे फल से बाहर केवल नमी (जल) व गैसें निकल सकती हैं व बिना कटे फल के अंदर भी कुछ मामलों में नमी व गैसें ही जा सकती हैं... अन्य कुछ किसी भी क्रिया द्वारा नहीं जा सकता... यदि कोई ऐसा कर सकता है तो उसे कोई छोटी मोटी तंत्र की दुकान खोलने की जरूरत नहीं है... चॉकलेट-आइस्क्रीम भरे पपीते,कीमा मटर बीच में भरे आलू बनाये, बेचे और रातोंरात हो जाये करोड़पति...

२- दूसरी बात जैसा कि मैं समझ पाया हूँ यह स्थापित किया जा रहा है कि किसी ने डॉ० साहब से रंजिशन यह किया है... सीधा सवाल यह भी है कि दुश्मनी डॉ० साहब से तो निशाना माताजी पर क्यों ?


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प्रवीण ने कहा…

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मुनव्वर सुलताना जी कहती हैं...अमित भाई जिस विषय पर बात चल रही है उस समय चूंकि मैं भी वहां मौजूद थी और पूरे होशोहवास में थी। डा.साहब के मूवी कैमरे से लगभग पौने घंटे का एक "अनकट" वीडियो है जो कि mpeg format में बना है और फिर इसके बाद जब एक और वीडियो है जिसमें कि कैमरा मेरे हाथ में है और डा.साहब ने उस पूरी सामग्री को दोबारा निकाल कर दिखाया गया है और यह वीडियो भी तकरीबन बीस मिनट का है। चूंकि नंगी आंखों से धोखा हो सकता है इस लिये इस वीडियो को स्टिल फोटोज़ में jpeg format में तोड़ लिया गया जिसमें कि कई लाख तस्वीरें हैं यदि इन तस्वीरों को भड़ास पर चढ़ाना संभव हो पाता तो अब तक तो मैं ही कर चुकी होती। ये जरूर कहा गया था कि यदि कोई चाहे तो उसे इस वीडियोज़ की प्रति भेज दी जाएगी।
एक बात तो साफ़ है कि विषय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं अपितु विचार-विमर्श का है। सभी भड़ासी भाई-बहन किसी से कमतर नहीं हैं लेकिन इस सार्थक नोकझोंक भरी शैली से अक्सर सही हल मिल जाता है यही भड़ास की खासियत है। हम सभी जानते हैं कि खुद डा.रूपेश श्रीवास्तव क्या किसी भी गूढ़ विषय को इतनी आसानी से छोड़ देने वालों में से नहीं हैं। वे साइंस की तरक्की के लिये एक लाख रुपए तक सहर्ष देने को तैयार हैं ताकि इस विषय पर कुछ आगे शोध हो सके एक सिरे से नकार देने से तो शोध का भी मार्ग बंद हो जाएगा। एक जमाना था कि होम्योपैथी को डा.हैनीमैन के समय शंका से देखा गया फिर ये ऊंचाइयों तक गयी और अब फिर साइंस की एक खास विचारधारा का कुटिल तबका इसे सिरे से नकार रहा है आप इस विषय में कौन सा साइंटिफ़िक तरीका अपनाने वाले हैं कृपया स्पष्ट करें क्योंकि हमने जो तर्कपूर्ण तरीका अपनाया था वह युवा भड़ासिन कु.फ़रहीन मोमिन द्वारा सुझाया था जो कि स्वयं साइबर फ़ोरेन्सिक साइंस की छात्रा हैं साथ ही थे डा.दीपांशु ठाकुर जो कि स्वयं होम्योपैथ होने के साथ अंधश्रद्धा निर्मूलन कार्यक्रमों के संचालक रहे हैं। अपनी प्राचीन विद्याओं को यदि हम किसी भी प्रकार से पुनर्ज्जीवित कर सकें तो इससे मानवता का ही भला होगा जो उपाय हानि पहुंचा सकते हैं उनमें लाभ की भी गुंजाइश होती है बशर्ते आपको प्रयोग का सही तरीका पता हो। एक समय में डा.जगदीश चंद्र बसु से लेकर डा.बंधु साहनी सभी तो इस तरह की निंदा का शिकार होते रहे हैं इसमें डा.रूपेश श्रीवास्तव जी के लिये नया क्या है। वे तो बस इतना चाहते हैं कि घटना की साइंटिफ़िक तरीके से विवेचना हो सके न कि वे अंधविश्वास फैला रहे हैं जैसा कि जताया जा रहा है।प्रवीण शाह ही भी कृपया बात को इसी संदर्भ में लें तो लोकहित होगा।


टेलीविजन पर इल्युजन आर्टिस्टों द्वारा दिखाई तमाम ट्रिक ऐसी हैं जिन्हें आप फ्रेम दर फ्रेम तोड़ लें तब भी आप ट्रिक को पकड़ नहीं पायेंगे... सवाल यह है कि एक ऐसे पपीते को जिसे मैं ही खरीदूँ व जिसके पास भी उस तांत्रिक को न आने दूँ व जिसे मैं ही काटूँ भी... क्या कोई तान्त्रिक उस पपीते के अंदर मुर्गी का अंडा डाल सकता है?

अभी डॉ० रूपेश श्रीवास्तव जी की इच्छानुसार स्वयं को मात्र इसी प्रसंग तक सीमित रखे हूँ अन्यथा होम्योपैथी के बारे में भी कुछ कहता जरूर... :)

प्रवीण ने कहा…

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विमर्श के जरिये किसी तार्किक परिणति तक पहुंचने के लिये यह जरूरी है कि विमर्श में बिखराव न रहे व पाठक को एक ही जगह पर सभी Stake Holders के तर्क मिल जायें...
इसीलिये सूचित कर रहा हूँ कि मेरे दॄष्टिकोण को अब आदरणीय प्रकाश गोविन्द जी का भी समर्थन हासिल है...

प्रकाश गोविन्द said...

:))
प्रवीण जी के पांच हजार रुपये के साथ मेरी भी खून पसीने की कमाई के पचास हजार रुपये शामिल करें !
साथ ही चड्ढी, बनियाइन, रुमाल, मोजा और ऊपर नीचे के बाल भी हाजिर हैं
March 18, 2011 12:26 AM



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YM ने कहा…

जब तस्वीर में से लड़की निकल सकती है लड़की लड़का और लड़का लड़की बन सकता है

http://www.youtube.com/watch?v=Dk-R6BbsxiY

तो पपीते में अंडा, बाल, अगरबत्ती नीबू क्यों नहीं निकल सकते ?

प्रवीण ने कहा…

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मुझे लग रहा है कि विमर्श सही दिशा में नहीं जा रहा... अनूप मंडल या मुनेन्द्र सोनी यह तक नहीं बता रहे कि किस तरह का शोध तंत्र-मंत्र पर वे चाहते हैं... दीनबंधु जी ने एक नई पोस्ट लगा दी है जबकि अपनी बात वे यहाँ पर भी लिख सकते थे... वे टेलीफोनी व ब्रॉडकास्टिंग की तुलना भी त्ंत्र मंत्र से कर रहे हैं... जबकि इन सब चीजों के लिये उर्जाचालित ट्रांसमीटर व रिसीवर की जरूरत पड़ती है, कोई यह दावा नहीं करता कि वह बिना टेलीफोन के दूर बैठे आदमी से बातें कर लेता है या दिमाग के भीतर ही टीवी के चैनल देख लेता है...

जब मुझे व प्रकाश गोविन्द जी को तंत्र-मंत्र की शक्ति या प्रभाव पर विश्वास ही नहीं है तो निश्चित तौर पर हम कुछ नहीं करने जा रहे... जिसे विश्वास हो, वह भड़ास के मंच पर किसी सिद्ध साधक को प्रस्तुत करे तथा यह भी बतलाये कि कौन से अजूबे-अतिमानवीय कारनामे करने में वह साधक समर्थ है... शोध किस तरह होगा, प्रक्रिया क्या रहेगी... तभी इस संबंध में बात आगे बढ़ेगी...

दीनबंधु जी कहते हैं कि " अब जबकि तंत्र-मंत्र की बात चल रही है तो कुछ लोग जिसे अंधविश्वास या बकवास कह कर दरकिनार कर रहे हैं असल में शोध की किसी भी संभावना को सिरे से नकार रहे हैं इसी संदर्भ में मुनव्वर आपा ने होम्योपैथी का जिक्र करा था जो कि भाई प्रवीण शाह जी को गवारा नहीं हुआ वे पपीता पकड़ कर बैठे हैं जबकि बात पपीते की नहीं एक पूरे प्रकरण में ये एक घटना है जिसे किसी शोध के लिये शुरूआत बनाया जा सकता है। "

मैं पपीता पकड़ नहीं बैठा हूँ, यह जताया जा रहा है कि तान्त्रिक-दैवीय शक्तियों द्वारा पपीता बिना काटे उसके अंदर बहुत सी चीजें डाली जा सकती हैं... मैं इसी स्थापना का खंडन मात्र कर रहा हूँ और इस पर दॄढ़मत भी हूँ...


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डा० अमर कुमार ने कहा…


असमँजस में हूँ कि टिप्पणी करी कि न करी.. क्योंकि मॉडरेशन की शर्त अभिव्यक्ति की तथ्यपरक अवहेलना है ! किंवा मौन स्वीकृतिलक्षणम न माना जाये, इसलिये अधिक विवाद में न पड़ते हुये केवल यह दर्ज़ कराने को टीप रहा हूँ, कि मैं डॉक्टर अब्राहम कुवूर का समर्थक हूँ.. फिर भी अनूप मँडल का अनुयायी बनने को प्रस्तुत हूँ यदि.... यदि वह अपनी दैवी शक्तियों की कोई लोकोपयोगी उपादेयता सिद्ध कर पाते हैं, तो..... ’त’ के निहितार्थ समझे बिना प्रतिटिप्पणी करना विवाद को जारी रखे जाने की मँशा ही दर्शायेगा !

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