अचानक किसी बेनामी को बूढी माई की चिंता होने लगी
बुधवार, 15 जून 2011
अचानक किसी बेनामी को बूढी माई की चिंता होने लगी और मुझे सलाह दी जा रही है | बेटा / बेटी जब तुममें इतना साहस नहीं है की तुम अपनी पहचान के साथ पधार सको तो क्या उम्मीद करी जा सकती है हो सकता है की तुम ही वो नीच औलाद हो जो आठ महीने बाद अपनी माँ की तस्वीर भड़ास पर देख कर अब ये जानना चाहता है की वो जीवित है या मर गयी | अरे तुम मुझे बता रहे हो की मैं रेलवे या पुलिस को सूचना दे सकता था लेकिन उसकी जगह कलम घसीट रहा हूँ | मैं क्या हूँ और क्या करता हूँ क्या कर सकता हूँ ये अगर जानना है तो अपनी पहचान बता दो और मुंबई आ कर देख लो पता चल जायेगा की आजकल की महानगर की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में मुंबई में रह कर मैं जो कर रहा हूँ उसे लोग चूतियापा क्यों कहते हैं समझ में आ जाएगा | अरे हाँ यदि एक हालिया चूतियापे का ताज़ा नमूना देखना है तो हमारी वरिष्ठ भड़ासी बहन मुनव्वर सुल्ताना के ब्लॉग "लंतरानी" पर देख लो लेकिन तुम्हारी परेशानी है की तुम उर्दू नहीं पढ़ पाओगे की मैंने कई दिन से एक व्यस्त इलाके में सड़ती हुयी एक अनजान इंसान की लाश के लिए पुलिस को न सिर्फ बुलाया बल्कि धंधे पर भी लगाया | कई घंटे लगे और पुलिस स्टेशन भी कई बार जाना हुआ लेकिन तुम्हे इससे क्या जिसकी अपनी पहचान तक बताने में फट रही है।
अरे गधे! कितने रेलवे के अधिकारी और पुलिस वाले मुंबई में ऐसे लोगों की देखरेख कर रहे हैं जो इन माई की करने लगते तेरे जैसे सभ्य सब लोग नहीं रह गए जो मुँह छिपा कर सभ्यता का पाठ पढ़ाएं। हम सब तो असभ्य हैं लेकिन जो करते हैं सबके सामने चाहे तेरी मरम्मत या मजलूमों से प्यार....
जय जय भड़ासअरे गधे! कितने रेलवे के अधिकारी और पुलिस वाले मुंबई में ऐसे लोगों की देखरेख कर रहे हैं जो इन माई की करने लगते तेरे जैसे सभ्य सब लोग नहीं रह गए जो मुँह छिपा कर सभ्यता का पाठ पढ़ाएं। हम सब तो असभ्य हैं लेकिन जो करते हैं सबके सामने चाहे तेरी मरम्मत या मजलूमों से प्यार....
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें