ब्रिटेन में तीन दिनों से चल रहा है "दंगा महोत्सव"

बुधवार, 10 अगस्त 2011





हम भारतीयों को तो दंगा जीवन का एक अंग जैसा लगने लगा है तो कुछ अजीब नहीं लगता क्योंकि हमारे देश में तो दंगा करने-कराने के लिये कोई मुहूर्त नहीं देखना पड़ता। हजारों मुद्दे हैं जाति, धर्म , भाषा, क्षेत्र, आस्था, परम्परा... न जाने क्या क्या यहाँ तक कि हगने मूतने तक की बात पर दंगा कर लेने के समुचित अवसर हमारे राजनेता नागरिकों को प्रदान कराते हैं साथ ही पुलिस व्यवस्था का भी भरपूर सहयोग रहता है।
चूंकि पश्चिमी देश इन मामलों में अत्यंत ही दीनहीन अवस्था में हैं वहाँ सामान्य

तौर पर दंगा नहीं होता। वहाँ की सरकारें सोचती हैं कि भारतीय असभ्य हैं
देखिए कि एक बालक के ने मरते मरते किस तरह बंदूक सम्हाल कर अपनी छाती पर रखी है इसे आप पुलिसिया चूतियापा नहीं कहेंगे तो और क्या???
और दंगा करते रहते हैं।
असल बात तो ये है कि साला हर देश में दो तरह के लोग ही रहते हैं एक तो वो जो शासन-प्रशासन में हैं दूसरे वो जो शासित हैं चाहे संविधान, विधि शासन किसी भी तरह का हो; कम्युनिज़्म हो, इस्लामिक विचारधारा हो या फिर भीड़तंत्र(लोकतंत्र) सब का एक जैसा हाल है। वहाँ इंग्लैंड में जब तक राजा रानी थे तो उनकी फौजें दूसरे देशों पर हमले कर कर के उनकी मैय्यो करती रहती थीं लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ा और लोकतंत्र का नाटक चलने लगा जो कि उन्होंने हमारे देश को भी सौंपा है तो अब उसके परिणाम तो आएंगे ही।
हद है यार कि एक विशेष समुदाय "एफ़्रो-कैरेबियन" से संबद्ध लोगों से जुड़े अपराध के लिये पुलिस का अलग दस्ता है। मार्क डुग्गन नाम के व्यक्ति को पुलिस ने एक कथित मुठभेड़ में ठोक डाला। बंदे के चार बच्चे हैं और पुलिस ने वही बात कही है जो कि हमारी पुलिस कहती है कि उन्होंने मार्क डुग्गन को जाँच के लिए रोका तो उसने पुलिस पर फ़ायरिंग करी जबकि "अल जज़ीरा" की एक खबर बताती है कि एक स्रोत बताता है कि कथित तौर पर डुग्गन द्वारा गोली चलाए जाने की बात गलत है। ये सत्य हो सकता है कि डुग्गन ने गोली चलायी ही न हो बस उसे उसी तरह टपका दिया गया हो जैसे कि हमारे देश में इशरत जहाँ जैसी लड़की को पुलिस ने आतंकवादी कह कर बाकायदा लुढ़्का दिया, पुलिस हमारे यहाँ तो अक्सर इसको उसको माओवादी, आतंकवादी आदि नाम देकर टपकाती रहती है। अब मार्क डुग्गन के मार दिए जाने के बाद जब उनके समुदाय के लोग न्याय के लिये शाँतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो पुलिस ने उनको डंडा कर दिया। अब जाहिर सी बात है कि जो दुखी है पहले से ही उसे डंडा करा जाए तो दंगा ही होगा। पश्चिम भले ही कुछ भी दिखावा करे लेकिन अभी भी समाज में काले-गोरे आदि के भेद गहराई से जड़ें जमाए हुए है और बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यकों की लेने से बाज़ नहीं आते। अब दबा हुआ गुस्सा फूट रहा है तो आठ-दस साल के बच्चे भी इस दंगा महोत्सव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। बाकी जो हो रहा है उसे हमारे मीडिया के भोंपू तो चिल्ला चिल्ला कर नमक मिर्च लगा कर बता ही रहे हैं।
सरकार में बैठे लोगों से आखिरी बात कि जब जब शोषण और दबाव हदें पार कर जाएगा इस तरह के सामाजिक विस्फोट होंगे।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

شمس शम्स Shams ने कहा…

पूरी दुनिया में कमोबेश ऐसा ही चल रहा है लोग भले ही सभ्य होने का कितना भी दिखावा करें लेकिन अंदर से सभी पशु ही हैं तो ताकतवर वो राज्य करेगा इसी तरह।
जय जय भड़ास

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