अमित भाई जिस विषय पर बात चल रही है उस समय चूंकि मैं भी वहां मौजूद थी और पूरे होशोहवास में थी

गुरुवार, 17 मार्च 2011

अमित भाई जिस विषय पर बात चल रही है उस समय चूंकि मैं भी वहां मौजूद थी और पूरे होशोहवास में थी। डा.साहब के मूवी कैमरे से लगभग पौने घंटे का एक "अनकट" वीडियो है जो कि mpeg format में बना है और फिर इसके बाद जब एक और वीडियो है जिसमें कि कैमरा मेरे हाथ में है और डा.साहब ने उस पूरी सामग्री को दोबारा निकाल कर दिखाया गया है और यह वीडियो भी तकरीबन बीस मिनट का है। चूंकि नंगी आंखों से धोखा हो सकता है इस लिये इस वीडियो को स्टिल फोटोज़ में jpeg format में तोड़ लिया गया जिसमें कि कई लाख तस्वीरें हैं यदि इन तस्वीरों को भड़ास पर चढ़ाना संभव हो पाता तो अब तक तो मैं ही कर चुकी होती। ये जरूर कहा गया था कि यदि कोई चाहे तो उसे इस वीडियोज़ की प्रति भेज दी जाएगी।
एक बात तो साफ़ है कि विषय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं अपितु विचार-विमर्श का है। सभी भड़ासी भाई-बहन किसी से कमतर नहीं हैं लेकिन इस सार्थक नोकझोंक भरी शैली से अक्सर सही हल मिल जाता है यही भड़ास की खासियत है। हम सभी जानते हैं कि खुद डा.रूपेश श्रीवास्तव क्या किसी भी गूढ़ विषय को इतनी आसानी से छोड़ देने वालों में से नहीं हैं। वे साइंस की तरक्की के लिये एक लाख रुपए तक सहर्ष देने को तैयार हैं ताकि इस विषय पर कुछ आगे शोध हो सके एक सिरे से नकार देने से तो शोध का भी मार्ग बंद हो जाएगा। एक जमाना था कि होम्योपैथी को डा.हैनीमैन के समय शंका से देखा गया फिर ये ऊंचाइयों तक गयी और अब फिर साइंस की एक खास विचारधारा का कुटिल तबका इसे सिरे से नकार रहा है आप इस विषय में कौन सा साइंटिफ़िक तरीका अपनाने वाले हैं कृपया स्पष्ट करें क्योंकि हमने जो तर्कपूर्ण तरीका अपनाया था वह युवा भड़ासिन कु.फ़रहीन मोमिन द्वारा सुझाया था जो कि स्वयं साइबर फ़ोरेन्सिक साइंस की छात्रा हैं साथ ही थे डा.दीपांशु ठाकुर जो कि स्वयं होम्योपैथ होने के साथ अंधश्रद्धा निर्मूलन कार्यक्रमों के संचालक रहे हैं। अपनी प्राचीन विद्याओं को यदि हम किसी भी प्रकार से पुनर्ज्जीवित कर सकें तो इससे मानवता का ही भला होगा जो उपाय हानि पहुंचा सकते हैं उनमें लाभ की भी गुंजाइश होती है बशर्ते आपको प्रयोग का सही तरीका पता हो। एक समय में डा.जगदीश चंद्र बसु से लेकर डा.बंधु साहनी सभी तो इस तरह की निंदा का शिकार होते रहे हैं इसमें डा.रूपेश श्रीवास्तव जी के लिये नया क्या है। वे तो बस इतना चाहते हैं कि घटना की साइंटिफ़िक तरीके से विवेचना हो सके न कि वे अंधविश्वास फैला रहे हैं जैसा कि जताया जा रहा है।प्रवीण शाह ही भी कृपया बात को इसी संदर्भ में लें तो लोकहित होगा।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

प्रवीण ने कहा…

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आदरणीय मुनव्वर सुलताना जी,

विमर्श पर कई पोस्टें लग गई हैं व इससे पाठक को भटकाव व विमर्श में बिखराव भी हो सकता है इसीलिये मैं अपनी टिप्पणियाँ केवल इस पोस्ट पर ही दूँगा... आशा है आप मेरे आशय को समझेंगी व अपनी सहमति देंगी...


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