उर्दू के स्वयंभू मठाधीश ही उर्दू की कब्र खोद रहे हैं भाग - दो
मंगलवार, 10 मई 2011
उर्दू के स्वयंभू मठाधीश ही उर्दू की कब्र खोद रहे हैं भाग - एक
दिया कि ये तो बिल्कुल गलत दावा है जिस पर डा.अंसारी ने अपनी झूठीविनम्रता बनाए रख कर ये लिखा कि ये दावा नहीं महज एक सूचना है और आप क्या जानेंकि नस्तालिक क्या है। डा.अंसारी ने डा.रूपेश जी को बता डाला कि नस्तालिक वह लिपिहै जिसमें उर्दू भाषा को लिखा जाता है। इसके आगे डा.रूपेश ने उनकी शोध करने वाली जानकारी में बढोत्तरी करी की भाई नस्तालिक लिपि में सिर्फ़ उर्दू ही नहीं बल्कि अरबी, फ़ारसी और सिंधी भाषाएं भी लिखी जाती हैं।
गौ़रतलब बात ये भी है कि इन डा.अंसारी की विनम्रता सिर्फ़ इसी मेल तक सीमित रही इसके बाद वे खुद को उपदेशक जताने लगते हैं और डा.रूपेश जी को निहायत ही नासमझ जता दिया है।
कुल मिला कर बनियों की जमात जो कि बैसाखी वेचती है कब चाहेगी कि कोई अपने पैरों पर चले इसीलिये "इनपेज" नामक साफ़्टवेयर से रोज़ीरोटी चलाने वाले लोगों ने अब ऐसे सेल्समैन रख लिए हैं जो ब्लागिंग का मुखौटा लगा कर इंटरनेट की गलियों में चिल्ला चिल्ला कर आवाज़ लगा रहे हैं कि "इनपेज" ले लो "इनपेज".... फ़ैज़ नस्तालिक फ़ौन्ट ले लो... सस्ता... अच्छा... उर्दू वाला....
उर्दू के इन मठाधीशों का मायाजाल टूट रहा है तो इनकी बौखलाहट अब दिखेगी ही।
शेष आगे.......
जय जय भड़ास
अभी कुल मिला कर इन महाशय जी को बमुश्किल एक महीना भी नहीं हुआ उर्दू भाषा की नस्तालिक लिपि में चिट्ठाकारी करते कि इन्होंने अपने अति विनम्र अंदाज़ में लोगों को मेल करना शुरू कर दिया कि वे दुनिया के पहले नस्तालिक टैक्स्ट ब्लागर हैं। इस करतूतमें जनाब ने अपने साथ उर्दू के क्षेत्र में पहले से ही जाने पहचाने कुछ लोगों को साथ लेलिया ताकि बात में दम नज़र आए। ऐसा ही एक मेल पहले-पहल डा.रूपेश जी को उनकेएक परिचित विख्यात विद्वान जिनका वे बहुत आदर करते हैं के द्वारा मिला तो डा.रूपेशसाहब इस बात पर भौचक्के रह गए। उन्होंने तत्काल उन आदरणीय बंधु को इस विषयपर प्रत्युत्तर
दिया कि ये तो बिल्कुल गलत दावा है जिस पर डा.अंसारी ने अपनी झूठीविनम्रता बनाए रख कर ये लिखा कि ये दावा नहीं महज एक सूचना है और आप क्या जानेंकि नस्तालिक क्या है। डा.अंसारी ने डा.रूपेश जी को बता डाला कि नस्तालिक वह लिपिहै जिसमें उर्दू भाषा को लिखा जाता है। इसके आगे डा.रूपेश ने उनकी शोध करने वाली जानकारी में बढोत्तरी करी की भाई नस्तालिक लिपि में सिर्फ़ उर्दू ही नहीं बल्कि अरबी, फ़ारसी और सिंधी भाषाएं भी लिखी जाती हैं।
गौ़रतलब बात ये भी है कि इन डा.अंसारी की विनम्रता सिर्फ़ इसी मेल तक सीमित रही इसके बाद वे खुद को उपदेशक जताने लगते हैं और डा.रूपेश जी को निहायत ही नासमझ जता दिया है।कुल मिला कर बनियों की जमात जो कि बैसाखी वेचती है कब चाहेगी कि कोई अपने पैरों पर चले इसीलिये "इनपेज" नामक साफ़्टवेयर से रोज़ीरोटी चलाने वाले लोगों ने अब ऐसे सेल्समैन रख लिए हैं जो ब्लागिंग का मुखौटा लगा कर इंटरनेट की गलियों में चिल्ला चिल्ला कर आवाज़ लगा रहे हैं कि "इनपेज" ले लो "इनपेज".... फ़ैज़ नस्तालिक फ़ौन्ट ले लो... सस्ता... अच्छा... उर्दू वाला....
उर्दू के इन मठाधीशों का मायाजाल टूट रहा है तो इनकी बौखलाहट अब दिखेगी ही।
शेष आगे.......
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
ये बेचने वाला वर्ग ही तो है जो चाहता है कि सब लोग इनके मोहताज बने रहें और इनका एकछत्र राज्य कायम रहे। शम्स भाई आपने अच्छा रगड़ा है इन लोगों को अब देखियेगा कि तिलमिला कर कैसी गालियां देने वाले हैं ये सेल्समैन और दुकानदार;)
मैंने देखा है एक font की डाउनलोड फ़ाइल का आकार 23.7mb है तो आप समझ लीजिये कि आप किस कुचक्र में फंसने वाले हैं डा.साहब ने मुझे भी मेल फ़ारवर्ड करा था जो आपको भेजा है। मैं इन मुखौटाधारियों के मुखौटे नोचने के आपके इस अभियान में आपके साथ हूं।
जय जय भड़ास
شمس بھائی یہ تو کمال کر دیا آپ نے . انپیج والے ثلثمیں کا کارٹون خوب ہے .
मैं उर्दू नहीं जानती लेकिन फिर भी टाइप कर पा रही हूं जबकि मेरे पास इनपेज या इस जैसा कोई साफ़्टवेयर नहीं है यानि मोहताजी खत्म:)
जय जय भड़ास
अरे यार लोग कहते हैं कि दो दुश्मन अगर सुबह से शाम तक उर्दू में झगड़ा करें तो शाम को दोस्त बन जाते हैं इतनी मिठास है इस भाषा में। मैंने आपको ये मेल सिर्फ़ उसी तरह सूचना के लिये भेजे थे जैसे कि डा.अंसारी ने मुझे भेजे थे मुझे उनकी अंधों के शहर में आइना बेचने वाली बात अच्छी लगी थी वैसे मैंने मीरारोड रेल्वे स्टेशन पर एक अंधा देखा जो कि आइना बेच रहा था ये तो यार बात ही उल्टी हो गयी कि अंधा आइना बेच रहा है। आप झगड़ा करवाना चाहते हैं फिर उर्दू की मिठास आजमाना चाहते हैं कि हम दोस्त बन पाते हैं या नहीं या सचमुच मुझे पिटवाने के चक्कर में हैं;)
जय जय भड़ास
बहुत सुंदर पोस्ट बधाई |
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