मैं एक बात जानता हूँ कि जब भी अमित जैन से आमने सामने मुलाकात होगी तो वो आकर गले लग जाएंगे

बुधवार, 10 अगस्त 2011

शम्स भाई किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। मैं निजी तौर पर इस बात को जानता हूँ कि ये पोस्ट अमित जैन की थी लेकिन बाद में मनीषा दीदी के कहने पर उन्होंने शायद इस बात का एहसास करा होगा इसलिये तत्काल मुझे फोन करके नकार दिया। आप सब जिस तरह से इस प्रकरण को देख रहे हैं वह निःसंदेह कुछ भिन्न है। अमित जैन के स्वभाव को कदाचित मैं समझ पा रहा हूँ वे विचारों, आस्थाओं आदि के प्रति असहमति को सहन नहीं कर पाते और आवेश में आ जाते हैं। उनका अनूप मंडल के साथ लगातार जूझे रहना इस बात को सिद्ध करता है। दूसरी विशेष बात जो इनके स्वभाव की है वह ये कि ये अपनी बात को मनवाने के लिये हर संभव प्रयास करते हैं इनकी ये जिद इन्हें हमारे जैसा भड़ासी बनाती है। ये भड़ास ही तो है जो इनके भीतर विरोधी विचारों से जूझते रहने की ताकत देती है। नीचता के विषय में भी एक बात साफ़ करना है कि भड़ास दर्शन के अनुसार भड़ासियों में से किसी ने कहीं और कभी भी खुद को ऊँचा जताने की कोई कोशिश नहीं करी है। भाई रजनीश झा हों या खुद मैं हमेशा कहते हैं कि हम तो चूतिया लोगों में भी सुपरलेटिव कैटेगरी के लोग हैं हमारा बौद्धिकता से भला क्या रिश्ता हम तो दिल से सोचते हैं और उसी सोच को जीवन शैली बनाए चल रहे हैं। अमित जैन के साथ भी दिल से जुड़ी सोच ही है जो उन्हें मजबूर करती है इन बातों के लिये कि वे अपनी हठधर्मिता को भी स्वाभिमान से जोड़ लेते हैं । इसके चलते वे below the belt हमला करने तक चले जाते हैं लेकिन मैं जीवन में वैचारिक मार्शल आर्ट के इतने मुकाबले लड़ चुका हूँ कि अब इन वारों को झेल जाने की ताकत भी इसी भड़ास ने दी है।

निदा फ़ाज़ली ने कहा है "हर आदमी में होते हैं कई एक आदमी....
इस हिसाब से यदि अमित जैन के भीतर भी उनके व्यक्तित्व में कई आयाम हैं जो कि उन्हें एक नाराज़, चिढ़ा हुआ और कुन्ठित व्यक्ति बनाए हैं लेकिन दूसरी ओर चुटकुलेबाज़ और शायर भी। कभी कभी वे पॉडकास्टिंग भी करते हैं ये बात अलग है कि अनूप मंडल को उनकी हर बात में से षडयंत्र की ही गंध आती है।
मैं एक बात जानता हूँ कि जब भी अमित जैन से आमने सामने मुलाकात होगी तो वो आकर गले लग जाएंगे। यही वो जज़्बा है जो कि भड़ासियों को आपसी वैचारिक विरोध के बाद भी एक दूसरे से जोड़े रहने से उपजता है कि हम सब परेशान, सहमे हुए, चिढ़े हुए, नाराज, जिद्दी, थोड़े बुरे, मैले-कुचैले, कभी-कभी दारूखोर, कभी व्रत-उपवास रख लेने वाले........ गरीब होते हुए भी सब कुछ पा लेने की चाहत रखने वाले और जीवन भर संघर्ष करने वाले....। ऐसी न जाने कितनी परिभाषाएं बनायी जा सकती हैं हम भड़ासियों की और न जाने कितने नाम दिये जा सकते हैं हम सबको। जीवन अविराम बहता रहता है यारों इसी तरह हम एक दिन इस दुनिया से खेल खेलने वाले की तरफ से "डिलीट" कर दिये जाते हैं।
पूरी ताकत लगा कर दिल से चूतियापा जारी रखिए।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

شمس शम्स Shams ने कहा…

डॉ.साहब आप ऐसा सोचते हैं ये आपकी पॉजिटिव सोच है लेकिन कुछ लोग होते ही कमीने हैं जो कभी नहीं सुधरते उन्हें उनका किया धरा बिलकुल सही लगता है उन्हीं में से एक ये अमित जैन है। आप तो इसे गले लगा ही लेंगे लेकिन ऐसे लोग गले लग कर पीठ में खंजर घोंपने से बाज नहीं आते ये सावधानी रखनी जरूरी है। आप तो समझते हैं आपको क्या समझाऊंगा पर फिर भी मन करा तो लिखा...
देखिये इसका वकील प्रवीण शाह तो छू... ही हो गया न उसने आपकी बातों का उत्तर दिया न ही अपनी गलतियाँ स्वीकारीं कि आप पर गलत आरोप पगाया है इन दोनों ने पक्षपात का।
जय जय भड़ास

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